पर्यावरण पर संकट: जंगलों में जानलेवा आग, ध्वनि प्रदूषण, जीवन चक्र व्यवधान
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की एक नई रिपोर्ट में, जंगलों में आग लगने की बढ़ती घटनाओं व उनकी गम्भीरता, शहरी इलाक़ों में सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिये समस्या बन रहे ध्वनि प्रदूषण व प्राकृतिक प्रणालियों के जीवन चक्र में नज़र आ रहे व्यवधान की ओर ध्यान आकृष्ट किया गया है, साथ ही रोकथाम उपाय भी पेश किये गए हैं.
यूएन पर्यावरण एजेंसी ने गुरूवार को अपनी रिपोर्ट ‘Noise, Blazes and Mismatches: Emerging Issues of Environmental Concern’ जारी की है.
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UNEP
यह इस रिपोर्ट का चौथा संस्करण है जिसे संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण ऐसेम्बली के पाँचवे सत्र की शुरुआत से कुछ ही दिन पहले जारी किया गया है.
वर्ष 2016 में प्रकाशित पहले संस्करण में पशुजनित बीमारियों के बढ़ते जोखिम को रेखांकित किया गया था, और उसके चार साल बाद ही दुनिया, कोविड-19 महामारी की चपेट में आ गई.
यूएन एजेंसी की महानिदेशक इन्गेर एण्डरसन ने कहा, “फ़्रण्टियर्स रिपोर्ट में उन तीन पर्यावरणीय मुद्दों की शिनाख़्त और उनके लिये समाधान पेश किये गए हैं, जिन पर ध्यान देने और सरकारों व आमजन द्वारा कार्रवाई की आवश्यकता है.”
शहरों में ध्वनि प्रदूषण
रिपोर्ट बताती है कि सड़क यातायात, रेलवे और अन्य गतिविधियों के कारण लम्बे समय तक ऊँची ध्वनियों से मानव स्वास्थ्य व कल्याण पर असर होता है.
यह लोगों में चिड़चिड़ापन, नीन्द आने में परेशानी जैसी समस्याओं का कारण बन सकता है, जिससे गम्भीर हृदय रोग और चयापचयी (metabolic) व्याधियाँ, डायबिटीज़, सुनाई देने में मुश्किलें और मानसिक स्वास्थ्य पर असर हो सकता है.
एक अनुमान के अनुसार, हर वर्ष योरोपीय संघ में ध्वनि प्रदूषण के कारण 12 हज़ार लोगों की असामयिक मौत होती है.
अल्जीयर्स, बैंकॉक, दमिश्क, ढाका, इस्लामाबाद और न्यूयॉर्क समेत अन्य शहरों में स्वास्थ्य के नज़रिये से स्वीकार-योग्य ध्वनि का स्तर पार हो चुका है.
इस समस्या से युवजन, बुज़ुर्ग और हाशिये पर रहने के लिये मजबूर समुदाय ज़्यादा प्रभावित होते हैं, जिन्हें ज़्यादा यातायात वाली सड़कों या औद्योगिक इलाक़ों में रहना पड़ता है.
साथ ही यह पशु-पक्षियों के लिये भी कठिनाई पैदा करता है.
वनों में भीषण आग
वर्ष 2002 से 2016 के दौरान हर साल, पृथ्वी की भूमि सतह का औसतन 42 करोड़ हैक्टेयर जल कर राख़ हो गया, जोकि लगभग योरोपीय संघ के आकार का है.
जंगलों में आग लगने की घटनाओं की आवृत्ति व गहनता बढ़ने की आशंका जताई गई है, और उसकी चपेट में वे इलाक़े भी आ सकते हैं, जोकि पहले अछूते रहे हैं.
जलवायु परिवर्तन, बढ़ते तापमान, और शुष्क परिस्थितियों और सूखे की बढ़ती घटनाओं से हालात और ज़्यादा विकट हो सकते हैं.
रिपोर्ट बताती है कि आग बुझाने के प्रयासों में जुटने वाले दमकलकर्मियों व प्रभावितों और आस-पास व दूर के इलाक़ों मे स्थित समुदायों पर आग के धुँए और हवा में घुलने वाले सूक्ष्म कणों का असर हो सकता है.
जंगलों में आग लगने से काला कार्बन और अन्य प्रदूषक तत्व पैदा होते हैं, जोकि जल संसाधनों को दूषित करत सकते हैं और हिमनदों के पिघलने की रफ़्तार में तेज़ी ला सकते हैं.
प्राकृतिक जीवन चक्र में व्यवधान
रिपोर्ट के अनुसार लौकिक, जलीय व समुद्रीय पारिस्थितिकी तंत्रों में पौधे व पशु, तापमान, दिन की लम्बाई, और वर्षा से प्राप्त होने वाले संकेतों के ज़रिये, पुष्पित-पल्लवित होने, फल उगने, प्रजनन, परागण, प्रवासन समेत अन्य जीवन चक्र गतिविधियों को निर्धारित करते हैं.
मगर, जलवायु परिवर्तन के कारण पर्यावरणीय परिस्थितियों में बदलाव, विभिन्न प्रजातियों के जीवन चक्र के पड़ावों के समय में परिवर्तन का कारण बन सकता है और पौधे व पशु अपने प्राकृतिक जीवन विकास से भटक सकते हैं.
उदाहरणस्वरूप, मौसमी बदलाव के कारण फ़सलों के जीवन चक्र में आने वाले परिवर्तन से खाद्य उत्पादन चुनौतीपूर्ण हो सकता है.
रोकथाम उपाय
रिपोर्ट में ध्वनि प्रदूषण से निपटने के लिये, शहरी नियोजकों से ध्वनि में कमी लाने के उपायों को प्राथमिकता देने, वैकल्पिक आवाजाही में निवेश करने, शहरी बुनियादी ढाँचे में हरित दीवारें, हरित छतें, हरित स्थल और वृक्षों को बढ़ावा देने का सुझाव दिया गया है.
साथ ही, वनों में आग लगने की घटनाओं की रोकथाम के लिये ज़्यादा निवेश किया जाना होगा; रोकथाम व कार्रवाई योजनाओं में ग्रामीण, पारम्परिक व आदिवासी समुदाय का भी ध्यान रखना होगा, और सैटेलाइट, रेडार समेत अन्य क्षमताओं से निगरानी सुविधाओं को मज़बूती दी जानी होगी.
जीवन चक्र में व्यवधान के मद्देनज़र, अनुकूल पर्यावासों पर ध्यान देने, जैविक विविधता और पारिस्थितिकीय जुड़ाव बनाए रखने, प्रजातियों में आनुवांशिक भिन्नता बरक़रार रखने जैसे संरक्षण उपायों के अलावा, कार्बन उत्सर्जन में गिरावट लाने पर भी बल दिया गया है.