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रेडियो दिवस: यूएन में रेडियो के अतीत, वर्तमान और भविष्य पर पुरोधा नज़र

माली में टिम्बकटू की एक युवा पत्रकार, रेडियो जमाना पर एक सांध्य कालीन कार्यक्रम प्रस्तुत करते हुए.
© UNICEF/Seyba Keïta
माली में टिम्बकटू की एक युवा पत्रकार, रेडियो जमाना पर एक सांध्य कालीन कार्यक्रम प्रस्तुत करते हुए.

रेडियो दिवस: यूएन में रेडियो के अतीत, वर्तमान और भविष्य पर पुरोधा नज़र

संस्कृति और शिक्षा

इस वर्ष के विश्व रेडियो दिवस की थीम है – ‘रेडियो व भरोसा’, और रविवार 13 फ़रवरी को यह दिवस ऐसे समय मनाया जा रहा है जब दुष्प्रचार व झूठी सूचना का व्यापक फैलाव हो रहा है, और ये फैलाव सार्वजनिक स्वास्थ्य के सम्बन्ध में जीवन रक्षक तथ्यों को तोड़-मरोड़ने के साथ-साथ, ‘हेट स्पीच’ को भी बढ़ावा दे रहा है.

ये दिवस, दरअसल 1946 में शुरू हुई संयुक्त राष्ट्र रेडियो सेवा के जन्म दिन को याद करने का मौक़ा भी है, तो यूएन न्यूज़ ने इस मौक़े पर, दो ऐसे पुरोधा प्रसारकों और पत्रकारों से सम्पर्क साधा जो हाल ही में, यूएन न्यूज़ सेवा से रिटायर हुए हैं.

यैलेना वैपनित्शनाया यूएन न्यूज़ की रूसी भाषा इकाई की चीफ़ थीं और जेरोम लाँग, फ्रेंच भाषा इकाई के चीफ़ थे. इन दोनों वरिष्ठ प्रसारकों और पत्रकारों ने यूएन रेडियो और बाद में एकीकृत यूएन न्यूज़ सैक्शन में बहुत वर्षों तक काम किया है. 

इस वर्ष के विश्व रेडियो दिवस पर, हमने उनसे, रेडियो में उनके कामकाज, रेडियो की सम्भावनाओं व इण्टरनेट के दौर में, दुष्प्रचार व झूठी जानकारी फैलाने की महामारी का मुक़ाबला करने में, रेडियो की ताक़त के बारे में, उनकी यादें बाँटने को कहा...

इतिहास की एक झलक

यूएन रेडियो के कमेण्टेटर जियॉर्ज डे (फ्रांस), ऐलीनॉर डी रूज़वेल्ट - यूएन मानवाधिकार आयोग की चेयर पर्सन, और फ्रांस के प्रोफ़ेसर रेने केसिन
UN Photo
यूएन रेडियो के कमेण्टेटर जियॉर्ज डे (फ्रांस), ऐलीनॉर डी रूज़वेल्ट - यूएन मानवाधिकार आयोग की चेयर पर्सन, और फ्रांस के प्रोफ़ेसर रेने केसिन

13 फ़रवरी 1946 को, यूएन रेडियो के प्रथम प्रसारण में, संगठन की पाँच आधिकारिक भाषाओं – अंग्रेज़ी, फ्रेंच, चीनी, रूसी और स्पैनिश - में कार्यक्रम प्रसारित हुए थे, बाद में अरबी भाषा भी इस सूची में शामिल हुई.

वर्ष 1950 तक आते-आते, यूएन रेडियो 33 भाषाओं में कार्यक्रम प्रस्तुत करने लगा था, और 1980 में, यूएन शान्तिरक्षा मिशनों ने भी अपने रेडियो स्टेशनों से कार्यक्रम प्रसारित करने शुरू कर दिये.

हमारे भाषाई नैटवर्क, 15 मिनट का दैनिक कार्यक्रम प्रस्तुत करते थे जिसमें न्यूयॉर्क स्थित यूएन मुख्यालय में स्थित विभिन्न टीमों की तरफ़ से समाचार, साक्षात्कार, और फ़ीचर होते थे.

इस सदी के पहले दो दशकों ने, यूएन रेडियो के कामकाज में नाटकीय बदलावों का दौर देखा है: रीलों, टेपों और कैसेटों के दौर ने डिजिटल मीडिया को ज़िम्मेदारी सौंपी है, और मल्टीमीडिया फ़ीचर की बदौलत, ऑडियो प्रसारण समृद्ध व विविधतापूर्ण हुए हैं. इसमें सोशल मीडिया जगत में हुए क्रान्तिकारी बदलावों के ज़रिये, लिखित सामग्री, ऑडियो, फ़ोटो, वीडियो और अन्य वैब आधारित ग्राफ़िक्स की अदभुत झलक शामिल है.

संयुक्त राष्ट्र की रेडियो सेवाएँ, बहुआयामी समाचार यनिट्स के रूप में तब्दील हो गई हैं जो अपनी ख़ुद की वैबसाइट्स के ज़रिये सामग्री प्रस्तुत करती हैं.

आज ये न्यूज़ यूनिट्स डिजिटल सामग्री सृजित करती हैं और मल्टीमीडिया स्टोरीज़ कहती हैं; और ये रचनात्मक सामग्री अनेक मंचों के ज़रिये लोगों तक पहुँचाई जाती है जिनमें सोशल मीडिया भी शामिल है. ये सभी सामग्री संयुक्त राष्ट्र की छह आधिकारिक भाषाओं के अलावा, पुर्तगीज़, किश्वाहिली और हिन्दी में भी उपलब्ध है.

यूएन रेडियो की भाषाई सेवाओं ने, न्यूयॉर्क स्थित यूएन सचिवालय इमारत में, एक न्यूज़रूम वातावरण में हमेशा ही कन्धे से कन्धा मिलाकर काम किया है. 

मशहूर ब्रितानी अभिनेता माइकल रैडग्रेव, न्यूयॉर्क यूएन मुख्यालय में, यूएन रेडियो के स्टूडियो में (1956).
UN Photo/Albert Fox
मशहूर ब्रितानी अभिनेता माइकल रैडग्रेव, न्यूयॉर्क यूएन मुख्यालय में, यूएन रेडियो के स्टूडियो में (1956).

यूएन रेडियो और यूएन न्यूज़ के लिये 30 वर्षों से भी अधिक समय तक काम करने वाले - फ्रेंच न्यूज़ यूनिट के पूर्व चीफ़ जेरोम लाँग याद करते हैं, “दफ़्तर में, एक तरफ़ हमारे पड़ोसी होते हैं – रूसी सेवा के पत्रकार, तो दूसरी तरफ़ बैठे होते हैं – पुर्तगीज़ यूनिट के सहयोगी. हम उन्हें कामकाज करते हुए भी सुनते हैं, और अक्सर हमने उनसे उनकी भाषाओं के अनेक शब्द भी सीखे हैं, मसलन - Dobroe utro (रूसी भाषा में सुप्रभात), या फिर “Obrigado” (पुर्तगीज़ भाषा में धन्यवाद).”

यैलेना और जेरोम का मानना है कि इस तरह का विभिन्न संस्कृति और विविधता वाला माहौल, समाचार पेशे में बहुत मदद करता है.

रूसी न्यूज़ यूनिट की पूर्व चीफ़ - यैलेना कहती हैं, “यूएन रेडियो में हमेशा ही पत्रकारिता का लम्बा अनुभव, एक वृहद नज़रिया, दुनिया के लिये खुला दृष्टिकोण, और हमेशा एक दूसरे की मदद करने और जानकारी साझा करने को तत्पर रहने का जज़्बा रखने वाले पेशेवरों ने काम किया है. मैं बहुत प्रसन्न हूँ कि मुझे एक ऐसी टीम में काम करने का मौक़ा मिला है.”

यूएन रेडियो और अन्य न्यूज़ प्रोड्यूसर, अक्सर महासचिव के साथ आधिकारिक यात्राओं पर भी जाते रहे हैं और अक्सर प्रमुख विश्व घटनाओं के प्रत्यक्षदर्शी रहे हैं.

जेरोम कहते हैं, “हमने कर्नल गद्दाफ़ी, के अलावा चाड और सूडान के राष्ट्रपतियों के साथ हुई बैठकों में भी शिरकत की है, सियरा लियोन में बाल सैनिकों को समाज में समायोजित करने की प्रक्रिया में भागीदारी की है, और इथियोपिया, और इरिट्रिया के बीच शान्ति समझौते पर दस्तख़त होने के मौक़े को भी नज़दीक से देखा है.”

और, हर वर्ष यूएन महासभा का वार्षिक सत्र उदघाटन तो शामिल है ही, जिसमें विभिन्न देशों के राष्ट्राध्यक्ष व सरकार अध्यक्ष न्यूयॉर्क मुख्यालय में आते हैं.

विश्वसनीय स्रोत

यूएन न्यूज़ के प्रमुख जेरॉम लाँगे, साहित्यकार ऐनी सिसिली रॉबर्ट (बाएँ), यूएन मुख्यालय में बातचीत करते हुए.
UN Photo/Evan Schneider
यूएन न्यूज़ के प्रमुख जेरॉम लाँगे, साहित्यकार ऐनी सिसिली रॉबर्ट (बाएँ), यूएन मुख्यालय में बातचीत करते हुए.

बहुत से विश्लेषकों ने 1980 के एक गीत - “video killed the radio star,” का सन्दर्भ देते हुए, रेडियो का दौर समाप्त होने का अनुमान व्यक्त किया, लेकिन ये सच साबित नहीं हुआ. ये ग़लत साबित हुआ है क्योंकि दुनिया भर में लाखों-करोड़ों लोग आज भी, भरोसेमन्द सूचना प्राप्ति और शिक्षा प्राप्ति के लिये, मुख्य रूप में रेडियो पर निर्भर हैं, जो इण्टरनेट मंचों, पॉडकास्ट और स्मार्ट फ़ोन जैसे साधनों से प्रसारित होते हैं.

रेडियो ने, एक डिजिटल अवतार रूप धारण कर लिया है, मगर फिर भी इसने ना केवल अपने समर्पित श्रोताओं को अपने साथ रखा है, बल्कि नए और युवा श्रोता भी अपने साथ जोड़े हैं.

जेरोम बताते हैं, “टेलीविज़न शुरू होने के तुरन्त बाद से ही, इस विचार पर काफ़ी लम्बे समय से बात होती रही है कि रेडियो जल्द ही ख़त्म हो जाएगा, मगर मेरा ख़याल है कि रेडियो की, लुप्त होने की कोई योजना नहीं है.”

वो कहते हैं, “इससे भी ज़्यादा, रेडियो आज भी संचार का सबसे लोकप्रिय साधन बना हुआ है. रेडियो, आज भी ऐसे समय उपलब्ध रहता है जब अन्य संचार साधन काम नहीं करते हैं. उसका एक उदाहरण, 2010 में हेती में आया भूकम्प का समय है.”

अद्वितीय पहुँच

यूएन न्यूज़ के साथ अपने अनुभव साझा करते हुए महासचिव के निजी दूत मैथ्यू निमेत्ज़.बाईं तरफ़ हैं - यूएन न्यूज़ रूसी यूनिट की पूर्व चीफ यैलेना
UN News/Video screen grab
यूएन न्यूज़ के साथ अपने अनुभव साझा करते हुए महासचिव के निजी दूत मैथ्यू निमेत्ज़.बाईं तरफ़ हैं - यूएन न्यूज़ रूसी यूनिट की पूर्व चीफ यैलेना

नेपाल में, 2015 आए भूकम्प ने, बीबीसी रेडियो और अन्य परम्परागत ध्वनि आधारित स्टेशन, मज़बूती और नियमित रूप से काम कर रहे थे, जिनके ज़रिये महत्वपूर्ण जीवनरक्षक जानकारी प्राप्त हो रही थी, वो भी ऐसे में जब दूरदराज़ के इलाक़ों में स्थित समुदायों का, राजधानी से सम्पर्क टूट गया था. मीडिया के अन्य रूप काफ़ी बाद में सक्रिय हो सके थे.

उनका ये भी कहना है कि रेडियो, अल्पसंख्यकों और अलग-अलग समुदायों की आवाज़ आगे बढ़ाने के एक प्रभावशाली साधन के रूप में काम करता है क्योंकि इसके लिये महंगे उपकरणों के वास्ते धन की ज़रूरत नही है या फिर ऑनलाइन मीडिया स्ट्रीम की भी ज़रूरत नहीं है.

यैलेना का मानना है कि टेलीविज़न या अन्य मीडिया से अलग, रेडियो, ख़ुद से प्रसारित होने वाली आवाज़ों और श्रोताओं के दरम्यान, ज़्यादा निकट सम्बन्ध बनाता है.

“टेलीविज़न की तरह, आमतौर पर रेडियो और पॉडकास्ट को, पूरे परिवार के साथ बैठकर सुनने की ज़रूरत नहीं होती है या फिर किन्हीं दोस्तों की भी ज़रूरत नहीं है. रेडियो कार में सुना जा सकता है, या फिर टहलते हुए भी, और क़सरत करते हुए भी. शायद यही वजह है कि रेडियो आज भी, इतना प्रभावशाली, भरोसेमन्द, टिकाऊ और सर्वत्र उपलब्ध है.”