‘बॉडीराइट’: ऑनलाइन माध्यमों पर लिंग-आधारित हिंसा की रोकथाम के लिये मुहिम

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) ने ऑनलाइन हिंसा की बढ़ती घटनाओं पर लगाम कसने और साइबर हिंसा से व्यक्तियों की रक्षा के लिये, कॉपीराइट की तर्ज़ पर, ‘बॉडीराइट’ नामक एक मुहिम की शुरुआत की है.
साइबर माध्यमों पर परेशान किये जाने, नफ़रत भरे सन्देशों व भाषणों से लेकर, किसी व्यक्ति की निजी पहचान व जानकारी सार्वजनिक किये जाने, और बिना सहमति के तस्वीरों व वीडियों का इस्तेमाल किया जाना, ऑनलाइन हिंसा की ऐसी बढ़ती घटनाओं पर चिन्ता भी बढ़ रही है.
Did you know that a song or a logo is more protected online than images of your body? Only by demanding our #bodyright can we curb the gender-based violence inflicted every day on screens around the world.Join @UNFPA to help #ENDViolence online: https://t.co/mNIZUB79Fi#16Days pic.twitter.com/4damb8opsF
Atayeshe
‘बॉडीराइट’ मुहिम के ज़रिये यह सन्देश दिया जा रहा है कि कॉरपोरेट पहचान (लोगो) और कॉपीराइट की गई बौद्धिक सम्पदा को, व्यक्तियों की तस्वीरों की तुलना में अधिक मूल्यवान माना जाता है.
मानव शरीरों की तस्वीरों की तुलना में उनकी ऑनलाइन माध्यमों पर बेहतर सुरक्षा भी सुनिश्चित की जाती है.
मगर, लोगों की तस्वीरों को अक्सर बिना सहमति के और दुर्भावनापूर्ण ढँग से इण्टरनैट पर अपलोड कर दिया जाता है.
यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य व अधिकारों के लिये प्रयासरत यूएन एजेंसी की कार्यकारी निदेशक नतालिया कानेम ने कहा, “यह समय है जब टैक्नॉलॉजी कम्पनियों और नीतिनिर्धारकों को डिजिटल हिंसा को गम्भीरता से लेना होगा – बिलकुल अभी.”
सभी लोगों से बॉडीराइट मुहिम में शामिल होने की पुकार लगाई गई है ताकि, नीतिनिर्धारकों, कम्पनियों और व्यक्तियों की जवाबदेही तय की जा सके.
यूएन एजेंसी के अनुसार, महिलाओं, लड़कियों, नस्लीय व जातीय अल्पसंख्यकों, एलजीबीटीक्यू+ समुदाय, और हाशिएकरण का शिकार समूहों को ऑनलाइन माध्यमों पर कमतर आँका जाता है, उनका शोषण व अधिकारों का हनन होता है.
इस मुहिम के तहत, ⓑ प्रतीक के ज़रिये यह बताया जा रहा है कि उनके अधिकारों का हनन नहीं किया जाएगा.
इस प्रतीक को इस वैबपेज से डाउनलोड करके, या इन्स्टाग्राम स्टोरीज़ में स्टिकर के इस्तेमाल के ज़रिये किसी तस्वीर में जोड़ा जा सकता है.
डॉक्टर कानेम ने कहा कि ऑनलाइन जगत, लिंग-आधारित हिंसा के एक नए मोर्चे के रूप में उभर रहा है, जोकि अनवरत, सीमाओं से परे और अक्सर बेनाम है.
उन्होंने कहा कि वास्तविकता तो यह है कि ऑनलाइन माध्यमों पर, लोगों का अपने शरीरों पर अधिकार नहीं है.
अनेक देशों में ऑनलाइन हिंसा को ग़ैरक़ानूनी क़रार देने वाले क़ानूनों की कमी है. इसकी वजह से शोषण करने वाली तस्वीरों को ऑनलाइन माध्यमों से हटाने का प्रयास कर रहे व्यक्तियों के पास क़ानूनी अधिकार कम ही हैं.
जो क़ानूनी अधिकार मौजूद भी हैं, उन्हें लागू करने में भी एक लम्बी प्रक्रिया का पालन करना होता है.
किसी व्यक्ति द्वारा जब कभी संगीत या फ़िल्म के कॉपीराइट का उल्लंघन होता है, तो डिजिटल प्लैटफ़ॉर्म तत्काल सामग्री को हटा देते हैं.
देशों की सरकारों ने भी कॉपीराइट उल्लंघन को ग़ैरक़ानूनी बनाने वाले क़ानून पारित किये हैं. डिजिटल प्लैटफ़ॉर्म ने ऐसे तरीक़ों को खोजा है, जिनसे कॉपीराइट वाली सामग्री के अनाधिकृत इस्तेमाल की शिनाख़्त व रोकथाम की जा सकती है.
यूएन जनसंख्या कोष का मानना है कि यही बचाव उपाय व्यक्तियों और उनकी तस्वीरों के लिये सम्भव होने चाहिये.
एक अनुमान के अनुसार, हर 10 में 9 महिलाओं का मानना है कि ऑनलाइन हिंसा से उनके कल्याण पर असर पड़ता है.
एक-तिहाई से अधिक महिलाओं के अनुसार, साइबर हिंसा की वजह से उनके मानसिक स्वास्थ्य के लिये मुश्किलें खड़ी हो रही हैं.
डिजिटल हिंसा के कारण स्व-अभिव्यक्ति के वास्तविक रूपों के लिये अवरोध खड़े होते हैं, और ऑनलाइन व सोशल मीडिया पर निर्भर रहने वाले व्यक्तियों का पेशेवर जीवन व आजीविकाएँ प्रभावित होती हैं.
ऑनलाइन हिंसा से महिलाओं की आवाज़ों को भी दबाया जाता है.
‘बॉडीराइट’पहल, महिलाओं के विरुद्ध हिंसा के मुद्दे पर 16 दिनों तक चलने वाली एक व्यापक मुहिम का हिस्सा है, जोकि 10 दिसम्बर तक चलेगी.
यूएन एजेंसी ने “The Virtual Is Real” नामक वैबसाइट भी शुरू की है, जिसमें दुनिया भर से डिजिटल हिंसा के पीड़ितों की व्यथा को बयाँ किया गया है.
साथ ही, मानवाधिकार हनन के मामलों के सिलसिले में यूएन एजेंसी के नवाचारी कामकाज को भी पेश किया गया है.