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इण्डोनेशिया में शरणार्थियों का टीकाकरण, सर्वजन के लिये लाभप्रद

DKI जकार्ता के गवर्नर, UNHCR इण्डोनेशिया के प्रतिनिधि और KADIN (इण्डोनेशिया चेम्बर्स ऑफ कॉमर्स एण्ड इन्डस्ट्री) के सदस्यों के साथ, एक युवा शरणार्थी को टीका लगते हुए देख रहे हैं.
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DKI जकार्ता के गवर्नर, UNHCR इण्डोनेशिया के प्रतिनिधि और KADIN (इण्डोनेशिया चेम्बर्स ऑफ कॉमर्स एण्ड इन्डस्ट्री) के सदस्यों के साथ, एक युवा शरणार्थी को टीका लगते हुए देख रहे हैं.

इण्डोनेशिया में शरणार्थियों का टीकाकरण, सर्वजन के लिये लाभप्रद

स्वास्थ्य

इण्डोनेशिया में रह रहे शरणार्थी, कोविड-19 टीकाकरण के मामले में बाक़ी आबादी से बहुत पीछे हैं. इनमें एक बड़ी संख्या अफ़ग़ानिस्तान में संकट के कारण, इण्डोनेशिया में शरण लेने वाले अफ़ग़ान शरणार्थियों की है. संयुक्त राष्ट्र, इन हालात को बदलने के लिये प्रयासरत है.

कुछ ही दिन पहले, अली मदद इब्राहिमी अफ़ग़ानिस्तान के एक बुज़ुर्ग व्यक्ति को, जकार्ता के मध्यवर्ती ज़िले में बड़े तम्बू के नीचे पंजीकरण मेज़ पर ले गए.

वहाँ, उन्होंने अफ़गान शरणार्थियों के लिये निर्देशों का दारी भाषा में अनुवाद किया, और फिर दोनों एक बड़े हॉल में चले गए, जहाँ नीली वर्दी वाले अधिकारी पंक्तियों में मेज़ों के पीछे बैठे थे.

वह तब तक उस आदमी के साथ रहे, जब तक कि उनके बाएँ हाथ में कोविड-19 वैक्सीन का टीका सुरक्षित तरीक़ें से नहीं लगा दिया गया.

अली मदद इब्राहिमी ख़ुद एक अफ़ग़ान शरणार्थी हैं और 2019 से संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी एजेंसी, UNHCR के साथ एक दुभाषिये के रूप में काम करते हैं.

एक महीने पहले तक वो वर्चुअल रूप से ही अपना काम कर रहे थे. कोविड-19 के लिये सरकारी नियमों के मुताबिक़, पड़ोस में स्थित अफ़गान शरणार्थी इलाक़े में बस से पहुँचने के लिये भी वैक्सीन प्रमाण पत्र ज़रूरी था.

लेकिन सितम्बर के अन्त तक इसमें बदलाव आया, जब अली मदद इब्राहिमी, संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित अभियान के कारण, इण्डोनेशिया में पूर्ण रूप से टीकाकृत होने वाले पहले शरणार्थियों में से एक बन गए. 

लगभग उसी समय, 21 सितम्बर को, इण्डोनेशिया के स्वास्थ्य मंत्रालय के एक नए निर्देश में, इण्डोनेशिया में 13 हज़ार 273 शरणार्थियों के लिये टीकाकरण तक पहुँच में नाटकीय रूप से वृद्धि करने का वादा किया गया, जो देश में सबसे कमज़ोर समूहों में से एक के लिये अधिक समावेशन की दिशा में व्यापक क़दम था.

वो कहते हैं, "मैं, अपने और अन्य शरणार्थियों के लिये टीके उपलब्ध कराने के लिये, संयुक्त राष्ट्र की टीम का बहुत आभारी हूँ. अब जब मुझे पूरा टीका लग गया है, तो मैं अपनी रोज़ाना की जिन्दगी में लौट सकता हूँ, और जिन साथी शरणार्थियों को दुभाषिये की ज़रूरत है, उनकी सहायता कर सकता हूँ.”

जकार्ता के बुलुंगन स्पोर्ट्स हॉल का एक दृश्य, जहाँ 7 अक्टूबर 2021 को शरणार्थी टीकाकरण कार्यक्रम सम्पन्न हुआ था. यह टीकाकरण कार्यक्रम UNHCR, DKI जकार्ता प्रान्तीय सरकार और KADIN (इण्डोनेशिया चेम्बर्स ऑफ कॉमर्स एण्ड इन्डस्ट्री) के सहयोग से आयोजित किया गया थ
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जकार्ता के बुलुंगन स्पोर्ट्स हॉल का एक दृश्य, जहाँ 7 अक्टूबर 2021 को शरणार्थी टीकाकरण कार्यक्रम सम्पन्न हुआ था. यह टीकाकरण कार्यक्रम UNHCR, DKI जकार्ता प्रान्तीय सरकार और KADIN (इण्डोनेशिया चेम्बर्स ऑफ कॉमर्स एण्ड इन्डस्ट्री) के सहयोग से आयोजित किया गया था

'बुरे सपने से भरे वो दो दिन'

इण्डोनेशिया में आधे से अधिक शरणार्थी अफ़गानिस्तान से हैं, और उनमें से अधिकतर हज़ारा अल्पसंख्यक जाति से हैं, जो मुख्यत: उस शिया मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक़ रखता है, जिन्हें वर्ष 2001 में अमेरिकी आक्रमण से पहले तालेबान ने बेरहमी से प्रताड़ित किया था.

बहुत से लोगों के लिये, अगस्त में तालेबान को काबुल पर फिर से कब्ज़ा करते देखना, उन विनाशकारी परिस्थितियों की याद ताज़ा कर गया, जिससे वो वहाँ से भागने के लिये मजबूर हो गए थे.

अन्तररष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन, ‘ह्यूमन राइट्स वॉच’ के अनुसार, अफ़गानिस्तान पर फिर से नियंत्रण करने के बाद से, तालेबान अधिकारियों ने हज़ारों हज़ारा परिवारों को उनके घरों से जबरन बेदखल कर दिया है.

एक अन्य मानवाधिकार संगठन, ‘एमनेस्टी इन्टरनेशनल’ ने अक्टूबर में बताया कि तालेबान ने डायकुण्डी प्रान्त में एक 17 वर्षीय लड़की सहित 13 हज़ारा लोगों की हत्या कर दी है.

पहले बेकरी का काम करने वाले, अली मदद इब्राहिमी के लिये, ऐसी खबरें जून 2013 के उस दिन की यादें ताज़ा कर गईं, जब तालेबान सैनिकों ने उन्हें अफ़गानिस्तान के कन्धार प्रान्त में बेकरी के लिये सामान ख़रीदने जाते समय रोक दिया था.

फिर उनपर अमेरिकी सैनिकों को ब्रेड बेचने का आरोप लगाते हुए, हिरासत में लेकर उन्हें बहुत प्रताड़ित किया.

अली मदद इब्राहिमी, अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा के डर से, अपनी पत्नी, एक बच्चे और एक नवजात बेटी को छोड़कर अफ़गानिस्तान से भागने पर मजबूर हो गए. वे कहते हैं, "वो दो दिन बुरे सपने के समान थे. मैं भाग्यशाली था कि उन्होंने मुझे आख़िरकार रिहा कर दिया."

पाकिस्तान में सीमा पार करने के बाद, एक तस्कर ने अली मदद इब्राहिमी को इण्डोनेशिया जाने के लिये मनाया. उन्हें बताया गया कि वहाँ वो फिर से ज़िन्दगी शुरू कर सकते हैं. लेकिन यह सच नहीं निकला और वह पिछले आठ वर्षों से जकार्ता में ही रहने को मजबूर हैं.

एक शरणार्थी महिला को सिनोफार्म कोविड-19 वैक्सीन का पहला टीका लगाया जा रहा है.
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एक शरणार्थी महिला को सिनोफार्म कोविड-19 वैक्सीन का पहला टीका लगाया जा रहा है.

बुनियादी मानवाधिकारों पर प्रतिबन्ध

इण्डोनेशिया में कई शरणार्थियों ने इतने ही लम्बे समय से इन्तज़ार कर रहे हैं. इण्डोनेशिया ख़ुद को एक पारगमन देश मानता है, जहाँ से शरणार्थी और आश्रय चाहने वाले लोग किसी दूसरे सुरक्षित देश में जा सकते हैं.

लेकिन चूँकि किसी तीसरे देश में पुनर्वास के अवसर लगभग न के बराबर हैं, इसलिये शरणार्थी और आश्रय चाहने वाले बहुत से लोग, वर्षों तक यहीं फँसे रह जाते हैं और उनके पुनर्वास या सुरक्षित वापसी की कोई सम्भावना नहीं होती.

इण्डोनेशिया में शरणार्थियों की कठिनाई उनके बुनियादी मानवाधिकारों पर लगे प्रतिबन्धों से और बढ़ जाती है: उदाहरण के लिये, वो काम करने के अधिकार से वंचित हैं, और स्कूल तक उनकी पहुँच अक्सर बाधित होती है.

इण्डोनेशिया, शरणार्थियों पर 1951 के संयुक्त राष्ट्र कन्वेन्शन का हिस्सा नहीं है. यह प्रमुख क़ानूनी ढाँचा है, जो परिभाषित करता है कि कौन व्यक्ति शरणार्थी है और उन अधिकारों का विवरण देता है जिनके शरणार्थी हकदार हैं.

लेकिन, इण्डोनेशिया में यूएनएचसीआर की प्रतिनिधि, एन मेयमान का कहना है कि चूँकि इण्डोनेशिया ने प्रमुख मानवाधिकार सन्धियों की पुष्टि की है "इसलिये यह सुनिश्चित करना उसका अन्तरराष्ट्रीय दायित्व है कि शरणार्थियों को उनके मूल अधिकार मिल सकें."

'कोविड-19 सीमाओं को नहीं जानता'

राष्ट्रीय स्तर पर कोविड-19 टीकाकरण तक पहुँच में विसंगतियाँ, व्यापक असमानताओं को दर्शाती हैं जिससे महामारी के प्रसार को रोकने के वैश्विक प्रयास बाधित हुए हैं.

इण्डोनेशिया की यूएन रैज़िडेंट कोऑर्डिनेटर, वैलेरी जुलियाण्ड कहती हैं, "कोविड-19 सीमाओं को नहीं जानता, निम्न, मध्यम और उच्च आय वाली अर्थव्यवस्थाओं के बीच अन्तर नहीं करता, न ही यह परवाह करता है कि आप ग़रीब हैं या अमीर."

वो कहती हैं, "स्वास्थ्य मंत्रालय का नया निर्देश किसी को पीछे नहीं छोड़ने की दिशा में एक महत्वपूर्ण क़दम है और देश के कुछ सबसे कमज़ोर समुदायों के साथ एकजुटता की एक स्वागत योग्य अभिव्यक्ति है."

हालाँकि कोविड-19 ने उन्नत अर्थव्यवस्थाओं और विकासशील दुनिया दोनों को तबाह कर दिया है, शरणार्थी इससे सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए हैं. जबकि कई सरकारों ने महामारी के आर्थिक प्रभाव को दूर करने के लिये सब्सिडी प्रदान की और स्कूली बच्चों को दूरस्थ शिक्षा में मदद की, शरणार्थियों को अक्सर ऐसे उपायों तक पहुँच हासिल नहीं थी.

इस बीच, लगभग 86 प्रतिशत शरणार्थी ऐसे विकासशील और कम आय वाले देशों में हैं, जिनकी स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली कम सहनसक्षम है और जो अपनी आबादी की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये भी संघर्ष करते हैं.

टीकाकरण उन स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों पर दबाव को कम कर सकता है, लेकिन शरणार्थियों की अक्सर उस तक आवश्यक पहुँच नहीं होती.

यूएनएचसीआर का कहना है कि इण्डोनेशिया में शरणार्थियों की स्थिति की अनिश्चितता के कारण शरणार्थियों के मानसिक स्वास्थ्य में गिरावट आई है. शरणार्थी और लेखक, हुसैन शाह रेजाई ने हाल ही में जकार्ता पोस्ट अखबार में प्रकाशित एक लेख में दावा किया कि पिछले दो वर्षों में 12 शरणार्थियों की आत्महत्या से मौत हुई है.

शरणार्थी, खेल के कक्ष के ठीक बाहर एक बड़े तम्बू के नीचे, टीकाकरण की प्रतीक्षा कर रहे हैं.
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शरणार्थी, खेल के कक्ष के ठीक बाहर एक बड़े तम्बू के नीचे, टीकाकरण की प्रतीक्षा कर रहे हैं.

शरणार्थी एक सम्पदा हैं

एन मेयमान मानती हैं कि जिस तरह से कोविड-19 टीकाकरण तक समान पहुँच, शरणार्थियों और उनकी मेज़बानी करने वाले समुदायों, दोनों को लाभान्वित करती है, उसी तरह शरणार्थियों के लिये शिक्षा व रोज़गार तक बेहतर पहुँच भी सार्वभौमिक रूप से लाभकारी होती है.

वो कहती हैं, "हम शरणार्थियों के समावेशन की वकालत करना जारी रखेंगे और सरकार को यह समझाने की कोशिश करते रहेंगे कि शरणार्थी एक अमूल्य सम्पदा हैं. शरणार्थी उत्पादकता लाते हैं, वे व्यवसाय शुरू कर सकते हैं जो स्थानीय लोगों को रोज़गार देते हैं, करों का भुगतान करते हैं और आय में इज़ाफा करते हैं.

"वे विभिन्न प्रथाओं, खाद्य पदार्थों और धर्मों को लाकर मेज़बान देशों की संस्कृति को समृद्ध करते हैं. और मौक़ा मिलने पर, वे एक मज़बूत व अधिक जीवन्त दुनिया के निर्माण में योगदान दे सकते हैं."

अली मदद इब्राहिमी के लिये, अधिक समावेशन और एक सभ्य जीवन की दिशा में टीकाकरण एक महत्वपूर्ण क़दम था. वो कहते हैं, "मुझे इण्डोनेशिया में रहने में कोई आपत्ति नहीं है, लोग बहुत अच्छे हैं. मुझे उम्मीद है कि एक दिन मैं अपनी ख़ुद की बेकरी खोल सकता हूँ और अगर मैं यहाँ पुनर्वासित हो पाया तो अफ़गान ब्रेड को यहाँ या किसी अन्य देश में लोकप्रिय बना सकता हूँ."

इण्डोनेशिया में संयुक्त राष्ट्र

  • अब तक, कोवैक्स प्रणाली के तहत, यूनीसेफ़ और विश्व स्वास्थ्य संगठन के सहयोग से, कोविड-19 वैक्सीन की 4 करोड़ से अधिक ख़ुराकें इण्डोनेशिया को दी गई हैं. लेकिन निजी योजनाओं और कुछ स्थानीय गवर्नरों के कारण, शरणार्थियों को कुछ समय पहले तक राष्ट्रीय अभियान में शामिल नहीं किया जा सका था.
     
  • जिस निजी योजना के तहत अली मदद इब्राहिमी को टीका लगा, उसे संयुक्त रूप से यूएनएचसीआर, आईओएम, और यूनीसेफ़ व रैज़िडेन्ट कोऑर्डिनेटर कार्यालय ने आयोजित किया था.
     
  • यह निर्देश, UNHCR द्वारा जारी पहचान दस्तावेज़ प्राप्त शरणार्थियों को निजी क्षेत्र की टीकाकरण योजनाओं और राष्ट्रीय कोविड-19 टीकाकरण योजना तक पहुँचने की अनुमति देता है, ख़ासतौर पर उन इलाक़ों में जहाँ कम से कम 70% आबादी को पहला टीका लगा हो. इसका मतलब है कि इण्डोनेशिया के 34 प्रान्तों में से छह में शरणार्थी अब कोविड-19 टीके लगवा सकेंगे.
     
  • यूएनएचसीआर की गणना के मुताबिक़, अब तक इण्डोनेशिया के 13 हज़ार 273 शरणार्थियों में से 4 हज़ार 800 से अधिक आबादी, यानि लगभग 36%, को कम से कम एक कोविड-19 टीका लग चुका है. यह आम आबादी के 58% से थोड़ी ही कम है, जिन्हें इण्डोनेशियाई सरकार के अनुसार 31 अक्टूबर तक कम से कम एक टीका लग चुका है.
     
  • यूएनएचसीआर यह सुनिश्चित करने के लिये इण्डोनेशियाई सरकार के साथ मिलकर काम करता है कि शरणार्थी अधिक स्थाई समाधान की प्रतीक्षा के दौरान सम्मान के साथ रह सकें. इसमें, अधिक से अधिक शरणार्थी बच्चों के लिये स्कूलों में नामांकन हेतु स्थानीय सरकारों के साथ निरन्तर सम्वाद, शरणार्थियों के लिये डिजिटल और उद्यमिता प्रशिक्षण प्रदान करना, एवं शरणार्थियों की कोविड-19 टीकों तक पहुँच समेत, सभी स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच की वकालत करना शामिल है.