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इस्लामोफ़ोबिया के विरुद्ध प्रथम अन्तरराष्ट्रीय दिवस पर ठोस कार्रवाई की पुकार

अफ़ग़ानिस्तान के मज़ार-ए-शरीफ़ शहर में, ऐतिहासिक हज़रत अली मस्जिद के प्रांगण में शान्ति कबूतर.
UN Photo/Helena Mulkerns
अफ़ग़ानिस्तान के मज़ार-ए-शरीफ़ शहर में, ऐतिहासिक हज़रत अली मस्जिद के प्रांगण में शान्ति कबूतर.

इस्लामोफ़ोबिया के विरुद्ध प्रथम अन्तरराष्ट्रीय दिवस पर ठोस कार्रवाई की पुकार

संस्कृति और शिक्षा

संयुक्त राष्ट्र ने शुक्रवार, 10 मार्च को इस्लामोफ़ोबिया के विरुद्ध प्रथम अन्तरराष्ट्रीय दिवस मनाया है जिस अवसर पर, यूएन महासभा में एक विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया, जहाँ वक्ताओं ने मुसलमानों के ख़िलाफ़ बढ़ती नफ़रत, भेदभाव और हिंसा को देखते हुए, ठोस कार्रवाई की ज़रूरत पर बल दिया.

यूएन महासभा ने इस्लामोफ़ोबिया के ख़िलाफ़, हर वर्ष 15 मार्च को, अन्तरराष्ट्रीय दिवस मनाने का प्रस्ताव, मार्च 2022 में सर्वसम्मति से पारित किया था.

प्रस्ताव में ऐसे वैश्विक संवाद का आहवान किया गया है जो सहिष्णुता, शान्ति, मानवाधिकारों व धार्मिक विविधता के लिए सम्मान को प्रोत्साहित करे.

यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने इस अवसर पर कहा कि दुनिया भर में लगभग दो अरब मुसलमान, जोकि पृथ्वी ग्रह के हर कोने में बसते हैं – “शानदार विविधता के साथ मानवता की झलक पेश करते हैं”. मगर फिर भी अक्सर उन्हें केवल अपनी आस्था के कारण, भेदभाव और पूर्वाग्रह का सामना करना पड़ता है.

उससे भी ज़्यादा ये बात कि मुस्लिम महिलाओं को तिहरे भेदभाव का सामना करना पड़ सकता है, उनकी लैंगिक पहचान, जातीयता, और आस्था (धर्म) के कारण.

इस्लामोफ़ोबिया एक ‘महामारी’

इस उच्चस्तरीय कार्यक्रम की सह-मेज़बानी पाकिस्तान ने की, जिसके विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ज़रदारी ने ज़ोर देकर कहा कि इस्लाम, शान्ति, सहिष्णुता और बहुलवाद का एक मज़हब है.

उन्होंने कहा कि वैसे तो इस्लामोफ़ोबिया कोई नई बात नहीं है, मगर “यह हमारे दौर की एक दुखद वास्तविकता है”, जो लगातार बढ़ और फैल रही है.

पाकिस्तानी विदेश मंत्री ने कहा, “9/11 की त्रासदी के बाद से, दुनिया भर में मुसलमानों और इस्लाम के ख़िलाफ़ शत्रुता
और संस्थागत सन्देह, एक महामारी के स्तर पर बढ़ा है.”

“ एक ऐसा आख्यान (Narrative) विकसित और प्रचारित किया गया है जो मुस्लिम समुदायों और उनके धर्म को, हिंसा और ख़तरे के साथ जोड़ता है.”

बिलावल भुट्टो ज़रदारी, इस्लामी सहयोग संगठन (OIC) के विदेश मंत्रियो की परिषद के अध्यक्ष भी हैं.

उन्होंने कहा, “इस्लोमोफ़ोबिया का आख्यान केवल अतिवादियों व सीमित दुष्प्रचार तक सीमित नहीं, बल्कि इसने दुखद रूप से मुख्य धारा के मीडिया, नीति-निर्माताओं और देश मशीनरी में भी स्वीकृति बना ली है.”

सबकी है भूमिका

यूएन महासभा के अध्यक्ष कसाबा कोरोसी ने ध्यान दिलाया कि इस्लामोफ़ोबिया की जड़ें, दरअसल अन्य लोगों या अजनबियों से नफ़रत करने की प्रवृत्ति में बैठी हुई हैं, जो भेदभावपूर्ण प्रथाओं, यात्रा पाबन्दियों, नफ़रत भरी भाषा, डराने-धमकाने और ख़ुद से भिन्न लोगों के उत्पीड़न व उन्हें निशाना बनाने के रूप में नज़र आती हैं.

उन्होंने देशों से धर्म या आस्था की स्वतंत्रता अक्षुण्ण बनाए रखने का आग्रह किया, जिसकी गारंटी सिविल और राजनैतिक अधिकारों पर अन्तरराष्ट्रीय सन्धि में भी दी गई है.

महासभा अध्यक्ष ने कहा, “इस्लामोफ़ोबिया या इसी तरह के बर्तावों को चुनौती देने, अन्याय का सामना करने और मज़हब या आस्था या उनकी अनुपस्थिति के आधार पर भेदभाव की निन्दा करने की ज़िम्मेदारी हम सब पर है.”

कसाबा कोरोसी ने कहा कि इस तरह की नफ़रतें और पूर्वाग्रह क्योंकि होते हैं, ये समझने के लिए शिक्षा कुंजी का काम करती है. और शिक्षा ही, एक दूसरे के बारे में लोगों की परस्पर समझ में बदलाव के लिए बहुत मददगार साबित हो सकती है.

यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश, इस्लामोफ़ोबिया के विरुद्ध अन्तरराष्ट्रीय दिवस के अवसर पर आयोजित एक उच्चस्तरीय कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए.
UN Photo/Loey Felipe

नफ़रत में बढ़ोत्तरी

यूएन महासचिव एंतोनिय गुटेरेश ने विशेष कार्यक्रम के प्रतिभागियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि मुस्लिम जन जिस बढ़ती नफ़रत का सामना करते हैं, वो ऐसा अकेला मामला नहीं है.

उन्होंने कहा, “यह जातीय-राष्ट्रवाद, नव नाज़ी श्वेत वर्चस्ववादी विचारधाराओं के फिर से सिर उठाने और उस हिंसा का निष्ठुर हिस्सा है, जो मुसलमानों, यहूदियों, कुछ ईसाई अल्पसंख्यक समुदायों व अन्य सहित कमज़ोर आबादियों को निशाना बनाती है.”

“भेदभाव हम सभी को खोखला और कमज़ोर बनाता है. और इसके ख़िलाफ़ ख़ड़े होने की ज़िम्मेदारी हम सभी की है. हम पूर्वाग्रह, नफ़रत और भेदभाव पर, किसी भी स्थिति में आँखें नहीं मोड़ सकते.”

यूएन महासचिव ने ज़ोर देकर कहा, “हमें अपनी चौकसी मज़बूत करनी होगी.” इसके लिए उन्होंने धार्मिक स्थलों की सुरक्षा के लिए कार्रवाई योजना जैसे उपायों को भी रेखांकित किया.

यूएन प्रमुख ने सामाजिक समरसता में, राजनैतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक संसाधन निवेश बढ़ाने की भी पुकार लगाई.

ऑनलाइन नफ़रत को रोकें

एंतोनियो गुटेरेश ने कहा कि हमें हर जगह पूर्वाग्रह, भेदभाव और नफ़रत का मुक़ाबला करना होगा, चाहे वो अपनी कुरूपीय मौजूदगी कहीं दिखाए. इनमें इंटरनैट मंचों पर जंगल की आग की तरफ़ फैलने वाली नफ़रत का मुक़ाबला करने के उपाय भी शामिल हैं.

“इस लक्ष्य के लिए, संयुक्त राष्ट्र, सुरक्षा उपाय तैयार करने और उन्हें लागू करने के लिये, देशों की सरकारों, नियामकों, प्रौद्योगिकी कम्पनियों और मीडिया के साथ मिलकर काम कर रहा है.”

करुणा व एकजुटता

संयुक्त राष्ट्र ने जो इससे सम्बन्धित नीतियाँ पहले ही जारी की हैं उनमें ‘हेट स्पीट’ पर रणनीति व कार्य योजना, और हमारा साझा एजेंडा शामिल हैं जिनमें सभी लोगों के लिए, एक ज़्यादा समावेशी और सुरक्षित डिजिटल भविष्य का ख़ाका पेश किया गया है.

यूएन महासचिव ने दुनिया भर की ऐसी धार्मिक नेतृत्व हस्तियों को भी धन्यवाद दिया जो संवाद और अन्तर-धार्मिक सदभाव को बढ़ावा देने के लिए एकजुट हुए हैं.

यूएन प्रमुख ने 2019 के “विश्व शान्ति व सह-निवास के लिए मानव बन्धुत्व” घोषणा-पत्र को, करुणा व मानवीय एकजुटता का एक मॉडल क़रार दिया, जिसे पोप फ्रांसिस और अल अज़हर यूनिवर्सिटी (मिस्र) के प्रमुख इमाम शेख़ अहमद अल तायेब ने संयुक्त रूप से तैयार किया है.