थाईलैण्ड: शाही परिवार के 'निरादर' आरोपों पर क़ानून का बढ़ता इस्तेमाल चिन्ताजनक
संयुक्त राष्ट्र के स्वतन्त्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने थाईलैण्ड में ऐसे क़ानूनों (lèse-majesté) के बढ़ते इस्तेमाल पर गम्भीर चिन्ता ज़ाहिर की है जिनमें लोगों को शाही परिवार के कथित निरादर के आरोपों में कड़ी सज़ाएँ सुनाई जा रही है. यूएन विशेषज्ञों ने सचेत किया है कि इन क़ानूनों के इस्तेमाल से नागरिकों के लिये स्थान सिकुड़ रहा है और बुनियादी अधिकारों के इस्तेमाल के लिये ख़तरा पैदा हो गया है.
थाईलैण्ड की आपराधिक दण्ड संहिता (lèse-majesté) के प्रावधानों में, शाही परिवार का तिरस्कार या निरादर किये जाने या फिर उन्हें धमकी दिये जाने पर पाबन्दी है.
ऐसे मामलों में दोषी पाए गए लोगों को गम्भीर सज़ा भुगतनी पड़ती है.
🇹🇭 UN experts express grave concerns over #Thailand’s increasingly severe use of lèse-majesté laws to curtail criticism of the monarchy. They are alarmed that a woman has been sentenced to over 43 years in prison for insulting the royal family. Read 👉 https://t.co/FZmyceVQ02 pic.twitter.com/c2w8Vuzd7B
UN_SPExperts
विचार और अभिव्यक्ति की आज़ादी मामलों पर यूएन की विशेष रैपोर्टेयर आयरीन ख़ान सहित, अन्य मानवाधिकार विशेषज्ञों ने इस सम्बन्ध में एक वक्तव्य जारी किया है.
यूएन विशेषज्ञों ने कहा, “हमने बार-बार ज़ोर देकर कहा है कि lèse-majesté क़ानूनों का एक लोकतान्त्रिक देश में कोई स्थान नहीं है.”
“इनका सख़्त इस्तेमाल, लगातार बढ़ने से अभिव्यक्ति की आज़ादी पर भयंकर असर हुआ है, जिससे थाईलैण्ड में बुनियादी अधिकारों और नागरिकों के लिये स्थान सिकुड़ रहा है.”
विशेषज्ञों ने, सोमवार को जारी प्रेस विज्ञप्ति में 60 वर्षीय पूर्व नौकरशाह अंचन प्रीलर्त के मामले पर चिन्ता जताई है जिन्हें शाही परिवार का निरादर करने के आरोप में 43 साल क़ैद की सज़ा सुनाई गई है.
इस क़ानून के तहत दी जाने वाली सज़ाओं में यह सबसे गम्भीर प्रावधान है.
बताया गया है कि अंचन प्रीलर्त ने अपने फ़ेसबुक पेज पर, वर्ष 2014 और 2015 में ऐसे ऑडियो सन्देश शेयर किये जोकि शाही परिवार के लिये कथित रूप से अपमानजनक थे.
संयुक्त राष्ट्र के स्वतन्त्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने यह मामला पहली बार वर्ष 2016 मे उठाया था. शुरुआत में इस मामले की सुनवाई एक सैन्य अदालत में हुई है और उन्हें 87 वर्ष की सज़ा सुनाई गई.
इस मामले को, वर्ष 2019 में, सिविल कोर्ट में हस्तान्तरित कर दिया गया जहाँ अंचन प्रीलर्त ने अपना कथित अपराध स्वीकार कर लिया. इसके बाद उनकी सज़ा की अवधि घटा कर आधी कर दी गई.
लेकिन कोर्ट के इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ अपील दायर की गई है.
यूएन के विशेष रैपोर्टेयर ने कहा, “हम अपील कोर्ट से अंचन प्रीलर्त के मामले पर अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों के अनुरूप पुनर्विचार किये जाने और इस गम्भीर सज़ा को वापिस लिये जाने का आग्रह करते हैं.”
नाबालिग़ भी घेरे में
यूएन मानवाधिकार विशेषज्ञों के मुताबिक़, वैश्विक महामारी कोविड-19 से उपजी स्थिति के कारण लोकतन्त्र-समर्थक कार्यकर्ता अब ऑनलाइन माध्यमों पर ज़्यादा सक्रिय हैं.
लेकिन थाई सरकार ने lèse-majesté क़ानून के प्रावधानों को अब पहले से कहीं ज़्यादा सख़्ती से लागू करना शुरू कर दिया है. कुछ मामलों में तो नाबालिग़ों पर अभिव्यक्ति की आज़ादी के अधिकार का इस्तेमाल किये जाने पर गम्भीर आरोप तय किये गए हैं.
“हम वर्ष 2020 के अन्त से lèse-majesté मुक़दमों की बढ़ती संख्या और गम्भीर कारावास की सज़ाओं पर गहराई तक व्यथित हैं.”
यूएन विशेषज्ञों ने स्पष्ट किया है कि इस मुद्दे पर थाईलैण्ड की सरकार के साथ रचनात्मक सम्वाद को आगे बढ़ाया जा रहा है.
उन्होंने ध्यान दिलाते हुए कहा कि अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानूनों के तहत सार्वजनिक हस्तियाँ, और उच्च राजनैतिक पदाधिकारी भी आलोचना से परे नहीं हैं.
“ये तथ्य कि किसी सार्वजनिक हस्ती के बारे में, अभिव्यक्ति के कुछ रूपों को अपमानजनक या स्तब्धकारी समझा जा सकता है, ऐसे गम्भीर दण्ड थोपे जाने को न्यायोचित ठहराने के लिये पर्याप्त नहीं है.”
विशेष रैपोर्टेयर ने थाई सरकार से आग्रह किया है कि इन क़ानूनों की समीक्षा किये जाने और उन्हें रद्द किये जाने की आवश्यकता है.
उनके मुताबिक़, जो लोग ऐसे मामलों में आपराधिक मुक़दमों का सामना कर रहे हैं, उनके ख़िलाफ़ लगे आरोप वापिस लिये जाने होंगे.
साथ ही अपनी अभिव्यक्ति की आज़ादी और शान्तिपूर्ण सभा के अधिकार का इस्तेमाल करने के लिये बन्दी बनाये गए लोगों को रिहा किया जाना होगा.
स्पेशल रैपोर्टेयर और वर्किंग ग्रुप संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की विशेष प्रक्रिया का हिस्सा हैं. ये विशेष प्रक्रिया संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार व्यवस्था में सबसे बड़ी स्वतन्त्र संस्था है. ये दरअसल परिषद की स्वतन्त्र जाँच निगरानी प्रणाली है जो किसी ख़ास देश में किसी विशेष स्थिति या दुनिया भर में कुछ प्रमुख मुद्दों पर ध्यान केन्द्रित करती है. स्पेशल रैपोर्टेयर स्वैच्छिक रूप से काम करते हैं; वो संयक्त राष्ट्र के कर्मचारी नहीं होते हैं और उन्हें उनके काम के लिये, संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन नहीं मिलता है. ये रैपोर्टेयर किसी सरकार या संगठन से स्वतन्त्र होते हैं और वो अपनी निजी हैसियत में काम करते हैं.