थाईलैण्ड: सरकार से शान्तिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों को अनुमति देने का आग्रह
संयुक्त राष्ट्र के स्वतन्त्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने थाईलैण्ड में आपातकालीन हालात लागू किये जाने को एक बेहद कठोर क़दम क़रार देते हुए सरकार से आग्रह किया है कि देश की जनता को शान्तिपूर्वक एकत्र होने और आज़ाद ढँग से अपनी बात कहने के अधिकारों की गारण्टी मिलनी चाहिये.
अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार विशेषज्ञों ने बुधवार को जारी अपने एक वक्तव्य में शान्तिपूर्ण प्रदर्शनों के दमन पर रोक लगाने की पुकार लगाई है.
“आपाताकाल जैसे हालात थोपना उन कठोर उपायों की श्रृंखला में ताज़ा कड़ी है जिनका मक़सद शान्तिपूर्ण प्रदर्शनों का गला घोंटा जाना और विरोध की मुखर आवाज़ों का अपराधीकरण करना है.”
यूएन विशेषज्ञों ने स्थानीय प्रशासन से छात्रों, मानवाधिकार पैरोकारों और अन्य लोगों को शान्तिपूर्वक प्रदर्शनों में हिस्सा लेने की अनुमति देने का आग्रह किया है.
उन्होंने कहा है कि प्रदर्शनकारियों को आज़ादी के साथ, ऑनलाइन व ऑफ़लाइन, अपने मन की बात कहने, राजनैतिक विचार साझा करने की अनुमति मिलनी चाहिये और इसके लिये उन पर मुक़दमे नहीं थोपे जाने चाहिये.
अनावश्यक बल प्रयोग
ग़ौरतलब है कि 15 अक्टूबर को थाईलैण्ड की राजधानी बैंकॉक के आस-पास के इलाक़ों में गम्भीर आपातकालीन उपाय लागू कर दिये गए थे, जिनके तहत चार से ज़्यादा व्यक्तियों के एकत्र होने पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया गया था.
उसके बाद से पुलिस ने शान्तिपूर्ण ढँग से विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिये पानी की तेज़ बौछारों का इस्तेमाल भी किया है.
थाई प्रशासन ने एक सप्ताह पहले जारी किये गए ये आपातकालीन आदेश, गुरूवार को, सड़कों पर हिंसा थमने का हवाला देते हुए वापिस ले लिये हैं.
छात्रों के नेतृत्व में हो रहे इन विरोध-प्रदर्शनों में थाईलैण्ड के प्रधानमन्त्री से पद छोड़ने की माँग कर रहे हैं.
विशेषज्ञों ने चिन्ता जताई कि “सुरक्षा प्रशासन द्वारा शान्तिपूर्ण प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ अनावश्यक बल का इस्तेमाल किया जा रहा है.”
“ऐसी हिंसा से हालात के और ज़्यादा बिगड़ने का जोखिम होता है. हम थाई सरकार से शान्तिपूर्ण प्रदर्शनकारियों की आवाज़ दबाने के बजाय उनके साथ तत्काल एक खुला और वास्तविक सम्वाद स्थापित करने का आग्रह करते हैं.”
बुनियादी स्वतन्त्रताओं पर जोखिम
राजधानी बैकॉक में हज़ार लोगों ने लोकतन्त्र के पक्ष में हो रहे विरोध प्रदर्शनों में हिस्सा लिया है. इन प्रदर्शनों में सरकार और राजशाही में सुधार की माँग उठाई जा रही है.
13 अक्टूबर 2020 से अब तक लगभग 80 व्यक्ति गिरफ़्तार किये जा चुका हैं जिनमें 27 लोगों को अब भी हिरासत में रखा गया है.
कुछ प्रदर्शनकारियों पर थाईलैण्ड की आपराधिक संहिता के तहत देशद्रोह और ग़ैरक़ानूनी ढँग से एकत्र होने के मामलों में आरोप लगाये गए हैं.
अन्य व्यक्तियों पर ‘कम्पयूटर अपराध एक्ट’ के तहत सोशल मीडिया के ज़रिये लोगों से रैलियों में हिस्सा लेने का आहवान करने के आरोप लगे हैं.
राजशाही के ख़िलाफ़ कथित तौर पर हिंसा के लिये दो व्यक्तियों पर लगे आरोपों के तहत उन्हें उम्र क़ैद की सज़ा मिल सकती है.
स्वतन्त्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने इन आरोपों पर गम्भीर चिन्ता व्यक्त करते हुए थाई प्रशासन से उन व्यक्तियों को तत्काल और बिना किसी शर्त के रिहा करने की अपील की है जिन्हें महज़ अपने बुनियादी अधिकारों का इस्तेमाल करने की वजह से हिरासत में लिया गया था.
स्पेशल रैपोर्टेयर और वर्किंग ग्रुप संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की विशेष प्रक्रिया का हिस्सा हैं. ये विशेष प्रक्रिया संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार व्यवस्था में सबसे बड़ी स्वतन्त्र संस्था है. ये दरअसल परिषद की स्वतन्त्र जाँच निगरानी प्रणाली है जो किसी ख़ास देश में किसी विशेष स्थिति या दुनिया भर में कुछ प्रमुख मुद्दों पर ध्यान केन्द्रित करती है. स्पेशल रैपोर्टेयर स्वैच्छिक रूप से काम करते हैं; वो संयक्त राष्ट्र के कर्मचारी नहीं होते हैं और उन्हें उनके काम के लिये कोई वेतन नहीं मिलता है. ये रैपोर्टेयर किसी सरकार या संगठन से स्वतन्त्र होते हैं और वो अपनी निजी हैसियत में काम करते हैं.