घर और समुद्र में फँसे समुद्री नाविकों के लिये एक ‘अनचाहा कारावास’
वैश्विक महामारी कोविड-19 के कारण यात्रा और आवाजाही सम्बन्धी पाबन्दियों के कारण लाखों समुद्री नाविकों को अनुमान से कहीं लम्बे समय तक जहाज़ों पर रहने के लिये मजबूर होना पड़ा. छह महीने पहले इस समस्या के पहली बार सामने आने के बाद बड़ी संख्या में समुद्री नाविक अब भी अनिश्चितता भरे हालात में रहने के लिये मजबूर हैं.
वर्ष 2020 में कठिन हालात के बावजूद पूरे साल समुद्री परिवहन उद्योग को अपना कामकाज जारी रखने में सफलता मिली जिससे भोजन, दवाओं, और अन्य ज़रूरी सामग्री को दुनिया भर में पहुँचा पाना सम्भव हुआ है.
इसके परिणामस्वरूप कोविड-19 के कारण लागू हुई सख़्त पाबन्दियों के बावजूद दुकानों में ज़रूरी सामान की उपलब्धता को सुनिश्चित किया जा सका.
लेकिन वैश्विक महामारी और ऐहतियाती उपायों व पाबन्दियों के कारण बहुत से समुद्री नाविकों को लम्बे समय तक समुद्र में फँसे रहने के लिये मजबूर होना पड़ा. कुछ मामलों में तो एक साल से भी ज़्यादा समय तक.
वर्ष 2020 के अन्तिम दिनों में संयुक्त राष्ट्र एजेंसी (International Maritime Organization) ने अनुमान जताया है कि दुनिया भर में लगभग चार लाख समुद्री नाविक अब भी जहाजों पर फँसे हुए हैं.
यूएन एजेंसी के मुताबिक नाविकों के अनुबन्ध की अवधि ख़त्म होने के बावजूद वे स्वेदश नहीं लौट पा रहे हैं.
वहीं चार लाख अन्य नाविक पाबन्दियों के कारण अपने घरों में फँसे हुए हैं – उनके लिये जहाज़ों पर लौट पाने और अपने परिवारों के भरण-पोषण की व्यवस्था करना मुश्किल हो गया है.
मानसिक स्वास्थ्य पर असर
मौजूदा परिस्थितियों में समुद्री नाविकों के मानसिक स्वास्थ्य की भी कठिन परीक्षा हुई है. चीफ़ इन्जीनियर मैट फ़ोर्स्टर मुख्यत: मध्य पूर्व और एशिया क्षेत्र में एक तेल टैण्कर पर काम करते हैं.
उन्होंने यूएन न्यूज़ के साथ जुलाई 2020 में एक बातचीत के दौरान बताया था कि उनका कॉन्ट्रैक्ट पूरा हो गया था उसके बावजूद वह घर नहीं लौट पाये.
अपने दो छोटे बच्चों से अलग रह पाना उनके लिये बेहद कठिन साबित हुआ.
“मैंने पहले भी लम्बी अवधि के कॉन्ट्रैक्ट पर काम किया है लेकिन यह अलग है. इसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ा है क्योंकि इसका अन्त होता नज़र नहीं आता.”
“इससे मेरे परिवार पर भी ज़्यादा असर हुआ है. मेरे बच्चे हमेशा मुझसे पूछते हैं कि मैं घर कब आ रहा हूँ. उन्हें समझा पाना मेरे लिए मुश्किल है.”
मैट फ़ोर्स्टर अब ब्रिटेन वापिस आ चुके हैं और अपने बच्चों के साथ हैं. लेकिन उनके हालिया अनुभव ने उन्हें अपने करियर के बारे में सोचने के लिये मजबूर किया है.
“हम काम पर जाना, अपनी ज़िम्मेदारी निभाना चाहते थे और फिर घर आना चाहते थे. हम एक ऐसे अनुभव के लिये तैयार नहीं हुए थे जोकि एक अनचाहे कारावास की सज़ा जैसा था.”
उन्होंने कहा कि अगर काम पर लौटकर फिर छह महीनों के लिये उन्हें फँस जाना है तो फिर वापिस नहीं जाना चाहते.
“और ऐसा सिर्फ़ मेरा सोचना नहीं है. दुनिया भर में बहुत से ऐसे समुद्री नाविक हैं जो ऐसा ही मानते हैं. इसकी वजह से बहुत से लोग इस उद्दयोग को छोड़ देंगे.”
“हमारे मानवाधिकार हैं”
समुद्री मामलों की यूएन एजेंसी ने समुद्री नाविकों की व्यथा को मानवाधिकारों का उल्लंघन क़रार दिया है.
दिसम्बर 2020 में मानवाधिकार दिवस पर अपने सम्बोधन में यूएन एजेंसी के प्रमुख किटेक लिम ने अग्रिम मोर्चों पर जुटे कामगारों का आभार जताया.
साथ ही उन्होंने देशों से समुद्री नाविकों के लिये सुरक्षित व बेहतर कार्य परिस्थितियाँ सुनिश्चित करने और उनकी रक्षा करने का आग्रह किया.
हेडी मरज़ाऊगी एक अमेरिकी कप्तान हैं और उन्होंने किटेक लिम की बात का समर्थन किया है और चिन्ता जताई है कि लम्बे समय तक जहाज़ पर बने रहने से नाविक दल के सदस्यों के लिये मानसिक दबाव बढ़ जाता है.
“आप जितने लम्बे समय के लिये वहाँ रहते हैं, आप शारीरिक तौर पर उतना ही ज़्यादा थक जाते हैं.” “घण्टे, हफ़्ते और महीने जुड़ने लगते हैं, आप बहुत थक जाते हैं और फिर उतने चौकन्ने नहीं रह पाते.”
अमेरिकी कप्तान ने आगाह किया है कि इसी थकान के कारण दुर्घटनाएँ तक हो सकती हैं.
“मनुष्यों के तौर पर हमारे भी मानवाधिकार हैं, हमारे अपने परिवार हैं. हमारे पास वापिस लौटने के लिये ज़िन्दगी है.”
“हम रोबोट नहीं हैं और हमें दोयम दर्जे के नागरिकों के रूप में नहीं देखा जाना चाहिये.”