वैक्सीन सुलभता में विषमता, आर्थिक पुनर्बहाली के लिये बड़ा जोखिम
संयुक्त राष्ट्र का एक नया आर्थिक विश्लेषण दर्शाता है कि वैश्विक प्रगति की सम्भावनाओँ मे सुधार के बावजूद, विश्वव्यापी महामारी कोविड-19 का असर अभी जारी है. संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवँ सामाजिक मामलों के विभाग (DESA) द्वारा मंगलवार को जारी रिपोर्ट के अनुसार निर्धन देशों में टीकाकरण की पर्याप्त उपलब्धता ना हो पाने की वजह से, आर्थिक पुनर्बहाली प्रक्रिया पर ख़तरा मंडरा रहा है.
विश्व आर्थिक हालात एवँ सम्भावनाएँ (World Economic Situation and Prospects) नामक रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि असमानताओं के बढ़ने से वैश्विक प्रगति के लिये जोखिम पैदा हो रहा है.
इस साल वैश्विक विकास की दर 5.4 प्रतिशत आंकी गई है – जबकि पिछले वर्ष, विश्व अर्थव्यवस्था में 3.6 प्रतिशत का संकुचन दर्ज किया गया था.
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UNDESA
संयुक्त राष्ट्र के मुख्य अर्थशास्त्री ऐलियट हैरिस ने कहा, "देशों व क्षेत्रों के बीच वैक्सीन विसंगति, पहले से ही विषमतापूर्ण और नाज़ुक वैश्विक पुनर्बहाली के लिये एक बड़ा जोखिम पेश कर रही है."
उन्होंने कहा कि कोविड-19 टीकाकरण की सामयिक और सार्वभौमिक सुलभता के ज़रिये, महामारी का जल्द अन्त और विश्व अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाना सम्भव है.
इसके अभाव में, अनेक वर्षों की प्रगति, विकास व अवसरों पर बुरा प्रभाव होगा.
ताज़ा रिपोर्ट में वैश्विक महामारी शुरू होने के बाद से अब तक विश्व अर्थव्यवस्था के प्रदर्शन की पड़ताल की गई है.
साथ ही वैश्विक नीतिगत जवाबी कार्रवाईयों के असर और संकट के गुज़र जाने के बाद पुनर्बहाली के परिदृश्यों का भी आकलन किया गया है.
रिपोर्ट दर्शाती है कि विश्व की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ – अमेरिका और चीन – पुनर्बहाली के रास्ते पर हैं.
मगर, दक्षिण एशिया, सब-सहारा, लातिन अमेरिका और कैरीबियाई क्षेत्र के अनेक देशों में आर्थिक प्रगति नाज़ुक है.
बहुत से देशों में आर्थिक उत्पादन को, महामारी से पूर्व के स्तर पर लौटने में 2022 या 2023 तक का समय लग सकता है.
रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक व्यापार में मज़बूत, लेकिन विषमतापूर्ण पुनर्बहाली हुई है.
बिजली-चालित और इलैक्ट्रॉनिक उपकरणों, निजी बचाव सामग्री व अन्य निर्मित सामानों की माँग बढ़ने से यह पहले ही महामारी के पूर्व के स्तर को पार कर चुका है.
विनिर्माण पर निर्भर अर्थव्यवस्थाओं का प्रदर्शन बेहतर रहा है, जबकि पर्यटन पर निर्भर देशों में जल्द हालात में सुधार आने की सम्भावना नहीं है.
इसकी वजह, अन्तरराष्ट्रीय यात्रा पर लगी पाबन्दियों को हटाये जाने की धीमी रफ़्तार और संक्रमण की नई लहरों के फैलने के जोखिम को बताया गया है.
प्रभावितों की बड़ी संख्या
रिपोर्ट दर्शाती है कि महामारी के कारण 11 करोड़ से अधिक लोग निर्धनता के गर्त में धँस गए हैं – इनमें पाँच करोड़ 80 लाख से अधिक महिलाएँ हैं.
महामारी पर जवाबी कार्रवाई के मोर्च पर डटे स्वास्थ्यकर्मियों, देखभालकर्मियों और ज़रूरी सेवाओँ को प्रदान करने वालों और महिलाओँ पर मौजूदा संकट का भीषण असर हुआ है.
वैश्विक महामारी के दौरान, दुनिया भर में श्रमबल की भागीदारी दो प्रतिशत तक सिकुड़ गई है, जबकि वर्ष 2007-09 के वित्तीय संकट के दौरान 0.2 फ़ीसदी का संकुचन ही दर्ज किया गया था.
पारिवारिक ज़िम्मेदारियों को पूरा करने के लिये, अनेक महिलाओं को अपने रोज़गार छोड़ने के लिये मजबूर होना पड़ा है.
महिलाओं के स्वामित्व वाले व्यवसायों पर भी विषमतापूर्ण असर पड़ा है, और स्वास्थ्य, प्रजनन सेवाएँ व शिक्षा सेवाएँ भी प्रभावित हुई हैं.