वैश्विक परिप्रेक्ष्य मानव कहानियां

कोरोनावायरस वैक्सीन की तलाश - 'सुलभ विज्ञान' से जुड़ी पाँच अहम बातें

एक वैज्ञानिक बैक्टीरिया टॉक्सिन के एक नमूने की जाँच करते हुए.
CDC
एक वैज्ञानिक बैक्टीरिया टॉक्सिन के एक नमूने की जाँच करते हुए.

कोरोनावायरस वैक्सीन की तलाश - 'सुलभ विज्ञान' से जुड़ी पाँच अहम बातें

स्वास्थ्य

संयुक्त राष्ट्र ने विश्वसनीय वैज्ञानिक जानकारी और शोध, हर किसी को निशुल्क उपलब्ध कराए जाने की पुकार लगाई है. यूएन एजेंसियों के मुताबिक सुलभ विज्ञान (Open Science) के ज़रिये कोविड-19 वायरस के ख़िलाफ़ असरदार वैक्सीन पर शोधकार्य तेज़ी से आगे बढ़ाने, भ्रामक जानकारियों पर अंकुश लगाने और विज्ञान की पूर्ण सम्भावनाओं के द्वार खोल पाने में मदद मिलेगी.

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने ज़ोर देकर कहा है कि तब तक कोई भी सुरक्षित नहीं है जब तक, हर कोई, हर जगह सुरक्षित नहीं है.

यूएन स्वास्थ्य एजेंसी ने कोविड-19 महामारी पर क़ाबू पाने के लिये देशों और वैज्ञानिकों से आपसी सहयोग को मज़बूत बनाने का आग्रह किया है.

इस प्रक्रिया में परीक्षण, उपचार व वैक्सीन विकसित करने की रफ़्तार तेज़ किये जाने के लिये अभूतपूर्व प्लैटफ़ॉर्म - Access to COVID-19 Tools (ACT) Accelerator - के सृजन को अहम बताया गया है.

यूएन स्वास्थ्य एजेंसी के प्रमुख टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस ने अक्टूबर 2020 में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त (OHCHR) मिशेल बाशेलेट और संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवँ सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) की महानिदेशक ऑड्री अज़ूले के साथ मिलकर ‘सुलभ विज्ञान’ को बढ़ावा देने की पुकार लगाई थी.

यूएन एजेंसियों के शीर्ष अधिकारियों ने इसे मानवाधिकारों से जुड़ा एक बुनियादी मामला बताते हुए अत्याधुनिक प्रोद्योगिकी और खोजों का लाभ उन लोगों तक पहुँचाने की पैरवी की है जिन्हें इसकी सबसे अधिक ज़रूरत है.

लेकिन असल में ‘सुलभ विज्ञान’ से क्या तात्पर्य है और संयुक्त राष्ट्र इसका दायरा ज़्यादा व्यापक बनाने पर ज़ोर दे क्यों रहा है. कुछ अहम सवालों के जवाब...

1) ‘सुलभ विज्ञान’ का क्या अर्थ है?

‘सुलभ विज्ञान’ (Open Science) की व्याख्या एक ऐसे आन्दोलन के रूप में की गई है जिसका उद्देश्य वैज्ञानिक प्रक्रियाओं को ज़्यादा पारदर्शी और समावेशी बनाना है.

फ़्लू वायरस कण के परीक्षण नतीजों की जाँच.
CDC
फ़्लू वायरस कण के परीक्षण नतीजों की जाँच.

सर्वजन के लिये वैज्ञानिक ज्ञान, तरीक़ों, आँकड़ों और तथ्यों की निर्बाध उपलब्धता और सुलभता के ज़रिये यह सुनिश्चित किया जा सकता है.

‘सुलभ विज्ञान’ नामक इस आन्दोलन का स्रोत वैज्ञानिक समुदाय में है और अब यह तेज़ी से देशों में फैल रहा है. निवेशक, उद्यमी, नीति-निर्धारक और नागरिक, इस आहवान में शामिल हो रहे हैं.

हालाँकि, यूएन एजेंसी ने सचेत किया है कि खण्डित वैज्ञानिक व नीतिगत माहौल में ‘सुलभ विज्ञान’ के अर्थ व उससे जुड़े अवसरों और चुनौतियों के प्रति वैश्विक समझ का अब भी अभाव है.

2) ‘सुलभ विज्ञान’ महत्वपूर्ण क्यों है?

‘सुलभ विज्ञान’ के ज़रिये वैज्ञानिक क्षेत्र में रचनात्मक सहयोग और जानकारी को साझा करने की प्रक्रिया को समाज व विज्ञान के लिये लाभ की दिशा में अग्रसर किया जाता है.

ऐसा करके, ज़्यादा बेहतर वैज्ञानिक ज्ञान का सृजन और उसे व्यापक स्तर पर जनसमूहों तक पहुँचाया जा सकता है.

यूनेस्को ने कहा है कि ‘ओपन सायन्स’ रूपान्तरकारी बदलाव लाने में सक्षम है: इससे सूचना की व्यापक उपलब्धता सम्भव है और ज़्यादा बड़ी संख्या में लोग वैज्ञानिक व टैक्नॉलॉजी क्षेत्र में अभिनव समाधानों का लाभ उठा सकते हैं.

3) इसकी ज़रूरत अब क्यों है?

यह इसलिये है क्योंकि पहले की तुलना में दुनिया आपस में अब ज़्यादा जुड़ी (Connected) है.

साथ ही अनेक वैश्विक चुनौतियाँ, राजनैतिक और भौगोलिक सीमाओं से परे हैं जिनसे पुख़्ता तौर पर निपटने के लिये मज़बूत अन्तरराष्ट्रीय वैज्ञानिक सहयोग की आवश्यकता है. कोविड-19 महामारी इसका एक मुख्य उदाहरण है.

सुलभ विज्ञान को सम्भव बनाने के औज़ार भी मौजूद हैं.

डिजिटाइज़ेशन पहले से कहीं ज़्यादा प्रचलन में है और वैज्ञानिक ज्ञान व आँकड़ों को साझा करना अपेक्षाकृत सरल है. इनकी आवश्यकता, वैश्विक चुनौतियों पर क़ाबू पाने में विश्वसनीय तथ्यों का सहारा लेकर निर्णय लेने में होती है.

कोविड-19 वायरस कणों का डिजिटल रूप.
NIH
कोविड-19 वायरस कणों का डिजिटल रूप.

4) सुलभ विज्ञान का महामारी पर क्या असर हुआ है?

वैश्विक स्वास्थ्य आपदा के दौरान अन्तरराष्ट्रीय सहयोग के फलस्वरूप वैज्ञानिकों ने कोरोनावायरस के प्रति अपनी समझ अभूतपूर्व रफ़्तार और खुले तौर पर विकसित की है.

इस प्रक्रिया में सुलभ विज्ञान के सिद्धान्तों का सहारा लिया गया है. पत्रिकाओं, विश्वविद्यालयों, निजी प्रयोगशालाओं और आँकड़ों के संग्राहक इस आन्दोलन का हिस्सा बने हैं जिससे आँकड़ों व सूचना की सरल सुलभता सुनिश्चित करने में मदद मिली है.

एक लाख 15 हज़ार से ज़्यादा प्रकाशनों ने वायरस और महामारी से जुड़ी जानकारी जारी की है और उसमें से लगभग 80 फ़ीसदी जानकारी को आम लोग भी निशुल्क पढ़ सकते हैं.

उदाहरणस्वरूप, महामारी के शुरुआती दौर में चीनी वैज्ञानिकों ने वायरस के जीनोम को तत्काल साझा किया था जिससे शोध प्रक्रिया और रोग निदान परीक्षणों, उपचारों व वैक्सीनों पर काम को तेज़ी से आगे बढ़ाने में मदद मिली है.

अन्तत:, इस संकट ने विज्ञान को निर्णय-निर्धारण प्रक्रिया व समाज के समीप लाने की अहमियत व ज़रूरत को रेखांकित किया है.

भ्रामक सूचनाओं पर अंकुश लगाना और तथ्य आधारित जानकारी को बढ़ावा देना इस महामारी के ख़िलाफ़ असरदार लड़ाई का अहम औज़ार है और इसमें जानकार नागरिकों की भी महत्वपूर्ण भूमिका है.

5) सुलभ विज्ञान को बढ़ावा देने में संयुक्त राष्ट्र किस तरह प्रयासरत है?

यह सुनिश्चित करना बेहद ज़रूरी है कि सुलभ विज्ञान अपनी सम्भावनाओं को पूर्ण रूप से हासिल करे और विकसित व विकासशील देशों तक उसका लाभ पहुँचे.

ग़ाज़ा की एक प्रयोगशाला में कार्यरत रीसर्चर.
UNDP
ग़ाज़ा की एक प्रयोगशाला में कार्यरत रीसर्चर.

इस दिशा में यूनेस्को अग्रणी भूमिका निभाते हुए सुलभ विज्ञान के मूल्यों व सिद्धान्तों पर एक वैश्विक सहमति बना रहा है जोकि हर वैज्ञानिक व व्यक्ति के लिये प्रासंगिक हैं. इसकी अहमियत देश, स्थान, लिंग, आयु, आर्थिक व सामाजिक पृष्ठभूमि से परे है.

सुलभ विज्ञान पर यूनेस्को की भावी सिफ़ारिशों (UNESCO Recommendation on Open Science) के ज़रिये दुनिया में यथोचित व न्यायसंगत मानक स्थापित किये जाने की अपेक्षा है, जिससे विज्ञान के मानवाधिकार की पूर्ति होती हो और किसी को भी पीछे ना छूटने दिया जाए.

यूनेस्को महानिदेशक ऑड्री अज़ूले ने 10 नवम्बर को ‘शान्ति व विकास के लिये विश्व विज्ञान दिवस’ पर जारी अपने बयान में कहा है कि सुलभ विज्ञान की सम्भावनाओं को पूर्ण रूप से हासिल करने के लिये उसका दायरा विस्तृत किये जाने की आवश्यकता है.