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हर छह में से एक बच्चा चरम ग़रीबी में – कोविड-19 से संख्या बढ़ने की आशंका 

भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में बच्चे एक वर्कशॉप के बाहर खेल रहे हैं.
© UNICEF/Niklas Halle'n
भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में बच्चे एक वर्कशॉप के बाहर खेल रहे हैं.

हर छह में से एक बच्चा चरम ग़रीबी में – कोविड-19 से संख्या बढ़ने की आशंका 

एसडीजी

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) और विश्व बैंक (World Bank) की एक ताज़ा रिपोर्ट में कहा गया है कि विश्वव्यापी महामारी कोविड-19 का संकट शुरू होने से पहले ही दुनिया में हर छह में से एक बच्चा यानि लगभग 35 करोड़ 60 लाख बच्चे अत्यधिक निर्धनता में जीवन गुज़ारने के लिये मजबूर थे. मंगलवार को पेश की गई इस रिपोर्ट में आशंका जताई गई है कि महामारी से आए व्यवधान के कारण हालात और भी ज़्यादा बदतर हो सकते हैं. 

निर्धनता में जीवन गुज़ार रहे बच्चों पर आधारित “Global Estimate of Children in Monetary Poverty: An Update” नामक रिपोर्ट दर्शाती है कि बाल निर्धनों की कुल संख्या में से  दो-तिहाई बच्चे सब-सहारा अफ़्रीका में ऐसे परिवारों में रहते हैं जो दैनिक गुज़र-बसर के लिये औसतन प्रति व्यक्ति प्रति दिन 1.90 डॉलर या उससे कम पर निर्भर हैं. 

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यह संख्या चरम ग़रीबी के लिये अन्तरराष्ट्रीय मानक के रूप में स्थापित है. दक्षिण एशिया में बाल ग़रीबी से पीड़ित कुल संख्या का 20 फ़ीसदी बच्चे इन हालात में रह रहे हैं. 

विश्लेषण दर्शाता है कि चरम ग़रीबी में रहने वाले बच्चों की संख्या में मामूली गिरावट आई है – वर्ष 2013 और 2017 के बीच लगभग दो करोड़ 90 लाख की गिरावट. 

लेकिन यूनीसेफ़ और विश्व बैंक ने सचेत किया है कि हाल के वर्षों में दर्ज की गई प्रगति धीमी और असमान रूप से हुई है और कोविड-19 महामारी की वजह से उस पर जोखिम मँडरा रहा है. 

गुज़ार-बसर के लिये संघर्ष 

यूनीसेफ़ में कार्यक्रम निदेशक संजय विजेसेकरा ने बताया, “अत्यधिक ग़रीबी में रह रहा हर छह में से एक बच्चा जीवन गुज़ारने के लिये संघर्ष कर रहा है.”  

“ये आँकड़ें हर किसी के लिये स्तब्धकारी होने चाहियें. और महामारी की वजह से हुई वित्तीय कठिनाइयों के दायरे और गहराई के बारे में हम जितना जानते हैं, उनसे हालात और बदतर ही होंगे.”

“सरकारों को तत्काल बाल पुनर्बहाली योजनाओं की ज़रूरत है ताकि अनगिनत बच्चों और उनके परिवारों को निर्धनता के उन स्तरों तक पहुँचने से रोका जा सके जो अनेक, अनेक वर्षों से नहीं देखे गए हैं.”

बच्चे कुल विश्व आबादी का एक-तिहाई हिस्सा हैं लेकिन अत्यधिक ग़रीबी में जीवन व्यतीत कर रहे लोगों की कुल संख्या का क़रीब 50 फ़ीसदी बच्चे हैं. 

रिपोर्ट दर्शाती है कि सबसे कम उम्र के बच्चों के लिये हालात ज़्यादा ख़राब हैं. विकासशील जगत में पाँच साल से कम उम्र के लगभग 20 प्रतिशत बच्चे बेहद ग़रीबी में गुज़र-बसर करने वाले घरों में रहते हैं. 

विश्व बैंक में निर्धनता व निष्पक्षता की वैश्विक निदेशक कैरोलिना सांचेज़-परामो ने कहा, “कोविड-19 महामारी से पहले ही यह तथ्य कि हर छह में से एक बच्चा अत्यधिक ग़रीबी में रह रहा है, और विश्व में अत्यधिक ग़रीबी से पीड़ित व्यक्तियों की कुल संख्या में 50 फ़ीसदी बच्चे हैं, हमारे लिये गम्भीर चिन्ता का विषय रहा है.” 

“महामारी के कारण आए विकराल आर्थिक व्यवधान यह पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हैं कि सरकारें बच्चों वाले ग़रीब घरों को सहारा मुहैया कराएँ और पुनर्बहाली के दौरान मानव पूँजी का पुनर्निर्माण करें.”

अभिभावकों से पिछड़ रहे हैं बच्चे

वयस्कों में चरम ग़रीबी के मामलों में आई गिरावट की तुलना में बच्चों में अभी ग़रीबी उस तेज़ी से कम नहीं हुई है. वर्ष 2013 के आँकड़ों की तुलना में 2017 में विश्व आबादी में निर्धनों की कुल आबादी में बच्चों का अनुपात बढ़ा है. 

दुनिया के सभी क्षेत्रो में बच्चों में व्याप्त चरम ग़रीबी के मामलों में गिरावट का स्तर अलग-अलग रहा है.

बाल निर्धनता नाज़ुक और हिंसक संघर्ष प्रभावित इलाक़ों में ज़्यादा व्याप्त है, जहाँ 40 फ़ीसदी से ज़्यादा बच्चे अत्यधिक ग़रीबी से पीड़ित घरों में रहते हैं.

विश्लेषण के मुताबिक अन्य देशों में बच्चों के लिये यह आँकड़ा 15 फ़ीसदी है.  

रिपोर्ट के अनुसार अत्यधिक ग़रीबी का शिकार 70 फ़ीसदी से ज़्यादा बच्चे ऐसे घरों में रहते हैं जहाँ घर के मुखिया खेतों और चारागाहों में काम करते हैं.  

कोविड-19 संकट का बच्चों, लड़कियों व महिलाओँ पर ग़ैरआनुपातिक असर पड़ रहा है और लैंगिक समानता की दिशा में मुश्किल से हासिल हुई प्रगति की दिशा पलट जाने का जोखिम है. 

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रिपोर्ट में सम्भावना जताई गई है कि निर्धनों और निर्बलों पर कोविड-19 महामारी के असर को कम करने और दीर्घकाल के लिये पुनर्बहाली व्यापक सामाजिक संरक्षा उपायों की अहम भूमिका होगी. 

विश्व बैंक और यूनीसेफ़ के आँकड़े दर्शाते हैं कि अधिकाँश देशों ने संकट का सामना करने के लिये, मानव पूँजी में दीर्घकालीन निवेश के लिये मंच प्रदान करने में सामाजिक संरक्षा कार्यक्रमों का दायरा बढ़ाया है, विशेष तौर पर नक़दी हस्तान्तरण के ज़रिये.  

लेकिन जवाबी कार्रवाई के दौरान किये गए बहुत से उपाय अल्पकालिक हैं और निर्धनता की दीर्घकालीन समस्या व उसके विकराल आकार से निपटने के लिये पर्याप्त नहीं हैं. 

इन परिस्थितियों में सरकारों के लिये यह पहले से कहीं ज़्यादा ज़रूरी है कि सामाजिक संरक्षा प्रणालियों और कार्यक्रमों में हालात के मुताबिक तब्दीली लाई जाए ताकि भावी झटकों के लिये तैयारी की जा सके. 

इसके तहत वित्तीय टिकाऊपन के लिये नवाचारी समाधान सुनिश्चित करना; क़ानूनी और संस्थागत फ़्रेमवर्क को मज़बूत बनाना; मानव पूँजी की रक्षा करना; बाल और पारिवारिक लाभों का लम्बे समय के लिये दायरा बढ़ाना; और परिवार-अनुकूल नीतियों, जैसेकि अभिभावकों के लिये सवैतनिक अवकाश और सभी के लिये गुणवत्तापरक बाल देखभाल, आदि में निवेश करना.