विश्व खाद्य कार्यक्रम: एक तीन-वर्षीय प्रयोग जो अनिवार्य बन गया

वर्ष 2020 के लिये नोबेल शान्ति पुरस्कार विजेता, विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) की आवश्यकता आज दुनिया में पहले से कहीं अधिक है. एक ऐसे दौर में जब काँगो लोकतान्त्रिक गणराज्य में हिंसक संघर्षों से लेकर दक्षिण सूडान में बाढ़ तक, और यमन में गृहयुद्ध से मानवजनित व प्राकृतिक आपदाओं में फँसे करोड़ों पीड़ितों के पास जीवन-यापन के लिये पर्याप्त भोजन का अभाव है और उनके जीवन में अनिश्चितता और ज़्यादा गहरी हो रही है.
विश्वव्यापी महामारी कोविड-19 से दुनिया भर में कमज़ोर तबकों पर बोझ बढ़ा है, लेकिन विश्व खाद्य कार्यक्रम के समक्ष युद्ध और हिंसक संघर्ष अब भी सबसे बड़ी चुनौतियाँ हैं.
For over 15 years, I've had the privilege to work hand-in-hand with @WFP colleagues - the world’s first responders on the frontlines of hunger.I congratulate the women & men of WFP for being awarded the #NobelPeacePrize & thank them for their commitment to a #ZeroHunger world. pic.twitter.com/5vycwGB8DM
antonioguterres
शान्तिपूर्ण हालात में रह रहे लोगों की तुलना में हिंसक संघर्ष से प्रभावित देशों में रहने के लिये मजबूर लोगों के अल्पपोषण का शिकार होने की सम्भावना तीन गुणा अधिक है.
यूएन खाद्य एजेंसी के प्रमुख डेविड बीज़ली ने सितम्बर 2020 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को जानकारी देते हुए बताया था कि उनका संगठन इस वर्ष साढ़े 13 करोड़ से ज़्यादा लोगों तक पहुँच बनाने की तैयारियों में जुटा है.
इन प्रयासों का उद्देश्य भुखमरी और अकाल की लहर की रोकथाम करना है जिसके दुनिया भर में फैलने की आशंका है.
यूएन एजेंसी के इतिहास में वर्ष 1960 के दशक से अब तक का यह सबसे विशाल आपात खाद्य राहत अभियान होगा.
विश्व खाद्य कार्यक्रम की स्थापना वर्ष 1961 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डी. आइज़नहावर की पहल के परिणामस्वरूप शुरुआत में तीन साल के एक प्रयोग के रूप में की गई थी, ताकि संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के ज़रिये आपात खाद्य सहायता वितरण का मूल्याँकन किया जा सके.
अपने शुरुआती सालों में ही यूएन एजेंसी ने अनेक प्राकृतिक व मानवजनित त्रासदियों से निपटने में महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी निभाई.
उदाहरणस्वरूप, उत्तरी इराक़ में 1962 में आए भूकम्प में 12 हज़ार से ज़्यादा लोगों की मौत हुई; थाईलैण्ड के टायफ़ून हैरियट की चपेट में आने से 900 से ज़्यादा लोग मारे गए, और नव स्वाधीन देश अल्जीरिया में युद्ध पीड़ित शरणार्थियों की वतन वापसी और उनके लिये खाद्य राहत पहुँचाने की चुनौती.
शुरुआती दिनों से ही आपात राहत और पुनर्वास प्रयासों के बीच नज़दीकी सम्बन्ध को अहम माना गया.
वर्ष 1963 में, विश्व खाद्य कार्यक्रम ने अपना पहला विकास कार्यक्रम शुरू किया जिसके ज़रिये सूडान के वादी हाइफ़ा में नूबियन जनसमूह को सहारा दिया गया और टोगो में स्कूली भोजन परियोजना को आगे बढ़ाया गया.
तीन साल गुज़र जाने के बाद यह स्पष्ट हो गया था कि यह एक बेहद मूल्यवान प्रयोग था जिसकी निरन्तरता भविष्य के लिये भी सुनिश्चित की जानी होगी.
इसके बाद विश्व खाद्य कार्यक्रम को पूर्ण रूप से यूएन एजेंसी का दर्जा प्राप्त हुआ और कहा गया कि इसका वजूद तब तक रहेगा जब तक बहुपक्षीय खाद्य सहायता सम्भव और वांछनीय है.
लगभग 60 वर्षों तक संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों ने यूएन एजेंसी के योगदान की अहमियत को मज़बूती से समझा और परखा है.
आज, यूएन खाद्य एजेंसी की आवश्यकता पहले से कहीं ज़्यादा है. दुनिया के अनेक हिस्सों में सशस्त्र हिंसा अब भी बर्बादी का सबब बनी हुई है और लाखों-करोड़ों लोगों को निर्धनता के गर्त में धकेल रही है.
इस वर्ष दक्षिण सूडान, यमन, सोमालिया और उत्तरी नाइजीरिया में दो करोड़ से ज़्यादा लोग अकाल से पीड़ित होने के कगार पर हैं. सूखे के अलावा हिंसक संघर्ष इसका एक मुख्य कारण है.
यूएन एजेंसी के कार्यकारी निदेशक डेविड बीज़ली ने सितम्बर 2020 में सुरक्षा परिषद को सम्बोधित करते हुए चेतावनी जारी की थी कि वैश्विक भुखमरी संकट के ख़िलाफ़ लड़ाई अभी ख़त्म नहीं हुई है.
“मैं यहाँ ये अलार्म बजाने के लिये आया हूँ...अकाल का ख़तरा एक बार फिर मँडरा रहा है.”
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने अपने वीडियो सन्देश में नोबेल पुरस्कार समिति के निर्णय पर प्रसन्नता ज़ाहिर करते हुए विश्व खाद्य कार्यक्रम को खाद्य असुरक्षा के मोर्चे पर विश्व की पहली खाद्य संस्था के रूप में बयाँ किया है.
उन्होंने कहा कि यूएन एजेंसी पूर्ण रूप से सदस्य देशों व लोगों के स्वैच्छिक योगदानों पर निर्भर है.
“ऐसी एकजुटता की अभी निश्चित रूप से ज़रूरत है, ना सिर्फ़ महामारी बल्कि हमारे समय की अन्य परीक्षाओं से से निपटने में भी.”
महासचिव गुटेरेश ने आगाह किया कि जलवायु परिवर्तन जैसे अस्तित्व सम्बन्धी संकटों से भुखमरी का संकट और भी ज़्यादा गहरा होगा, इसलिये शून्य भुखमरी के लक्ष्य को हासिल करने के लिये शान्ति स्थापना अनिवार्य है.