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कोविड-19: उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए 2.5 ट्रिलियन डॉलर की ज़रूरत

बुर्किना फ़ासो जैसे विकासशील देशों को अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अतिरिक्त मदद की ज़रूरत है.
©UNICEF/Vincent Tremeau
बुर्किना फ़ासो जैसे विकासशील देशों को अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अतिरिक्त मदद की ज़रूरत है.

कोविड-19: उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए 2.5 ट्रिलियन डॉलर की ज़रूरत

आर्थिक विकास

विश्व की दो-तिहाई आबादी (चीन को छोड़कर) को कोविड-19 के कारण अभूतपूर्व आर्थिक क्षति का सामना करना पड़ रहा है और हालात बेहतर होने से पहले और भी ज़्यादा ख़राब होने की आशंका है. संयुक्त राष्ट्र ने स्थिति की गंभीरता के मद्देनज़र सोमवार को विकासशील देशों के लिए ढाई ट्रिलियन डॉलर के राहत पैकेज की अपील की है ताकि अंतरराष्ट्रीय एकजुटता की भावना को ठोस कार्रवाई का आकार दिया जा सके. 

व्यापार एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCTAD) का नया विश्लेषण दर्शाता है कि माल निर्यात करने वाले देशों को अगले दो सालों में विदेश से होने वाले निवेश में दो से तीन ट्रिलियन डॉलर की गिरावट का सामना करना पड़ सकता है. 

यूएन संस्था में वैश्वीकरण और विकास रणनीतियों के निदेशक रिचर्ड कोज़ुल-राइट ने बताया कि इन उभरती अर्थव्यवस्थाओं में वर्ष 2019 की आख़िरी तिमाही से ही आर्थिक गिरावट के लक्षण दिखाई देने लगे थे. उस समय मध्य चीन में कोरोनावायरस महामारी का व्यापक रूप से फैलना शुरू भी नहीं हुआ था.   

मंदी के बादल

उन्होंने यूएन न्यूज़ को बताया कि, “स्वास्थ्य संकट अभी कई विकासशील देशों में आना बाक़ी है. अब अगर इन देशों में संकट आता है, ये देश पहले से आर्थिक उथलपुथल की लहरों से कमज़ोर हो चुकी हैं. और यह स्वास्थ्य व आर्थिक संकट का एक बेहद घातक मिश्रण होगा.”

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“इसलिए हमें विकासशील देशों में स्वास्थ्य प्रणाली और सेवाओं को मज़बूत बनाने के रास्ते ढूंढने होंगे और उस मोर्चे पर सहन-क्षमता का निर्माण तेज़ी से करना होगा.”

कई धनी औद्योगिक देश पहले ही वैश्विक बचाव योजना के तहत पॉंच ट्रिलियन डॉलर के पैकेज की घोषणा कर चुके हैं ताकि व्यवसायों और कर्मचारियों के लिए आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके. 

यूएन संस्था के अधिकारी ने बताया कि इन अभूतपूर्व क़दमों से संकट की व्यापकता को कम किया जा सकता है – “शारीरिक, आर्थिक और मनोवैज्ञानिक रूप से.” 

साथ ही ताज़ा रिपोर्ट में उम्मीद जताई गई है कि इससे जी-20 समूह की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में एक से दो ट्रिलियन डॉलर की मांग को सृजित करना वैश्विक विनिर्माण में दो फ़ीसदी की उछाल लाना संभव होगा. 

वैश्वीकरण और विकास रणनीतियों के निदेशक रिचर्ड कोज़ुल-राइट ने बताया कि इस वर्ष विश्व अर्थव्यवस्था मंदी में जाएगी जिससे कई ट्रिलियन डॉलर की वैश्विक आय का नुक़सान होने की आशंका है. इससे विकासशील देशों के लिए मुश्किलें बढ़ेंगी, हालांकि चीन और भारत इसका अपवाद साबित हो सकते हैं. 

यूएन संस्था का मानना है कि कई उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों के लिए एक समस्या ग़ैरसंगठित क्षेत्रों में बड़ी संख्या में श्रमिकों का होना है जो उनकी अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं. लेकिन इससे संकट काल में उनकी मुश्किलों में भी बढ़ोत्तरी हो जाती है. 

चार सूत्री योजना

आने वाले दिनों में ‘वित्तीय सूनामी’ की परछाई के आकार लेने की आशंकाओं के बीच यूएन ने चार सूत्री रणनीति का खाका पेश किया है जिसमें कमज़ोर अर्थव्यवस्था वाले देशों में एक ट्रिलियन डॉलर के निवेश को सुझाया गया है.

यह निवेश ‘स्पेशल ड्रॉइन्ग राइट्स’ के तहत किया जाएगा जिसका संचालन अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा किया जाता है. एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक इस राशि को वर्ष 2009 में वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान किए गए आवंटन से भी परे जाना होगा. 

दूसरा उपाय संकटग्रस्त अर्थव्यवस्थाओं में कर्ज़ अदायगी की क़िस्तों पर तत्काल रोक लगाना है जिसके बाद उन्हें कर्ज़ में राहत भी प्रदान की जा सकती है. उदाहरण के तौर पर, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जर्मनी का आधा कर्ज़ माफ़ कर दिया गया था. 

यूएन एजेंसी का कहना है कि इस मिसाल के आधार पर इस वर्ष एक स्वतंत्र संस्था की देखरेख में एक ट्रिलियन डॉलर कर्ज़ को माफ़ किया जाना चाहिए. 

तीसरे उपाय के तहत निर्धन देशों में 500 अरब डॉलर की लक्षित योजनाओं का सुझाव दिया गया है जिसके तहत आपात स्वास्थ्य सेवाओं और संबंधित सामाजिक राहत कार्यक्रमों पर ध्यान दिया जाएगा. 

चौथे उपाय में यूएन एजेंसी ने आग्रह किया है कि राज्यसत्ता के नेतृत्व में पूंजी पर नियंत्रण के लिए ज़रूरी क़दमों को लागू किया जाना होगा ताकि विकासशील देशों से बाहर जाने वाले पूंजी पर लगाम कसी जा सके. 

इससे विकासशील देशों के बाज़ारों में नक़दी की किल्लत को घटाने, मुद्रा और संपत्तियों की क़ीमतों में गिरावट को रोका जा सकेगा.