कोविड-19 की आपदा में सटीक जानकारी व सूचना का निर्बाध प्रवाह अहम

संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कोविड-19 महामारी से रोज़मर्रा के जीवन में आए अभूतपूर्व व्यवधानों के बीच सचेत किया है कि इस कठिन समय में सूचना का बेरोकटोक प्रवाह सुनिश्चित किया जाना ज़रूरी है. उन्होंने कहा है कि झूठी सूचनाओं के फैलने से अव्यवस्था फैल सकती है और स्वास्थ्य को क्षति पहुंच सकती है इसलिए तथ्यपरक जानकारी की सुलभता, लोगों की निजता व पत्रकारों की आज़ादी का ख़याल रखा जाना अहम है.
स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा कि वे कोविड-19 से उपजी गहरी चिंताओं और सरकारों व स्वास्थ्यकर्मियों की ओर से मानव जीवन व स्वास्थ्य की रक्षा के लिए किए जा रहे प्रयासों को भली-भांति समझते हैं और उनका समर्थन करते हैं.
जीवन जीने के बुनियादी अधिकार पर संकट है और इसकी रक्षा करना सरकारों कर्तव्य व दायित्व है.
#COVIDー19: Governments must promote and protect access to and free flow of information during the #coronavirus pandemic – Experts on freedom of expression and freedom of the media. Read 👉 https://t.co/dg9UeZ7mpV pic.twitter.com/k9APFhjeri
UN_SPExperts
विशेष रैपोर्टेयर डेविड काए, हार्लेम डेसिर और एडीसन लान्ज़ा ने एक संयुक्त बयान जारी करके कहा कि मानव स्वास्थ्य महज़ सुलभ स्वास्थ्य सेवाओं पर ही निर्भर नहीं है. “यह जोखिमों व उससे बचने के तरीक़ों को समझने और अपने परिवार व समुदायों की रक्षा के लिए सटीक जानकारी हासिल करने पर भी निर्भर है.”
उन्होंने कहा है कि सरकारों के लिए यह ज़रूरी है कि कोरोनावायरस के ख़तरे के प्रति सत्यनिष्ठ सूचना उपलब्ध कराई जाए.
मानवाधिकार क़ानून के तहत हर सरकार का यह दायित्व है कि सभी संस्करणों में विश्वसनीय सूचना प्रदान की जाए जिसमें उन लोगों तक जानकारी पहुंचाने का ख़याल रखा जाए जिन तक इंटरनेट उपलब्ध नहीं है या जो विकलांग हैं.
विशेष दूतों ने कहा कि संकट काल में इंटरनेट हासिल होना बेहद आवश्यक है. “यह ज़रूरी है कि सरकारें इंटरनेट के इस्तेमाल पर पाबंदी ना लगाएं.” जिन हालात में इंटरनेट पर रोक लगाई गई हो वहां प्राथमिकता के तौर पर तेज़ और व्यापक दायरे में इंटरनेट सेवाएँ मुहैया कराई जानी चाहिए.
उन्होंने कहा कि एमरजेंसी के समय जानकारी हासिल करना बेहद अहम है और इसलिए सार्वजनिक व्यवस्था या राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर इंटरनेट पर पाबंदी को न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता.
स्वतंत्र विशेषज्ञों के मुताबिक सूचना हासिल करने के अधिकार सुनिश्चित करने के लिए पत्रकारों की रक्षा की जानी चाहिए जिनकी ज़िम्मेदारी सार्वजनिक स्वास्थ्य एमरजेंसी में बढ़ जाती है. ख़ास तौर पर जब सरकार की कार्रवाई पर नज़र रखी जा रही हो और जनता तक सूचना पहुंचाई जा रही हो.
“हम सरकारों से आग्रह करते हैं कि सूचना की आज़ादी के क़ानून को मज़बूती से लागू किया जाए ताकि सभी लोगों, ख़ासकर पत्रकारों के पास जानकारी रहे.”
उन्होंने माना कि स्वास्थ्य संकट के समय झूठी जानकारी का फैलना अफ़रा-तफ़री व अव्यवस्था के माहौल का कारण बन सकता है.
इसलिए ग़लत जानकारी को फैलने से रोकने के लिए यह ज़रूरी है कि सरकारें और इंटरनेट कंपनियां स्वयं विश्वसनीय जानकारी की उपलब्धता को सुनिश्चित करें.
सटीक संदेशों को सार्वजनिक स्तर पर प्रेषित करके, घोषणाओं के ज़रिए, सार्वजनिक प्रसारण चैनलों का इस्तेमाल कर और स्थानीय पत्रकारों के सहयोग से इसे सुनिश्चित किया जा सकता है.
कोरोनावायरस के फैलाव पर नज़र रखने के लिए कई प्रकार की निगरानी टैक्नॉलजी का इस्तेमाल किया जा रहा है.
यह इस बीमारी से निपटने के लिए आवश्यक है लेकिन ऐसे औज़ारों का इस्तेमाल सीमित स्तर पर ही किया जाना होगा और ऐसा करते समय निजता, भेदभाव ना किए जाने, पत्रकारीय स्रोतों का ख़याल रखने और अन्य आज़ादियों की रक्षा करनी अहम है.
साथ ही मरीज़ों की निजी जानकारी की रक्षा की जानी चाहिए और इस संबंध में उन घरेलू क़ानूनों का पालन करना महत्वपूर्ण है जो अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों पर खरे उतरते हों.
स्पेशल रैपोर्टेयर और वर्किंग ग्रुप संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की विशेष प्रक्रिया का हिस्सा हैं. ये विशेष प्रक्रिया संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार व्यवस्था में सबसे बड़ी स्वतंत्र संस्था है. ये दरअसल परिषद की स्वतंत्र जाँच निगरानी प्रणाली है जो किसी ख़ास देश में किसी विशेष स्थिति या दुनिया भर में कुछ प्रमुख मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करती है. स्पेशल रैपोर्टेयर स्वैच्छिक रूप से काम करते हैं; वो संयक्त राष्ट्र के कर्मचारी नहीं होते हैं और उन्हें उनके काम के लिए कोई वेतन नहीं मिलता है. ये रैपोर्टेयर किसी सरकार या संगठन से स्वतंत्र होते हैं और वो अपनी निजी हैसियत में काम करते हैं.