मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की सुरक्षा पर सवालिया निशान

संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ मिशेल फ़ोर्स्ट ने कहा है कि हिंसक संघर्ष के दौरान और उसके बाद के हालात में काम करने वाले मानवाधिकार पैरोकारों के योगदान को पहचानने और उन्हें सुरक्षा व समर्थन मुहैया कराए जाने की आवश्यकता है. उन्होंने जिनीवा में मानवाधिकार परिषद को अपनी नई रिपोर्ट सौंपते हुए बताया कि मानवाधिकारों की रक्षा कर रहे इन कार्यकर्ताओं को विषम परिस्थितियों में काम करना पड़ रहा है.
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की स्थिति पर यूएन के विशेष रैपोर्टेयर मिशेल फ़ोर्स्ट के मुताबिक हिंसक संघर्ष के दौरान काम में जुटे मानवाधिकार कार्यकर्ता ऐसे साहसिक महिलाएं व पुरुष होते हैं जो आपात परिस्थितियों में मदद मुहैया कराते हैं.
साथ ही उनकी मदद से आम नागरिकों तक पहुंचा जा सकता है, हताहत होने वाले लोगों की संख्या और अंतरराष्ट्रीय क़ानून के हनन के मामलों का भी पता लगाया जा सकता है.
#HumanRightsDefenders working in conflict and post-conflict situations should enjoy greater recognition, protection and support for their work – @ForstMichel at #HRC43. The expert calls on all actors to implement & strengthen protection mechanisms: https://t.co/rOlrX62lUa pic.twitter.com/clfjxxVM5d
UN_SPExperts
“ये कार्यकर्ता हिंसक संघर्ष समाप्त होने के बाद विस्थापितों को घर वापस लौटने और दंडमुक्ति को चुनौती देने में मदद कर सकते हैं.”
उन्होंने क्षोभ जताया कि हिंसक संघर्ष के दौरान असुरक्षित माहौल में काम कर रहे मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को कई प्रकार के ख़तरे झेलने पड़ते हैं, ख़ासतौर पर तब जब वे युद्धरत पक्षों द्वारा मानवाधिकार उल्लंघनों की आलोचना करते हैं.
लेकिन इसके बावजूद उनके योगदान पर कई मर्तबा ध्यान नहीं दिया जाता.
यूएन मानवाधिकार विशेषज्ञ के मुताबिक, “महिला कार्यकर्ताओं को विशेष रूप से यौन हिंसा सहित लिंग-आधारित हिंसा का सामना करना पड़ता है.”
इस रिपोर्ट के मुताबिक हिंसक संघर्ष और उसके बाद की परिस्थितियों में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर अभिव्यक्ति और एकत्र होने की आज़ादी पर कई तरह की पाबंदियां होती हैं.
उनकी गतिविधियों पर राष्ट्रीय सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था, आतंकवाद-विरोध के नाम पर पाबंदियां लगा दी जाती हैं. साथ ही ग़ैर-सरकारी संगठनों के पंजीकरण, फंडिंग, ऑनलाइन कम्युनिकेशन और साइबर हमलों के ज़रिए बाधाएं खड़ी की जाती हैं.
मानवाधिकार उल्लंघनों की आलोचना करने पर पत्रकारों और ग़ैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) के कर्मचारियों को अक्सर गिरफ़्तारी और आपराधिक मामलों का भी सामना करना पड़ता है.
“पिछले तीस वर्षों की तुलना में पहले से ज़्यादा संख्या में देशों ने हाल के समय में हिंसक संघर्ष देखे हैं. इन परिस्थितियों में बेहद गहन दबाव में काम करने वाले और मानवाधिकारों की रक्षा की लड़ाई लड़ रहे कार्यकर्ताओं को अक्सर अपनी रक्षा की ज़िम्मेदारी ख़ुद ही संभालनी होती है.”
उन्होंने अपनी रिपोर्ट में हिंसक संघर्ष के दौरान और उसके बाद के हालात में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के ढांचे को लागू करने और उसे मज़बूत बनाने की अपील की है.
विशेष रैपोर्टेयर ने स्पष्ट किया कि “उनके संरक्षण के लिए विशिष्ट क़ानूनों, दिशा-निर्देशों और तंत्रों को व्यवस्थित ढंग से लागू किया जाना चाहिए ताकि शांति, मानवाधिकारों, सुरक्षा एवं न्याय को बढ़ावा देने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका की रक्षा की जा सके.”
स्पेशल रैपोर्टेयर और वर्किंग ग्रुप संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की विशेष प्रक्रिया का हिस्सा हैं. ये विशेष प्रक्रिया संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार व्यवस्था में सबसे बड़ी स्वतंत्र संस्था है. ये दरअसल परिषद की स्वतंत्र जाँच निगरानी प्रणाली है जो किसी ख़ास देश में किसी विशेष स्थिति या दुनिया भर में कुछ प्रमुख मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करती है. स्पेशल रैपोर्टेयर स्वैच्छिक रूप से काम करते हैं; वो संयक्त राष्ट्र के कर्मचारी नहीं होते हैं और उन्हें उनके काम के लिए कोई वेतन नहीं मिलता है. ये रैपोर्टेयर किसी सरकार या संगठन से स्वतंत्र होते हैं और वो अपनी निजी हैसियत में काम करते हैं.