मध्य पूर्व के लिए अमरीकी योजना ‘असंतुलित व एकतरफ़ा’

संयुक्त राष्ट्र के एक स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ ने कहा है कि अमरीका द्वारा दशकों से चले आ रहे इसराइल-फ़लस्तीन संघर्ष के समाधान के लिए इस सप्ताह पेश की गई योजना असंतुलित व एकतरफ़ा है और ये योजना फ़लस्तीनी क्षेत्रों पर इसराइली क़ब्ज़े को और ज़्यादा मज़बूती देगी.
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने मंगलवार, 28 जनवरी को व्हाइट हाउस में मध्य पूर्व के लिए एक शांति योजना जारी की थी जिसे नाम दिया गया – शांति, समृद्धि व एक उज्ज्वल भविष्य के लिए विज़न (भविष्य-दृष्टि). इस योजना में फ़लस्तीनी इलाक़ों – पश्चिमी तट व पूर्वी येरूशलम में बसाई गईं इसराइली बस्तियों को क़ानूनी दर्जा दिया जाएगा. साथ ही इसराइल को पश्चिमी तट का लगभग 30 फ़ीसदी हिस्सा भी अपने क़ब्ज़े में लेने की इजाज़त होगी.
The Trump plan on the #Israeli-#Palestinian conflict is a lopsided proposal entirely in favour of one side to the conflict – UN expert Michael Lynk: "a one and a half state solution" that will entrench occupation 👉 https://t.co/zQteaqOnkm#StandUp4HumanRights pic.twitter.com/h3lgR2YcCx
UN_SPExperts
इस अमेरिकी योजना के बारे में संयुक्त राष्ट्र ने अपना जाना-पहचाना रुख़ व्यक्त किया जिसमें इसराइल और फ़लस्तीन के रूप में दो राष्ट्रों की स्थापना की बात कही गई है. इस समस्या के हल के लिए यूएन के इस दीर्घकालिक संकल्प में कहा गया है कि दोनों राष्ट्र एक साथ शांति व सुरक्षा के साथ रहें जिनकी सीमाएँ 1967 से पहले के आधार पर निर्धारित हों.
लेकिन इसराइल द्वारा क़ब्ज़ा किए हुए फ़लस्तीनी इलाक़ों में मानवाधिकार स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष प्रतिनिधि (रैपोर्टेयर) माइकल लिंक का कहना है कि अमेरिकी योजना में “डेढ़ देश का समाधान पेश किया गया है”.
उन्होंने कहा, “ये योजना एक न्यायसंगत व टिकाऊ शांति का कोई समाधान नहीं है, बल्कि ये 21वीं सदी में मध्य पूर्व में एक बंतुस्तान (भेदभावपूर्ण वाली जगह) बनाने का प्रावधान करती है.” दक्षिण अफ्रीका में श्वेत सरकार ने रंगभेद की नीति के तहत काले लोगों के लिए एक अलग-थलग स्थान बना दिया था जिसे बंतु होमलैंड या बंतुस्तान कहा जाता था.
विशेष प्रतिनिधि का कहना था, “अमरीकी योजना में जिस लघु फ़लस्तीनी देश का प्रस्ताव दिया गया है वो टुकड़ों-टुकड़ों में बँटी होगी और ये सभी टुकड़े पूरी तरह से इसराइल से घिरे हुए होंगे, और फ़लस्तीनी देश की कोई बाहरी सीमा नहीं होगी, उसका अपने वायु क्षेत्र पर भी कोई नियंत्रण नहीं होगा, अपनी सुरक्षा के लिए सेना रखने का भी अधिकार नहीं होगा, एक भरोसेमंद व टिकाऊ अर्थव्यवस्था के लिए को भौगोलिक प्रावधान भी नहीं होगा, लोगों को आवागमन की आज़ादी नहीं होगी, इसके अलावा इसराइल या अमेरिका के ख़िलाफ़ अंतरराष्ट्रीय न्यायिक मंचों पर शिकायत करने का भी कोई अधिकार नहीं होगा.”
माइकल लिंक ने अमेरिकी योजना की निंदा करते हुए कहा कि ये फ़लस्तीनी इलाक़ों में इसराइली यहूदी बस्तियों को वैध बनाने का प्रस्ताव है. उन्होंने तमाम देशों से आग्रह किया कि वो फ़लस्तीनी क्षेत्रों को छीनने की किसी भी कोशिश की भर्त्सना करें. फ़लस्तीनी क्षेत्रों को इस तरह छीनना अंतरराष्ट्रीय क़ानून के अनुसार प्रतिबंधित है.
विशेष प्रतिनिधि माइकल लिंक का कहना था, “ये एकतरफ़ा कार्रवाई फ़लस्तीनियों के आत्मनिर्णय के अधिकार को महत्वहीन बनाती है, और ये विश्व को फिर से ऐसे काले दौर में धकेल देने का जोखिम पैदा करती है, जब किसी इलाक़े या वहाँ के लोगों को सैन्य शक्ति के बल पर दबाकर रखा जा सकता था, सीमाएँ बदली जा सकती थीं और क्षेत्रीय अखंडता को जल्दी-जल्दी नुक़सान पहुँचाया जा सकता था.”
राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप की योजना के तहत येरूशलम इसराइल की अविभाजित राजधानी रहेगी जिसे विशेष प्रतिनिधि माइकल लिंक ने ख़ासतौर से बहुत चिंताजनक प्रस्ताव क़रार दिया है. इस प्रस्ताव में पूर्वी येरूशलम पर इसराइल के ग़ैर-क़ानूनी क़ब्ज़े को मान्यता दी गई है जबकि पूर्वी येरूशलम अंतरराष्ट्रीय क़ानून के तहत इसराइल द्वारा क़ब्ज़ा किया हुआ एक इलाक़ा है. संयुक्त राष्ट्र के अनेक प्रस्तावों में भी इस स्थिति को मान्यता दी गई है.
मानवाधिकार विशेषज्ञ माइकल लिंक ने ये मुद्दा भी उठाया कि अमेरिकी योजना अनेक स्थानों और देशों में रहने वाले फ़लस्तीनी शरणार्थियों को इसराइल में अपने घरों को वापिस लौटने का अधिकार भी छीनती है.
उनका कहना था, “ट्रंप योजना के प्रावधानों से अधिकरण (क़ब्ज़ा) संबंधी क़ानूनों की और क़ब्ज़ा किए हुए इलाक़ों में फ़लस्तीनी लोगों के मानवाधिकारों की प्रासंगिकता पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता.”
उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को एक ऐसा न्यायसंगत, समानतापूर्ण और टिकाऊ समाधान निकालने की अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करने के लिए प्रयास जारी रखने चाहिए जिसमें फ़लस्तीनियों और इसराइल के समान अधिकार सुनिश्चित हों.
माइकल लिंक ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय क़ानून ही एकमात्र ऐसा विकल्प है जिसके तहत टिकाऊ शांति स्थापना का रास्ता निकल सकता है.
स्वतंत्र विशेषज्ञों और विशेष रैपोर्टेयर (प्रतिनिधियों) की नियुक्ति जिनीवा स्थित संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद करती है. उनकी नियुक्ति किसी देश की विशेष स्थिति या मानवाधिकारों के किसी ख़ास मुद्दे की जाँच-पड़ताल करके रिपोर्ट पेश करने के लिए की जाती है. ये संयुक्त राष्ट्र के कर्मचारी नहीं होते हैं और उन्हें उनके काम के लिए कोई वेतन भी नहीं मिलता है. उनके पद मानद होते हैं.