पाकिस्तान: ईशनिंदा के आरोप में मौत की सज़ा 'न्याय का उपहास है'

संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने पाकिस्तान के मुल्तान शहर के एक विश्वविद्यालय शिक्षक जुनैद हफ़ीज़ को ईशनिंदा के आरोप में मौत की सज़ा सुनाए जाने की निंदा की है. उन्होंने इस सज़ा को न्याय का मखौल क़रार देते हुए आशंका जताई है कि मामले की सुनवाई कर रही न्यायिक टीम के सदस्यों में डर का माहौल है.
तीस वर्षीय जुनैद हफ़ीज़ पाकिस्तान के मुल्तान शहर की बहाउद्दीन ज़कारिया यूनिवर्सिटी में लैक्चरर के तौर पर काम कर रहे थे. उन्हें 13 मार्च 2013 को गिरफ़्तार किया गया था और उन पर कथित रूप से छात्रों को पढ़ाने के दौरान और फ़ेसबुक अकाउंट पर ईशनिंदा का आरोप लगे थे.
UN experts condemn death sentence handed down by court in #Pakistan to university lecturer Junaid Hafeez, who had been charged with #blasphemy.Learn more: https://t.co/WvjsnOQOEm
UN_SPExperts
पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में ईसाई महिला आसिया बीबी को ईशनिंदा के आरापों के एक मामले में बरी कर दिया था जबकि निचली अदालतों ने उन्हें मौत की सज़ा सुनाई थी.
विशेषज्ञों के मुताबिक़ “आसिया बीबी के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद निचली अदालतों के लिए एक मिसाल क़ायम होनी चाहिए थी कि ईशनिंदा के हर उस मामले को ख़ारिज कर दिया जाएगा जो पक्के तौर पर साबित नहीं हुआ.”
“इस फ़ैसले के मद्देनज़र, जुनैद हफ़ीज़ को दोषी क़रार दिया जाना न्याय का उपहास है, और हम उन पर थोपे गए मृत्युदंड की निंदा करते हैं.”
“हम पाकिस्तान में ऊपरी अदालतों से आग्रह करते हैं कि जल्द से जल्द उनकी अपील सुनी जाए, मौत की सज़ा के फ़ैसले को पलटा जाए और उन्हें बरी किया जाए.”
अंतरराष्ट्रीय क़ानून के तहत असाधारण हालात में ही किसी को मौत की सज़ा सुनाई जा सकती है और इरादतन हत्या के लिए बेहद ठोस साक्ष्यों की आवश्यकता होती है.
यूएन विशेषज्ञों का कहना है कि जुनैद हफ़ीज़ पर जो मृत्युदंड थोपा गया है उसका कोई क़ानूनी आधार नहीं है और इसलिए यह फ़ैसला अंतरराष्ट्रीय क़ानून के विपरीत है.
उन्होंने कड़े शब्दों में कहा कि इस सज़ा पर अमल होना किसी व्यक्ति को मनमाने ढंग से मारने जैसा होगा.
स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने गहरी चिंता जताई कि अब भी ईशनिंदा के आरोप लोगों पर लगाए जा रहे हैं जो जायज़ तौर पर सोच, विवेक, धर्म और अभिव्यक्ति की आज़ादी का इस्तेमाल कर रहे हैं.
जुनैद हफ़ीज़ को वर्ष 2014 में मुक़दमे की कार्रवाई शुरू होने के बाद से एकांतवास में रखा गया है जिससे उनके मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ा है.
उन्हें मौत की सज़ा ज़िला और सत्र न्यायालय में 21 दिसंबर 2019 को सुनाई गई.
“लंबे समय तक एकांतवास में रखा जाना यातना और अन्य अमानवीय व अपमानजनक व्यवहार व सज़ा देना जैसा हो सकता है.”
स्वतंत्र विशेषज्ञों ने बताया कि इस मामले में मुल्तान की अदालत में लंबा मुक़दमा चला लेकिन अभियोजन पक्ष आरोप साबित करने के लिए पुख़्ता सबूत नहीं दे पाया.
इसके अलावा “अदालत में कुछ दस्तावेज़ ऐसे पेश किए गए जिनकी स्वतंत्र रूप से फ़ोरेंसिक समीक्षा नहीं हुई जबकि उन पर जाली होने के आरोप लगे थे और हफ़ीज़ के वकील राशिद रहमान की 2014 में हत्या कर दी गई और हत्यारों को सज़ा नहीं दी गई.”
यूएन विशेषज्ञों ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि इस मामले की सुनवाई कर रही न्यायिक टीम के सदस्यों में डर का माहौल है.
यह इसलिए भी समझा जा सकता है क्योंकि लंबे मुक़दमे की कार्रवाई के दौरान कम से कम सात जजों का तबादला किया गया.
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