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आतंकवाद के दिए ज़ख़्म बहुत गहरे होते हैं - महासचिव

यमन के उत्तरी हिस्से में भारी मात्रा में बारूदी सुरंगें और ख़तरनाक़ विस्फोट मौजूद हैं, मगर बहुत से बच्चों को उनके ख़तरों के बारे में जानकारी नहीं है, 11 वर्षीय एक लड़का एक ऐसे ही विस्फोटक की चपेट में आने से ज़ख़्मी हो गया.
Yemen Humanitarian Team/Brent Stirton
यमन के उत्तरी हिस्से में भारी मात्रा में बारूदी सुरंगें और ख़तरनाक़ विस्फोट मौजूद हैं, मगर बहुत से बच्चों को उनके ख़तरों के बारे में जानकारी नहीं है, 11 वर्षीय एक लड़का एक ऐसे ही विस्फोटक की चपेट में आने से ज़ख़्मी हो गया.

आतंकवाद के दिए ज़ख़्म बहुत गहरे होते हैं - महासचिव

शान्ति और सुरक्षा

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने कहा है कि आतंकवाद के दिए हुए ज़ख़्म बहुत गहरे होते हैं, समय बीतने पर उनकी गहराई कुछ कम हो सकती है, मगर वो ज़ख़्म कभी पूरी तरह ख़त्म नहीं होते. बुधवार को आतंकवाद के पीड़ितों की याद और श्रद्धांजलि देने के लिए मनाए गए अंतरराष्ट्रीय दिवस के मौक़े पर महासचिव ने ये शब्द कहे. ये दिवस हर वर्ष 21 अगस्त को मनाया जाता है.

महासचिव ने कहा कि आतंकवाद अपने सभी रूपों और प्रकारों में एक वैश्विक चुनौती बना हुआ है. आतंकवाद से व्यक्तियों, परिवारों और समुदायों को बहुत गहरा और लंबी अवधि तक मौजूद रहने वाला नुक़सान पहुँचता है.

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने दुनिया भर में आतंकवाद की वजह से मौत का शिकार हुए लोगों, पीड़ितों और प्रभावितों को सम्मान, समर्थन व सहायता देने के लिए 21 अगस्त को अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाने का फ़ैसला किया था.

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इस अभियान के तहत लोगों के मानवाधिकारों की हिफ़ाज़त करने और आतंकवाद का मुक़ाबला करने के लिए क़ानून का शासन मज़बूत करने पर भी ज़ोर दिया जाता है.

महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने इस दिवस के मौक़े पर कहा कि दुनिया भर में आतंकवाद के पीड़ितों और प्रभावितों ने बड़ी हिम्मत, साहस और मज़बूती दिखाई है जिसके तहत वैश्विक एकजुटता नज़र आई है. 

महासचिव ने आतंकवाद का शिकार होने वाले लोगों की सहायता के लिए बहुपक्षीय और दीर्घकालीन सहायता ढाँचा विकसित किए जाने की हिमायत की. इसमें सरकारों, सिविल सोसायटी और साझेदार संगठनों का सहयोग बहुत अहम है. इससे आतंकवाद के शिकार लोगों को अपने ज़ख़्म भरने, तकलीफ़ों से उबरने, अपनी ज़िंदगियाँ फिर से समेटने और दूसरों की मदद करने की हिम्मत मिलेगी.

महासचिव एंतोनियो गुटेरेश का कहना था, "आतंकवाद के शिकार लोगों की मदद करके हम उनके अधिकारों की रक्षा करने और सामूहिक इंसानियत दिखाने की ज़िम्मेदारी निभाते हैं. उनकी बात गहराई से सुनकर हम आतंकवाद के ख़िलाफ़ समुदायों को एकजुट करने के तरीक़े सीख सकते हैं."

महासचिव ने आहवान करते हुए कहा कि हम सभी को उन ज़िंदगियों को गहराई से देखना-समझना चाहिए जो आतंकवाद के कारण हमेशा के लिए बदल गई हैं.

महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने कहा, "आइए, हम आतंकवाद के पीड़ितों और प्रभावितों को अपना संकल्प दिखाएँ कि वो अकेले नहीं हैं और पूरा अंतरराष्ट्रीय समुदाय उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है, चाहे आज उनके कुछ भी हालात हों. "

क्रूरता और प्रताड़ना

इस दिवस के मौक़े पर संयुक्त राष्ट्र के न्यूयॉर्क स्थिति मुख्यालय में एक फ़ोटो प्रदर्शनी भी आयोजित की गई.  इसमें शिरकत करते हुए उन्होंने कहा कि आतंकवाद और हिंसक अतिवाद का ख़तरा आज हम सभी के सामने एक बहुत जटिल चुनौती बना हुआ है.

उन्होंने काबुल, नाईजीरिया, बुर्किना फासो, लेक चाड बेसिन के अनेक इलाक़ों और दुनिया के अन्य स्थानों में हुए भीषण आतंकवादी हमलों की दर्दनाक तस्वीर भी पेश करने की कोशिश करते हुए कहा, "इन क्रूर और निर्दय हमलों के ज़रिए बहुत सी ज़िंदगियाँ दर्दनाक तरीक़े से ख़त्म हो गईं. "

महासचिव ने साल 2019 के शुरू में ऐसे लोगों से मुलाक़ात की थी जो आतंकवादी हमलों से गंभीर रूप से प्रभावित हुए थे और उनका हौसला और हिम्मत देखकर महासचिव बहुत प्रभावित हुए थे.

महासचिव ने कहा कि "इन जाँबाज़ लोगों से मिला संदेश स्पष्ट और बहुत सीधा है - आइए, इन भयावह अनुभवों को शक्तिशाली और सकारात्मक ताक़तों का रूप दे दें जिनके ज़रिए बदलाव लाया जा सके."

कोई देश अछूता नहीं बचा है

मादक पदार्थों और अपराध पर संयुक्त राष्ट्र के कार्यालय (यूएनओडीसी) के कार्यकारी निदेशक यूरी फ़ेदोतोफ़ ने ध्यान दिलाते हुए कहा कि बहुत सारे लोगों की ज़िंदगी आतंकवाद की भेंट चढ़ रही है, इस वजह से बहुत से परिवारों और समुदायों को भारी तकलीफ़ें उठानी पड़ती हैं.

उन्होंने ज़ोर देकर कहा, "दुनिया भर में हाल में हुए आतंकवादी हमलों ने दिखा दिया है कि कोई भी समाज और देश आतंकवाद के ज़ख़्मों और क्रूर निशानों से अछूता नहीं बचा है."

यूरी फ़ेदोतोफ़ ने ध्यान दिलाते हुए कहा कि उनका कार्यालय इन आपदाओं को रोकने के लिए हर संभव कोशिश करता है कि ये दोबारा ना हों. "हमारे पार्टनर आतंकवाद से सीधे तौर पर और सबसे ज़्यादा प्रभावित होने वाले लोग ही होते हैं. यूएनओडीसी उन सभी लोगों को सशक्त बनाने के लिए समर्पित है जो आतंकवाद से प्रभावित हुए हैं और हालात बदलने के लिए ठोस कार्रवाई कर सकें."

उनका कहना था कि तकलीफ़ों के बावजूद आतंकवाद के पीड़ितों और प्रभावितों को ही सबसे ज़्यादा परेशानियाँ उठानी पड़ती हैं. उन्हें न्याय हासिल करने, आपराधिक प्रक्रिया और न्यायिक प्रक्रिया के दौरान और उससे पहले तथ्य और सूचनाएँ हासिल करने में बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है.

इतना ही नहीं आतंकवाद के पीड़ितों और प्रभावितों को दीर्घकालीन चिकित्सा सहायता, वित्तीय और मनोवैज्ञानिक सहायता मुहैया कराने के लिए लिंग संवेदनशील व्यवस्था की भी भारी कमी होती है.

यूरी फ़ेदोतोफ़ का कहना था, "सरकारों को ऐसी व्यवस्था क़ायम करनी चाहिए जिसमें पीड़ितों और प्रभावितों के नज़रिए से न्याय प्रणाली काम करे जिसमें उनके अधिकार भी सुरक्षित हों. "

कार्यकारी निदेशक का कहना था कि आतंकवाद का मुक़ाबला करने वाले फ्रेमवर्क को प्रभावितों और पीड़ितों की ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए कार्यक्रम चलाने होंगे जिनमें आतंकवादी गतिविधियों के लिए ज़िम्मेदार लोगों को न्याय के कटघरे में लाने का इंतज़ाम करना भी शामिल हो.

आतंकवाद के पीड़ितों और प्रभावितों की याद में न्यूयॉर्क स्थित मुख्यालय में आयोजित फ़ोटो प्रदर्शनी के मौक़े पर महासचिव, तीन पीड़ित व अन्य पदाधिकारी (21 अगस्त 2019)
UN Photo/Eskinder Debebe
आतंकवाद के पीड़ितों और प्रभावितों की याद में न्यूयॉर्क स्थित मुख्यालय में आयोजित फ़ोटो प्रदर्शनी के मौक़े पर महासचिव, तीन पीड़ित व अन्य पदाधिकारी (21 अगस्त 2019)

नैरोबी के दूतावास पर हमला

आतंकवाद का शिकार हुए कुछ साहसी पीड़ितों ने भी इस फ़ोटो प्रदर्शनी में शिरकत की और उन्होंने आपबीती सुनाते हुए नफ़रत को हराने की भी हिमायत की.

केनया की सारा टिकोलो उस समय 21 वर्ष की थीं जब 7 अगस्त 1999 को नैरोबी में अमरीकी दूतावास पर हुए एक आतंकवादी हमलें में उनके पति की मौत हो गई. उस समय उनके बेटे की उम्र सिर्फ़ चार महीना थी. विधवा के रूप में ज़िंदगी जीना उनके लिए बहुत मुश्किल था.

सारा टिकोलो ने इस मौक़े पर कहा, “बहुत वर्षों तक मैंने भारी तकलीफ़ के साथ जीवन बिताया है और ये बहुत मुश्किल रहा है... लेकिन हाल ही में उन्होंने फ़ैसला किया कि अगर ख़ुद की और अपने बेटे की मदद करनी है तो माफ़ करने की ज़रूरत है, क्योंकि अतीत से निकलकर आगे बढ़ना है तो यही एक मात्र रास्ता है.”

उन्होंने कहा, “मेरे भीतर भरी कड़वाहट और ग़ुस्से से हमारा और ज़्यादा नुक़सान हो रहा था और ये नुक़सान शारीरिक व भावनात्मक दोनों ही रूपों में था.”

सारा टिकोलो अब अमरीकी दूतावास के लिए काम करती हैं और इस पर बहुत ख़ुश हैं कि उनके पास ऐसे साधन हैं जिनके ज़रिए वो अपने बेटे को विश्व विद्यालय शिक्षा के लिए सहारा दे सकती हैं.

मुख्यालय में मौजूद लोगों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, “मुझे अपने बेटे की उपलब्धियों पर बहुत गर्व है.”

लंदन बम हमलों की जीवित पीड़ित

ब्रिटेन की थेलमा स्टॉबर 7 जुलाई 2005 को लंदन में हुए आतंकवादी हमलों में गंभीर रूप से घायल हुई थीं. उनके कुछ ज़ख़्म तो स्थाई हैं. उनका एक अंग काटना पड़ा और उनके आंतरिक अंगों को भारी नुक़सान पहुँचा था. उन हमलों में 52 दैनिक यात्रियों की मौत हुई थी जो कामकाज के स्थानों पर जाने के लिए सफ़र कर रहे थे. सैकड़ों अन्य घायल भी हुए थे.

थेलमा स्टॉबर ने इस मौक़े पर मौजूद लोगों से बातचीत करते हुए कहा, “इस भीषण घटना में जीवित बचने की सौभाग्यशाली होने, हिम्मत और पक्के इरादे का सहारा लेना ही मेरे लिए एकमात्र विकल्प रहा है. इसी हौसले के ज़रिए मैं अपना मक़सद हासिल कर सकती थी और मेरा मक़सद रहा है अपने तजुर्बे के आधार पर आतंकवाद और अन्य अपराधों के पीड़ितों और प्रभावितों की ज़िंदगी में सकारात्मक बदलाव लाना.”

उन्होंने ध्यान दिलाते हुए कहा कि आतंकवाद के पीड़ितों को सहारा देने के बारे में बहुत कुछ लिखा गया है लेकिन सवाल ये है कि ऐसी नीतियों या कार्यक्रमों को असरदार, निष्पक्ष, पारदर्शी और समान रूप से लागू करने पर कैसे नज़र रखी जाती है? सदस्य देश अपने वायदों को पूरा करें, इसके लिए उन्हें जवाबदेह और ज़िम्मेदारी ठहराने के लिए क्या व्यवस्था है? उनकी नज़र में संयुक्त राष्ट्र को ये भूमिका निभानी चाहिए.

9/11 हमलों की विधवा

एयर कनाडा में फ्लाइट एटेंडेंट मौरीन बैसनिकी जर्मनी के मैन्ज़ में आरामतलब वक़्त गुज़ार रही थीं जब उनके प्रिय पति केन को न्यूयॉर्क में 2001 में 11 सितंबर को हुए हमलों ने लील लिया. मौरीन को अपने पति की मौत के सदमे से उबरे में पिछले 18 वर्षों के दौरान अनेक चीज़ों ने मदद की है – इनमें हिंसक अपराधों और आतंकवाद के पीड़ितों की मदद करना प्रमुख है.

उन्होंने संयुक्त राष्ट्र का आहवान किया कि सीमा पार जाने को मजबूर होने वाले पीड़ितों की मदद के लिए ठोस इंतज़ाम किया जाए, इसमें ये भी सुनिश्चित हो कि उन पीड़ितों के मूल देश उनकी मदद करना ना भूलें और ये मदद सिर्फ़ शुरुआती दौर में नहीं, बल्कि दीर्घकाल तक मौजूद रहे.

मौरीन का कहना ता, “किसी की ज़िंदगी पूरी तरह से तबाह कर देने और बिखेर देने में सिर्फ़ कुछ लम्हे लगते हैं लेकिन ज़िंदगी को फिर से समेटने और जीने लायक़ बनाने में पूरी ज़िंदगी लग जाती है.”