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गुमशुदाओं के परिजनों को सही सूचना और जवाब मिलना ज़रूरी

श्रीलंका में 26 वर्ष के गृहयद्ध के दौरान लापता हुए लोगों के परिजन राजधानी कोलंबो में एक मीटिंग में उनकी तस्वारों के साथ
Photo: IRIN/Amantha Perera
श्रीलंका में 26 वर्ष के गृहयद्ध के दौरान लापता हुए लोगों के परिजन राजधानी कोलंबो में एक मीटिंग में उनकी तस्वारों के साथ

गुमशुदाओं के परिजनों को सही सूचना और जवाब मिलना ज़रूरी

मानवीय सहायता

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने सशस्त्र संघर्षों और लड़ाई-झगड़ों में लापता हुए लोगों के मुद्दे पर पहली बार कोई महत्वपूर्ण प्रस्ताव पारित किया है. मंगलवार को पारित हुए इस प्रस्ताव को सभी 15 सदस्यों ने एकमत से मंज़ूरी दी. इस प्रस्ताव का उद्देश्य तमाम देशों को अपनी मानवीय और क़ानूनी जिम्मेदारियाँ पूरी करने के लिए प्रोत्साहित करना है.

इन उपायों के तहत सभी संबद्ध पक्षों को युद्धों और सशस्त्र संघर्षों में लोगों के लापता होने के मामलों को रोकने और इस समस्या का व्यापक मानवीय समाधान तलाश करने पर ज़ोर रहेगा. साथ ही ऐसे हालात में अपने परिवारों से बिछड़े लोगों का फिर से उनके परिवारों के साथ मिलन संभव बनाना होगा. कम से कम इतना तो निर्धारित करना ही होगा कि लापता लोगों के बारे में सटीक जानकारी उनके परिवारों को उपलब्ध कराई जा सके.

संयुक्त राष्ट्र के मानवीय सहायता संयोजक कार्यालय में अभियानों की प्रभारी रीना गेलानी का कहना था कि सशस्त्र संघर्षों में चिंताजनक संख्या में लोग लापता होते देखे गए हैं. रीना गेलानी ने एजेंसी के अध्यक्ष मार्क लॉकॉक की तरफ़ से प्रेस से बातचीत की.

ये बात भी सामने आई है कि युद्धों और सशस्त्र संघर्षों के दौरान लापता होने वाले लोगों की सही संख्या के बारे में ठोस आँकड़े मौजूद नहीं हैं. लेकिन दुनिया भर में सशस्त्र संघर्षों के दौरान आम आबादी की हिफ़ाज़त के लिए काम करने वाले समाज-सेवी संगठन रैडक्रॉस ने सीरिया में लापता हुए लोगों के दस हज़ार मामले दर्ज किए हैं. अकेले नाईजीरिया में ही लापता हुए लोगों के मामले में मदद के लिए लगभग 13 हज़ार अर्ज़ियाँ मिलीं.

हताशा और निराशा

संघर्षों के दौरान लोग अनेक कारणों से ग़ायब हो सकते हैं. या तो युद्धरत पक्ष उन्हें पकड़ सकते हैं और उन्हें गुप्त ठिकानों पर रख सकते हैं, आम लोग मनमाने तरीक़े से हत्याओं का शिकार भी हो सकते हैं, ऐसे मामलों में इस तरह के लोगों को हत्याओं के बाद अनजान स्थानों पर दफ़ना दिया जाता है.

अक्सर हिंसा और अशांति से बचने के लिए जब लोग बेहतर हालात की तलाश में निकलते हैं तो अपने परिवारों से भी बिछड़ जाते हैं. कई अन्य कारणों से भी बहुत से लोग लापता हो जाते हैं.

रीना गेलानी का कहना था, “परिस्थितियाँ कुछ भी हों, जिन परिवारों के सदस्य लापता हो जाते हैं, उनके हालात बहुत दयनीय हो जाते हैं क्योंकि उन्हें लापता हुए अपने प्रियजनों के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं मिलती कि वो किन हालात में हैं, जीवित हैं या मृत.”

उनका कहना था कि विशेष रूप से अगर लापता हुआ व्यक्ति अपने परिवार का अकेला ही रोज़गार कमाने वाला व्यक्ति हो तो परिवारों पर आर्थिक तबाही और भी ज़्यादा होती है.

ऐसे परिवारों के लोगों को अक्सर बहुत कठिन क़ानूनी, प्रशासनिक और सांस्कृतिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जिससे उनका हौसला पस्त हो जाता है.

मुश्किल तो ये भी होती है कि क्योंकि लापता व्यक्ति के जीवित या मृत होने की कोई पुष्टि नहीं होती, तो उनकी पत्नियाँ ना तो दूसरा विवाह कर सकती हैं, ना ही विरासत संबंधी क़ानूनी औपचारिकताएँ पूरी कर सकती हैं और ना ही ऐसे हालात में मिलने वाले लाभ मिल सकते हैं.

लापता लोगों के मुद्दे पर पहला प्रस्ताव

इस ऐतिहासिक प्रस्ताव में उन हालात से निपटने पर विशेष ज़ोर दिया गया है जिसमें युद्ध या संघर्ष समाप्त होने के बाद इस समस्या से निटपने के बजाय तब ध्यान देना चाहिए जब किसी स्थान पर सशस्त्र संघर्ष, लड़ाई-झगड़े या युद्ध शुरूआती दौर में होते हैं.

संयुक्त राष्ट्र के मानवीय सहायता कार्यों के संयोजक कार्यालय  में ऑपरेशंस और एडवोकेसी की प्रभारी रीना गेलानी की प्रेस कान्फ्रेंस

प्रस्ताव में आम नागरिकों को गुमशुदगी का शिकार होने से बचाने यानी रोकथाम के लिए अनेक उपाय सुझाए गए हैं.

मसलन, किसी व्यक्ति को हिरासत में लिए जाते समय उसका बाक़ायदा पंजीकरण हो, उनकी पहचान सुनिश्चित हो और राष्ट्रीय स्तर पर एक सूचना ब्यूरो स्थापित किया जाए जो बंदी बनाए गए सभी व्यक्तियों और विरोधी पक्ष की हिरासत में मौजूद सभी लोगों के बारे में संपूर्ण जानकारी मुहैया कराए.

साथ ही किसी भी पक्ष की हिरासत में मौजूद बंदियों के बारे में तमाम तरह की जानकारी मुक्त रूप से उपलब्ध होनी चाहिए.

सुरक्षा परिषद द्वारा पारित ये प्रस्ताव लापता बच्चों के मामले पर ज़्यादा ज़ोर देता है. परिषद ने प्रस्ताव के ज़रिए बच्चों को ग़ायब होने से बचाने के प्रयासों में अंतरराष्ट्रीय रैडक्रॉस संगठन को अपना समर्थन दोहराया.

सुरक्षा परिषद ने सशस्त्र संघर्षों और युद्धों में शामिल सभी पक्षों को आम नागरिकों को लापता होने से बचाने के प्रयासों में सभी एजेंसियों और समाज-सेवी संगठनों के साथ सहयोग करने का आहवान किया. ये अंतरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून की ज़रूरत भी है.

अंतरराष्ट्रीय रैडक्रॉस कमेटी के प्रमुख पीटर माउरेर जिनेवा से प्रेस सम्मेलन में शिरकत करते हुए कहा, “रेडक्रॉस समिति हर दिन लोगों की इस तरह की तकलीफ़ों से दो-चार होती है. कभी-कभार तो समाधाम मौजूद होते हैं.” उन्होंने तमाम देशों की सरकारों से ज़ोर देकर कहा कि उन्हें लापता लोगों की तलाश करने में अपनी ज़िम्मेदारियों को गंभीरता से पूरा करना होगा ताकि तमाम सवालों के जवाब परिवारों को दिए जा सकें.

उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि लापता लोग और उनके परिवारों को सौदेबाज़ी के लिए एक हथियार के तौर पर क़तई इस्तेमाल नहीं किया जा सकता.

इसके लिए ज़रूरी है कि रोकथाम के उपाय करने के लिए मज़बूत राजनैतिक इरादा दिखाया जाए. साथ ही जब लापता लोगों के मामलों का सामना किया जाए तो ज़्यादा मानवीय रुख़ और बर्ताव दिखाना ज़रूरी है जिससे प्रभावित परिवारों को कुछ राहत मिल सके.