वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए 'मज़बूत और एकजुट' यूरोप ज़रूरी

दूसरे विश्व युद्ध के बाद दुनिया में बहुपक्षवाद को बढ़ावा देने के इरादे से जिन अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को स्थापित किया गया था उन पर संकट मंडरा रहा है. जर्मनी के प्राचीन शहर आखेन में ‘शार्लेमान पुरस्कार’ ग्रहण करते समय संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने सचेत किया है कि एक मज़बूत और एकजुट यूरोप का यूएन के साथ खड़ा होना पहले से कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण हो गया है.
शार्लेमान पुरस्कार को यूरोपीय एकीकरण की दिशा में किए गए प्रयासों को सम्मानित करने के उद्देश्य से 1950 में शुरू किया गया था.
1990 के दशक में यूरोपीय संघ ने सामाजिक सुरक्षा तंत्र को मज़बूत बनाने और भारत और अफ़्रीका के साथ एकजुटता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से जो प्रयास शुरू किए उनमें अंतोनियो गुटेरेश ने पुर्तगाल के प्रधानमंत्री के तौर पर अहम भूमिका निभाई.
महासचिव गुटेरेश ने कहा कि वह स्वयं को ‘संकल्पवान यूरोपीय’ के रूप में देखते हैं और उन्हें यह अवार्ड देकर आखेन शहर ने संयुक्त राष्ट्र के कर्मचारियों के समर्पण, सेवा और त्याग को सम्मानित किया है.
दो विश्व युद्धों में तबाही से उबरने के बाद यूरोपीय महाद्वीप पर शांति और समृद्धि को कायम रखना यूरोपीय संघ के अहम उद्देश्यों में रहा है.
यूएन प्रमुख ने संतोष व्यक्त किया कि संयुक्त राष्ट्र के साथ यूरोपीय संघ ने ‘अनुकरणीय साझेदारी’ स्थापित की है. साथ ही आगाह किया कि अगर 27 देशों का यह राजनीतिक और आर्थिक ब्लॉक टूटता है तो यह बहुपक्षवाद और दुनिया में क़ानून के राज की व्यवस्था की हार होगी.
“कठोर सच्चाई है कि हमने सामूहिक तौर पर पर कई बातों को हल्के में लिया है.” उन्होंने चिंता ज़ाहिर करते हुए बताया कि लोकतांत्रिक मूल्य पर ख़तरा बढ़ रहा है और क़ानून के राज को कमज़ोर किया जा रहा है.
At this time of great anxiety & geopolitical disorder we need multilateralism more than ever —@antonioguterres as he receives the International Charlemagne Prize https://t.co/JU3feR80o6 pic.twitter.com/zhqnFydQos
UN
“असमानताएं बढ़ रही हैं. नफ़रत भरे भाषण, नस्लवाद और विदेशियों के प्रति डर और नापसंदगी की भावनाएं सोशल मीडिया के ज़रिए आतंकवाद भड़का रही हैं.”
सार्वभौमिक मूल्यों के प्रसार में यूरोप की प्रमुख भूमिका को रेखांकित करते हुए उन्होंने सचेत किया कि बहुपक्षवाद एक ऐसे दौर में संकट में है जब उसकी सबसे अधिक ज़रूरत है और जब मौजूदा चुनौतियों से निपटने में उससे मदद मिल सकती है
“मेरी इच्छा है कि बहुपक्षवाद के एजेंडा के लिए यूरोप को निर्णायक रूप से खड़ा होना चाहिए. संयुक्त राष्ट्र को एक मज़बूत और एकजुट यूरोप की ज़रूरत है. ऐसा करने के लिए यूरोप को कुछ गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा.”
यूरोपीय संसद के लिए हुए चुनाव में बढ़ी हुई भागीदारी को उन्होंने उत्साहजनक संकेत बताया और कहा कि “यह वो लम्हा है जब हमें भरोसा बहाल करना होगा. लोगों का राजनीतिक व्यवस्था में भरोसा. लोगों का संस्थाओं में भरोसा. लोगों का अंतरराष्ट्रीय संगठनों में भरोसा.”
तीन बड़ी चुनौतियों का उल्लेख करते हुए उन्होंने अपेक्षा ज़ाहिर की है कि उनसे निपटने में यूरोप अग्रणी भूमिका निभाएगा. पहली है जलवायु परिवर्तन जिसके लिए कार्बन उत्सर्जन घटाने, अनुकूलन के प्रयास करने और वित्तीय संसाधन जुटाने में और महत्वाकांक्षा की बात कही है.
दूसरी चुनौती नई तकनीक के सहारे समाज की कायापलट करना है जिससे निपटने के लिए यूरोप बेहतर स्थिति में है. इसके लिए डिजिटल प्राइवेसी के लिए नियामक फ़्रेमवर्क तैयार करना होगा और आर्टिफ़िशियल इंटेलीजेंस की संभावनाओं का लाभ उठाना होगा.
तीसरी चुनौती सामाजिक सुरक्षा तंत्रों को सुनिश्चित करना है ताकि चौथी औद्योगिक क्रांति के प्रभावों का सामना किया जा सके. उन्होंने कहा कि यूरोप के सामाजिक मॉडल में इन चुनौतियों का सामना करने की मज़बूत नींव है और इसलिए समाजों के रूपान्तरण में यूरोप अहम भूमिका निभा सकता है.
समावेशन को उन्होंने यूरोपीय संस्कृति का शुरुआती बिंदु बताते हुए आग्रह किया कि मानवाधिकारों पर यूरोपीय संधि और बुनियादी मानवाधिकारों के चार्टर में जिन मूल्यों का उल्लेख किया गया है यूरोप को उनका अनुपालन करना चाहिए. प्रवासियों और शरणार्थियों के लिए दरवाज़े बंद करने या उन्हें बलि का बकरा बनाया जाना यूरोपीय विरासत के लिए शर्म की बात होगी.