लघु द्वीपीय देश (SIDS), ‘जलवायु न्याय और वित्त न्याय के लिए परीक्षण मामला’ एंतोनियो गुटेरेश
दुनिया, वैश्विक तापमान वृद्धि या दोगुनी गति वाले वित्तीय विश्व के कारण किसी एक देश या संस्कृति का नुक़सान नहीं होने दे सकती, जहाँ धनी अधिक अमीर बन रहे हैं और निर्धन, अधिक ग़रीब हो रहे हैं. यूएन प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश ने ऐंटीगुआ और बरबूडा में सोमवार को लघु द्वीपीय देशों पर चौथे सम्मेलन (SIDS4) का उदघाटन करते हुए यह बात कही है.
कैरीबियाई क्षेत्र में स्थित एंटीगुआ और बरबूडा नामक लघु द्वीपीय विकासशील देश, 2017 में इरमा और मारिया नामक विनाशकारी तूफ़ानों से जूझने के बाद, जलवायु परिवर्तन की विध्वंसकारी शक्ति को भलीभाँति समझता है.
यूएन प्रमुख ने कहा, “आपकी अनोखी भौगोलिक स्थिति, आपको जलवायु संकट की दया पर रख रही है, जहाँ समुद्र के जल स्तर बढ़ रहे हैं और भूमि क्षय भी हो रहा है. जलवायु परिवर्तन पूरी मानवता के लिए एक अस्तित्व सम्बन्धी संकट है, मगर लघु द्वीपीय देश उससे सर्वाधिक प्रभावित होने वाले क्षेत्रों में हैं.”
आयातों और जटिल आपूर्ति श्रृंखलाओं पर निर्भर ये देश, अत्यन्त चरम मौसम के वैश्विक रिकॉर्ड, कोविड-19 महामारी और क्षेत्रीय टकरावों से बिखर चुके पर्यटन के कारण, ये देश अनेक तरह की कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं.
वैश्विक द्वीपीय बैठक
अनेक देशों से 20 से अधिक राष्ट्रीय नेता और लगभग 100 देशों के मंत्रियों सहित, लगभग चार हज़ार प्रतिभागी इस सम्मेलन में शिरकत करने के लिए एकत्र हुए हैं. उनके अलावा निजी क्षेत्र, सिविल सोसायटी, शिक्षा क्षेत्र के प्रतिनिधि और युवजन भी इस सम्मेलन में शिरकत कर रहे हैं.
ये प्रतिनिधि “एक सहनसक्षम समृद्धि की तरफ़ मार्ग बनाने” के विषय पर, 39 लघु द्वीपीय विकासशील देशों (SIDS) के अस्तित्व महत्व से सम्बन्धित मुद्दों पर विचार करेंगे.
यह सम्मेलन ऐंटीगुआ के अमेरिकी विश्वविद्यालय में सोमवार से गुरूवार तक आयोजित हो रहा है जिसमें अगले दशक के दौरान, निर्बल हालात वाले इन देशों की टिकाऊ विकास आकांक्षाओं और उन्हें पूरा करने के लिए समर्थन का ख़ाका पेश किया गया है.
जीवनरक्षक सहायता की दरकार
यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने लघु द्वीपीय विकासशील देशों (SIDS) के भविष्य को, जलवायु और वित्त न्याय दोनों के लिए एक ऐसा “परीक्षण मामला” क़रार दिया है जिस पर दुनिया नाकाम नहीं हो सकती.
कैरीबियाई क्षेत्र में स्थित एंटीगुआ और बरबूडा नामक लघु द्वीपीय विकासशील देश, 2017 में इरमा और मारिया नामक विनाशकारी तूफ़ानों से जूझने के बाद, जलवायु परिवर्तन की विध्वंसकारी शक्ति को भलीभाँति समझता है.
यूएन प्रमुख ने कहा कि लघु द्वीपीय देशों पर चौथा ऐंटीगुआ और बरबूडा सम्मेलन, अन्तरराष्ट्रीय समुदाय के साथ इन देशों में सहनसक्षम ख़ुशहाली प्राप्ति के क़दमों की ख़ाका पेश करता है.
उन्होंने कहा, जलवायु संकट का मुक़ाबला करने; सहनशील अर्थव्यवस्थाओं का निर्माण करने; सुरक्षित और स्वस्थ समाजों, जैव विविधता के संरक्षण; “और समुद्र और उसके संसाधनों के संरक्षण और टिकाऊ प्रयोग के लिए संयुक्त राष्ट्र आपके साथ समर्थन में खड़ा है.”
एंतोनियो गुटेरेश ने इन देशों से स्वयं भी साहसिक और टिकाऊ संसाधन निवेश करने के लिए कहा, मगर वो केवल अपने बल पर सफल नहीं हो सकते.
यूएन महासचिव ने कहा, “अन्तरराष्ट्रीय समुदाय का ये कर्तव्य है कि वो आपको समर्थन दें – उन देशों के नेतृत्व में जो, आपके समक्ष चुनौतियों का सामना करने के लिए ज़िम्मेदार और सक्षम हैं.”
न्याय पर है मुख्य ज़ोर
यूएन प्रमुख ने कहा कि तापमान वृद्धि पहले ही 1.5 डिग्री सैल्सियस की सीमा के निकट पहुँच रहा है, ऐसे में हम “किसी देश या संस्कृति को, बढ़ती लहरों में गुम नहीं होने दे सकते.”
“यह विचार कि एक सम्पूर्ण द्वीपीय देश, जीवाश्म ईंधन उद्योग के लाभ लालच या मुख्य अर्थव्यवस्थाओं के बीच प्रतिस्पर्धा का निशाना बन जाए, अपने आप में बहुत निन्दनीय है.“
लघु द्वीपीय देशों ने पहले ही दशों से, अग्रिम मोर्चों से नेतृत्व दिखाया है, और जलवायु संकट पर विश्व की चेतना की सेवा की है और उसके ज़रिए वर्ष 2015 में पेरिस में महत्वपूर्ण सफलता हासिल की.
महासचिव ने कहा, “आज, हमें आपकी प्रखर आवाज़ों की, पहले से कहीं अधिक आवश्यकता है.”