विश्व आदिवासी जन दिवस के बारे में जानने योग्य पाँच बातें
विश्व आदिवासी दिवस प्रत्येक वर्ष 9 अगस्त को मनाया जाता है. इस वर्ष इस दिवस का विषय है - 'स्वैच्छिक अलगाव और प्रारम्भिक सम्पर्क में रहने वाले आदिवासी जन के अधिकारों की रक्षा'.
जानने योग्य पाँच बातें:
1. ‘स्वैच्छिक अलगाव और प्रारम्भिक सम्पर्क’ का क्या अर्थ है?
इस वर्ष के अन्तरराष्ट्रीय दिवस का ध्यान, लगभग 200 आदिवासी समूहों पर है, जो वर्तमान में स्वैच्छिक अलगाव और प्रारम्भि सम्पर्क में रह रहे हैं.
ये लोग, बाक़ी दुनिया से अलगाव में, अपनी जीविका जुटाकर और शिकार करके जीवित रहते हैं.
ये समूह, बोलीविया, ब्राज़ील, कोलम्बिया, एक्वाडोर, भारत, इंडोनेशिया, पपुआ न्यू गिनी, पेरू और वेनेज़ुएला के दूरदराज़ स्थित प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध जंगलों में रहते हैं.
2. कोई समूह स्वैच्छिक रूप से अलग रहना क्यों चुनता है?
ये आदिवासी समूह, जानबूझकर मुख्यधारा के समाज से दूर रहते हैं.
प्रत्येक समुदाय के अपने कारण होते हैं, जिनमें से कुछ अपनी स्वायत्तता को बनाए रखने के लिए ऐसा करते हैं.
कुछ समुदाय अपनी संस्कृतियों और भाषाओं की रक्षा के लिए भी स्वैच्छिक रूप से अलग रहते हैं.
3. क्या ख़तरे हैं?
बाहरी सम्पर्क से अलग-थलग रहने वाले आदिवासी लोगों के लिए सबसे गम्भीर ख़तरों में से एक बीमारियों के सम्पर्क में आना है.
इन समूहों के पास, अलगाव की अपनी स्थिति के कारण, सामान्य बीमारियों से लड़ने के लिए प्रतिरक्षा तंत्र नहीं होता. बाहरी दुनिया के साथ जबरन सम्पर्क, उनके लिए विनाशकारी परिणाम ला सकता है और सम्पूर्ण समाजों को नष्ट कर सकता है.
इन लोगों के लिए कुछ सबसे बड़े जोखिम, हमारे दैनिक जीवन से आते हैं. कृषि, खनन, पर्यटन और उनके क्षेत्र में मौजूद प्राकृतिक संसाधनों की मांग, उनकी भूमि के वनों की कटाई का कारण बनती है, जिससे उनके जीवन जीने के तरीक़े में विघटन के साथ-साथ उस प्राकृतिक पर्यावरण का क्षय भी होता है जिसे उन्होंने पीढ़ियों से संरक्षित किया है.
4. इसके परिणाम क्या हैं?
स्वैच्छिक अलगाव और प्रारम्भिक सम्पर्क में रहने वाले आदिवासी समुदाय जंगलों के सबसे बेहतर रक्षक हैं.
जहाँ भूमि और क्षेत्रों पर उनके सामूहिक अधिकारों की रक्षा की जाती है, वहाँ जंगल फलते-फूलते हैं और साथ ही उनके समाज भी.
उनकाअस्तित्व सांस्कृतिक और भाषाई विविधता के संरक्षण के लिए भी महत्वपूर्ण है.
आज की 'हाइपर कनैक्टेड' दुनिया में स्वैच्छिक अलगाव और प्रारम्भिक सम्पर्क में रहने वाले आदिवासी समुदायों का अस्तित्व, मानवता की समृद्ध और जटिल संरचना का प्रमाण है.
5. आप कैसे मदद कर सकते हैं?
स्वैच्छिक अलगाव का समर्थन अनूठी संस्कृतियों, भाषाओं और जीवन के तरीक़ों की रक्षा में मदद करता है. उपभोक्ता के रूप में, सतत विकल्पों का चुनाव इन समुदायों को विलुप्त होने से बचाने में मदद कर सकता है.
आदिवासी जन के लिए सबसे बड़े ख़तरों में से एक खनन कम्पनियाँ हैं, जो नवीकरणीय ऊर्जा तकनीकों के लिए लिथियम, कोबाल्ट और अन्य महत्वपूर्ण खनिजों का दोहन करती हैं.
यूएन महासचिव ने हाल ही में ‘क्रिटिकल एनर्जी ट्रांजिशन मिनरल्स’ पर एक पैनल का गठन किया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि निष्कर्षण उद्योग मानव अधिकारों की रक्षा करे.
रोचक तथ्य:
आदिवासी जन एक विशेष क्षेत्र के साथ उपनिवेशीकरण से पहले से ही ऐतिहासिक निरन्तरता साझा करते हैं और अपनी भूमि के साथ एक मजबूत सम्बन्ध बनाए रखते हैं.
वे, कम से कम आंशिक रूप से ही सही, भिन्न सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक प्रणालियों को बनाए रखते हैं, और उनकी अपनी विशिष्ट भाषाएँ, संस्कृतियां, विश्वास और ज्ञान प्रणालियाँ होती हैं.
वे अपनी पहचान और विशिष्ट संस्थानों को बनाए रखने और विकसित करने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं, और समाज का एक ग़ैर-प्रभुत्व वाला हिस्सा हैं. साथ ही, ग़ैर-आदिवासी समकक्षों की तुलना में निर्धनता में जीवन व्यतीत करने की उनकी सम्भावना लगभग तीन गुना अधिक होती है.
कुछ अन्य तथ्य:
- विश्वभर में 47 करोड़ 60 लाख से अधिक आदिवासी लोग हैं, जो वैश्विक जनसंख्या का 6.2 प्रतिशत हिस्सा बनाते हैं.
- वे दुनिया भर के 90 देशों में रहते हैं.
- 5,000 से अधिक विशिष्ट समूह हैं.
- आदिवासी दुनिया की अनुमानित 7 हज़ार भाषाओं में से अधिकतर भाषाओं को बोलते हैं.