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पाकिस्तान: अल्पसंख्यक लड़कियों के जबरन विवाह और धर्मान्तरण पर गहरा क्षोभ

पाकिस्तान में ईंट के भट्टे पर काम कर रही एक लड़की. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
Shoaib Tariq
पाकिस्तान में ईंट के भट्टे पर काम कर रही एक लड़की. (प्रतीकात्मक तस्वीर)

पाकिस्तान: अल्पसंख्यक लड़कियों के जबरन विवाह और धर्मान्तरण पर गहरा क्षोभ

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदाय की युवतियों व लड़कियों के जबरन धर्मान्तरण, अपहरण, तस्करी, उनका बचपन में ही ज़बरदस्ती विवाह कराने और यौन हिंसा का शिकार बनाए जाने की घटनाओं पर क्षोभ व्यक्त किया है.

विशेष रैपोर्टेयर के समूह ने गुरूवार को अपना एक वक्तव्य जारी किया है, जिसमें उन्होंने अल्पसंख्यक समुदाय की युवतियों के लिए मौजूदा हालात और सुरक्षा के अभाव पर चिन्ता जताई.

उन्होंने कहा कि ईसाई और हिन्दू धर्म की लड़कियों पर अपना धर्म बदलने के लिए मजबूर किए जाने, उन्हें तस्करी व यौन हिंसा का शिकार बनाए जाने, उनका बाल विवाह होने और घरेलू ग़ुलामी का शिकार बनाए जाने का जोखिम अधिक है.

“धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों की युवतियों और लड़कियों को ऐसे जघन्य मानवाधिकार हनन का शिकार बनाए जाने और ऐसे अपराधों के प्रति दंडमुक्ति की भावना को अब और ना तो सहन किया जा सकता है और ना ही उन्हें जायज़ ठहराया जा सकता है.”

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स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने चिन्ता जताई कि धार्मिक अल्पसंख्यकों का जबरन विवाह और धर्मान्तरण किए जाने की घटनाओं को अदालतों द्वारा वैध क़रार दिया जाता है.

इसके लिए, अक्सर धार्मिक क़ानूनों का सहारा लिया जाता है ताकि भुक्तभोगियों को उनके अभिभावकों के पास वापिस भेजने की अनुमति देने के बजाय, उन्हें अगवा करने वाले व्यक्तियों के साथ रहने को ही जायज़ ठहराया जा सके. 

“दोषी अक्सर जवाबदेही से बच जाते हैं और पुलिस द्वारा ऐसे अपराधों को ‘प्रेम विवाह’ की आड़ लेकर ख़ारिज कर दिया जाता है.”

चिन्ताजनक घटनाएँ

यूएन विशेषज्ञों ने जबरन धर्मान्तरण के मामलों का भी उल्लेख किया, जिनमें मिशाल रशीद नाम की एक युवती भी है.

वर्ष 2022 में, मिशाल जब अपने स्कूल जाने के लिए तैयार हो रही थी तो उन्हें बन्दूक की नोंक पर घर से अगवा कर लिया गया. इसके बाद उन पर यौन हमला हुआ, इस्लाम धर्म क़बूलने पर मजबूर किया गया और अगवा करने वाले व्यक्ति के साथ ही जबरन विवाह करा दिया गया.  

13 मार्च 2024 को एक 13 वर्षीय ईसाई लड़की को भी कथित रूप से अगवा किया गया, जबरन इस्लाम धर्म अपनाने के लिए मजबूर किया गया और फिर अपहरणकर्ता के साथ शादी करा दी गई. विवाह प्रमाणपत्र में लड़की की आयु 18 वर्ष लिखाई गई.

स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने ज़ोर देकर कहा कि बाल, जल्द और जबरन विवाह को किसी भी प्रकार से धार्मिक या सांस्कृतिक आधार पर जायज़ नहीं ठहराया जा सकता है.

संरक्षण उपायों पर बल

उन्होंने ध्यान दिलाया कि अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के तहत, किसी पीड़ित की आयु 18 वर्ष से कम होने की स्थिति में उसकी सहमति के कोई मायने नहीं है.

“एक महिला का अपने पति को चुनने का अधिकार और स्वतंत्रता से शादी का निर्णय लेने का अधिकार, उसके जीवन, गरिमा, एक मनुष्य के तौर पर समानता के केन्द्र में है. इसकी क़ानून के ज़रिये रक्षा की जानी होगी और उसे बरक़रार रखना होगा.” 

स्वतंत्र विशेषज्ञों ने ऐसे प्रावधानों की आवश्यकता को रेखांकित किया है, जिनसे दबाव में कराई गई शादियों को रद्द करना, लड़कियों व महिलाओं से अनुमति लेना और पीड़ितों के लिए न्याय, संरक्षण व ज़रूरी सहायता उपलब्ध कराना सम्भव हो. 

विशेष रैपोर्टेयर ने ध्यान दिलाया कि बाल अधिकारों पर सन्धि के अनुच्छेद 14 में बच्चों के पास विचार, अन्तरात्मा और धर्म की स्वतंत्रता पर बल दिया गया है. इसके लिए यह ज़रूरी है कि ऐसे सभी मामलों में अपना धर्म या आस्था बदलने की प्रक्रिया स्वतंत्र रूप से, बिना किसी दबाव या प्रलोभन के हुई हो. 

दायित्वों का सम्मान ज़रूरी

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने पाकिस्तान से ‘नागरिक व राजनैतिक अधिकारों पर अन्तरराष्ट्रीय प्रतिज्ञा-पत्र’ के अनुच्छेद 18 के सम्बन्ध में अपने तयशुदा दायित्वों का निर्वहन करने का आग्रह किया है. इसके तहत जबरन धर्मान्तरण पर पाबन्दी लगाई जानी होगी.

साथ ही, पाकिस्तान प्रशासन को ऐसे क़ानूनों सख़्ती से लागू किए जाने होंगे, जिनसे जीवनसाथी अपनी मर्ज़ी और स्वतंत्रता से एक दूसरे के साथ विवाह करने में समर्थ हो सकें. इसके अलावा, युवतियों समेत सभी के लिए विवाह की न्यूनतम आयु को बढ़ाकर 18 वर्ष किया जाना होगा.

“हर महिला व लड़की के साथ बिना किसी भेदभाव के बर्ताव किया जाना होगा. इनमें ईसाई व हिन्दू समुदाय की लड़कियाँ या निसन्देह धर्मों व आस्थाओं की लड़कियाँ भी हैं.”

यूएन विशेषज्ञों ने पाकिस्तान सरकार से ऐसी घटनाओं के दोषियों को न्याय के कटघरे में लाने का आग्रह किया है. कम उम्र में ही बच्चों की जबरन शादी, अपहरण और अल्पसंख्यक लड़कियों की तस्करी की रोकथाम के लिए बच्चों को क़ानूनी संरक्षण देना ज़रूरी है और अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार दायित्वों का निर्वहन करना होगा.

मानवाधिकार विशेषज्ञ

विशेष रैपोर्टेयर और स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ, संयुक्त राष्ट्र की विशेष मानवाधिकार प्रक्रिया का हिस्सा होते हैं. 

उनकी नियुक्ति जिनीवा स्थिति यूएन मानवाधिकार परिषद, किसी ख़ास मानवाधिकार मुद्दे या किसी देश की स्थिति की जाँच करके रिपोर्ट सौंपने के लिये करती है. ये पद मानद होते हैं और मानवाधिकार विशेषज्ञों को उनके इस कामकाज के लिये, संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन नहीं मिलता है.

इस वक्तव्य पर दस्तख़त करने वाले मानवाधिकार विशेषज्ञों के नाम यहाँ देखे जा सकते हैं.