वैश्विक परिप्रेक्ष्य मानव कहानियां
पश्चिम जावा के इंद्रमायु में रोकाया, अपने घर के सामने खड़ी हैं.

मायूसी से पक्के इरादे तक: इंडोनेशिया के तस्करी पीड़ितों की न्याय की गुहार

© UNIC Jakarta
पश्चिम जावा के इंद्रमायु में रोकाया, अपने घर के सामने खड़ी हैं.

मायूसी से पक्के इरादे तक: इंडोनेशिया के तस्करी पीड़ितों की न्याय की गुहार

प्रवासी और शरणार्थी

इंडोनेशिया के लोगों को, अपने परिवार का भरण-पोषण करने हेतु बेहतर कमाई के लिए विदेश जाकर काम करना लुभावना लग सकता है. लेकिनकुछ लोगों के लिए यह सफ़र एक दुःस्वप्न बन सकता हैऔर वो बिना आराम के, घंटों तक काम करने, वेतन नहीं मिलने और दुर्व्यवहार का शिकार हो सकते हैं. संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियाँ, इंडोनेशिया की सरकार के साथ मिलकर, तस्करी के शिकार ऐसे श्रमिकों को घर वापस लाने में मदद कर रही हैं.

रोकाया को, बीमारी के कारण मलेशिया में सेविका का अपना कामकाज छोड़कर, पश्चिमी जावा में स्थित अपने घर इंद्रमायु वापिस लौटना पड़ा. लेकिन, शुरुआत में रोज़गार दिलाने के नाम पर उनसे 20 लाख रुपए ऐंठने वाले उनके एजेंट के दबाव में, उन्होंने इराक़ के इरबिल में काम करने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया.

वहाँ, रोकाया को एक परिवार के विशाल परिसर की देखभाल करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई – जिसमें उन्हें सप्ताह के सातों दिन, सुबह 6 बजे से आधी रात तक काम करना पड़ता था. 

थकावट से सिरदर्द व आँखों से जुड़ी समस्याएँ बढ़ती गईं. ये वही स्वास्थ्य समस्याएँ थीं, जिनके कारण उन्होंने मलेशिया छोड़ा था. रोकाया के मेज़बान परिवार ने उन्हें डॉक्टर के पास ले जाने से इनकार कर दिया और उनका मोबाइल फोन भी ज़ब्त कर लिया. 

वो बताती हैं, “मुझे किसी भी दिन की छुट्टी नहीं दी जाती थी. आराम के लिए भी बमुश्किल समय मिलता था. ऐसा महसूस होता था मानो मैं एक जेल में क़ैद हूँ."

शारीरिक एवं यौन शोषण

रोकाया से ही मिलती-जुलती कहानी है, उन 544 इंडोनेशियाई प्रवासी श्रमिकों की, जिन्हें संयुक्त राष्ट्र प्रवासन एजेंसी (IOM) ने 2019 और 2022 के बीच, इंडोनेशियाई प्रवासी श्रमिक संघ (SBMI) के सहयोग से सहायता प्रदान की थी.

विदेशों में काम करने के दौरान, इनमें से बहुत से लोगों को शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और यौन शोषण का सामना करना पड़ा. सऊदी अरब द्वारा दो इंडोनेशियाई सेविकाओं को फाँसी दिए जाने के बाद, जकार्ता ने 2015 में मध्य पूर्व और उत्तरी अफ़्रीका के 21 देशों में काम करने पर रोक लगा दी थी. लेकिन इसके बावजूद इस तरह के मामले सामने आ रहे हैं.

व्यक्तिगत तस्करी के मानवीय प्रभाव से निपटने के लिए, IOM इंडोनेशिया सरकार के साथ मिलकर श्रम प्रवासन पर नियम व क़ानून मज़बूत करने के प्रयास करता है; तस्करी के मामलों में बेहतर जवाबी कार्रवाई के लिए क़ानून प्रवर्तन को प्रशिक्षित करता है; और प्रवासी श्रमिकों को शोषण से बचाने के लिए SBMI जैसे भागीदारों के साथ काम करता है - और यदि आवश्यक हो, तो उन्हें घर वापस भेजता है.

पश्चिम जावा के इंद्रमायु में अपने घर के सामने खड़ीं, रोकाया.
© UNIC Jakarta

इंडोनेशिया के लिए IOM के मिशन प्रमुख, जैफ़री लेबोविट्ज़ कहते हैं, "रोकाया जैसे मामले, प्रवासी श्रमिकों को मानव तस्करी का शिकार बनने से रोकने के लिए, पीड़ित-केंद्रित दृष्टिकोण एवं सुरक्षा प्रणाली को मज़बूत करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हैं."

रोकाया का गुप्त रूप से रिकॉर्ड किया गया वीडियो वायरल होने और SBMI तक पहुँचने के बाद, सरकार ने उन्हें आज़ाद करवाने के प्रयास किए. हालाँकि, उनका कहना है कि इसके बावजूद उनकी एजेंसी ने, ज़बरदस्ती उनके वेतन से वापसी के हवाई टिकट की क़ीमत वसूली और अपनी ज़िम्मेदारी से बचने के लिए कुछ दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर करने के लिए भी मजबूर किया. 

अब उन्हें इस सबकी बेहतर जानकारी है: "हमें दी जाने वाले जानकारी को लेकर हमें सावधान रहना चाहिए, क्योंकि महत्वपूर्ण जानकारी पर ध्यान नहीं देने पर, हमें इसका ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ता है."

रोकाया अपने घर वापस आकर राहत महसूस कर रही हैं, लेकिन उनके पास उनसे वसूले गए धन को वापस पाने का कोई रास्ता नहीं हैं.

इंडोनेशियाई मछुआरे.
© UNIC Jakarta

असफलता का ठप्पा लगने का डर

SBMI के अध्यक्ष, हरियोनो सुरवानो का कहना है कि यह एक बहुत आम स्थिति है, क्योंकि पीड़ित जन, अक्सर विदेशों के अपने अनुभव साझा करने से डरते हैं: "उन्हें नाकाम इनसान के रूप में देखे जाने का डर होता है कि वो विदेश गए तो थे अपनी वित्तीय स्थिति में सुधार करने, लेकिन धन की नई समस्या लेकर वापस लौट आए."

पीड़ितों की शर्मिन्दगी की भावना तो तस्करी के मामले में अभियोजन की धीमी प्रगति को प्रभावित करती ही है, क़ानूनी अस्पष्टता और अधिकारियों को मुक़दमा चलाने में जिन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, उससे भी बाधाएँ पैदा होती हैं. फिर कभी-कभी पुलिस भी पीड़ितों को उनकी स्थिति के लिए दोषी ठहराने लगती है. 

एसबीएमआई के आँकड़ों से पता चलता है कि 2015 और 2023 के बीच, मध्य पूर्व में तस्करी के शिकार लोगों में लगभग 3 हज़ार 335 इंडोनेशियाई थे. हालाँकि इनमें से अधिकाँश लोग इंडोनेशिया लौट आए हैं, लेकिन केवल दो प्रतिशत लोगों को ही न्याय मिल पाया है.

बैंक इंडोनेशिया के अनुसार, 2021 में लगभग 33 लाख इंडोनेशियाई लोग, विदेशों में कार्यरत थे. प्रवासी श्रमिकों की सुरक्षा के लिए इंडोनेशियाई एजेंसी (BP2MI) के अनुमान के अनुसार, पचास लाख से अधिक प्रवासी श्रमिक बिना दस्तावेज़ों के विदेशों में रह रहे हैं. 

विश्व बैंक के मुताबिक, तीन-चौथाई से अधिक इंडोनेशियाई प्रवासी मज़दूर, कम कौशल वाले कामकाज करते हैं, जिनसे उन्हें अपने देश के मुक़ाबले छह गुना अधिक वेतन मिल जाता है. वापस लौटने वाले लगभग 70 प्रतिशत लोगों ने कहा कि विदेश में रोज़गार एक सकारात्मक अनुभव था, जिससे उनके कल्याण में सुधार हुआ. 

तस्करी से बचे मछुआरे साएनुद्दीन कहते हैं, "मैं अपने प्रयास जारी रखूँगा, भले ही इसमें कितना भी समय क्यों न लग जाए."
© UNIC Jakarta
तस्करी से बचे मछुआरे साएनुद्दीन कहते हैं, "मैं अपने प्रयास जारी रखूँगा, भले ही इसमें कितना भी समय क्यों न लग जाए."

बिना वेतन 20-20 घंटे काम 

लेकिन तस्करी का शिकार हुए लोगों का अनुभव शायद ही कभी सकारात्मक होता है. 

एसबीएमआई के जकार्ता मुख्यालय में, जावा के थाउजेंड द्वीप समूह के मछुआरे, साएनुद्दीन ने बताया कि किस तरह 2011 में उन्होंने अपने परिवार को बेहतर जीवन देने की उम्मीद में एक मछली पकड़ने वाले विदेशी जहाज़ पर काम करने के लिए एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए थे. 

समुद्र में पहुँचने के बाद, उन्हें जाल खींचने और पकड़ी हुई मछलियाँ छाँटने के लिए 20-घंटे काम करना पड़ता था. 24 महीनों के अथक परिश्रम के बाद, उन्हें केवल शुरूआती तीन महीनों का ही भुगतान किया गया.

दिसम्बर 2013 में, दक्षिण अफ़्रीकी अधिकारियों ने केप टाउन के पास जहाज़ को अवैध रूप से मछली पकड़ते हुए पकड़ा, और साएनुद्दीन को तीन महीने तक हिरासत में रखा.

बाद में,  IOM एवं विदेश मंत्रालय की मदद से, उन्हें व 73 अन्य इंडोनेशियाई नाविकों को वापस लाया गया.

उसके बाद पिछले नौ वर्षों से,  साएनुद्दीन अपना 21 महीने का बक़ाया वेतन पाने के लिए क़ानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं, जिसमें उनके घर के अलावा बाक़ी सब कुछ बिक गया है. वो कहते हैं, ''इस संघर्ष में मैं अपने परिवार से अलग हो गया.''

IOM द्वारा किए गए 200 से अधिक सम्भावित इंडोनेशियाई मछुआरों के सर्वेक्षण में, सरकार को भर्ती प्रक्रियाओं, सम्बन्धित शुल्क, प्रस्थान पूर्व प्रशिक्षण एवं प्रवासन प्रबंधन बढ़ाने के लिए कार्रवाई हेतु जानकारी मुहैया कराई गई है. 

IOM ने 2022 में 89 न्यायाधीशों, क़ानूनी सलाहकारों व सहायकों को, लोगों की तस्करी के मामलों में निर्णय लेने के लिए प्रशिक्षित किया, जिसमें बाल पीड़ितों के आवेदन व लिंग-संवेदनशील दृष्टिकोण के साथ-साथ, पूर्वी नुसा तेंगारा व उत्तरी कालीमंतन प्रान्तों में तस्करी विरोधी कार्य बलों के 162 सदस्यों को शामिल किया गया.

हालाँकि इससे साएनुद्दीन के मसले के निपटारे में जल्दी कोई सुधार नहीं होने वाला, लेकिन फिर भी इस मछुआरे का संकल्प अटूट नज़र आता है. 

वो कहते हैं, "मैं अपने प्रयास जारी रखूँगा, चाहे इसमें कितना ही समय क्यों न लग जाए."