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चाड के कूफ़्रोन में सूडानी शरणार्थियों के लिए भोजन वितरित किया जा रहा है.

आपबीती: हमें दारफ़ूर में ‘सड़कों पर पड़े शवों पर पाँव रखने से बचकर निकलना पड़ा’

© WFP/Jacques David
चाड के कूफ़्रोन में सूडानी शरणार्थियों के लिए भोजन वितरित किया जा रहा है.

आपबीती: हमें दारफ़ूर में ‘सड़कों पर पड़े शवों पर पाँव रखने से बचकर निकलना पड़ा’

शान्ति और सुरक्षा

सूडान के दारफ़ूर क्षेत्र में सेवारत रहीं संयुक्त राष्ट्र की एक पूर्व कर्मचारी ने, यूएन न्यूज़ के साथ एक बातचीत में, भीषण लड़ाई के दौरान अपनी जान बचाने के लिए पड़ोसी देश चाड में शरण लेने के अनुभव को बयान किया है. उन्होंने बताया कि सड़कों पर हर तरफ़ शव बिखरे हुए थे और छतों पर बैठे बन्दूक - निशानची, लोगों को निशाना बना रहे थे.

अप्रैल 2023 में सूडानी सशस्त्र बलों और RSF नामक अर्द्धसैनिक बलों के बीच लड़ाई भड़क उठी थी, जिसके बाद से सूडान, विशेष रूप से दारफ़ूर क्षेत्र मानवीय और सुरक्षा संकट से जूझ रहा है.

दारफ़ूर में जातीय टकराव ने इस क्षेत्र को पिछले दो दशकों से अधिक समय से जकड़ा हुआ है.  

फ़ातिमा*, पश्चिमी दारफ़ूर प्रान्त के अल जिनीना शहर की निवासी हैं और पहले अफ़्रीकी संघ व यूएन के साझा मिशन, UNAMID, का हिस्सा रही हैं. 

इस प्रान्त में हज़ारों लोगों के मारे जाने की ख़बर है और जब परस्पर विरोधी गुट के लड़ाके शहर पर नियंत्रण की लड़ाई लड़ रहे थे, तभी उन्होंने अपनी जान बचाने के लिए अपने परिवार के साथ देश की सीमा पार की.  

“हम 57 दिनों से अधिक समय तक अपने घरों में फँसे हुए थे, जबकि लड़ाके व्यवस्थागत ढंग से जातीय आधार पर लोगों को निशाना बना रहे थे और उनकी हत्या कर रहे थे. 

उन्होंने महिलाओं, बच्चों और वृद्धजन को भी नहीं बख़्शा.

छतों पर निशानेबाज़ छिपे हुए थे और किसी भी व्यक्ति के नज़र आने पर उसे निशाना बनाया जाता था. जिस तरह से लोगों को जान से मारा गया, उसे बयान नहीं किया जा सकता है.

27 अप्रैल 2023 को पश्चिम दारफ़ूर के अल जिनीना शहर में एक स्कूल को जलाकर ध्वस्त कर दिया गया.
© Mohamed Khalil
27 अप्रैल 2023 को पश्चिम दारफ़ूर के अल जिनीना शहर में एक स्कूल को जलाकर ध्वस्त कर दिया गया.

दारफ़ूर में दो दशकों के हिंसक टकराव की वजह से हज़ारों लोग विस्थापित हुए हैं और उनमें से अनेक की अब शिविरों और अल जिनीना शहर में आवाजाही रहती है.

साल की शुरुआत में या फिर रमदान के महीने के दौरान ऐसा होता है, जब हत्याओं, विस्थापन व विध्वंस का सिलसिला शुरू हो जाता है.

इस अवधि में जीवन में व्यवधान आता है और बाज़ार, स्कूल व सरकारी संस्थान बन्द रहते हैं. फिर जब हमले रुक जाते हैं, तो लोग अपने सामान्य जीवन की ओर लौटने का प्रयास करते हैं.

जब पिछले वर्ष अप्रैल महीने में युद्ध भड़का था, तो हमने सोचा कि इस बार भी ऐसा ही होगा, मगर दुर्भाग्यवश, ऐसा हुआ नहीं.

मैंने हथियारबन्द पुरुषों को देखा, जिनमें से कुछ विदेशी थे और उन्होंने चारों ओर से हमारे शहर को घेर लिया था.

मैं एक पत्रकार के तौर पर तस्वीरें लेने कुछ ऊँचाई वाले स्थान पर गईं और पड़ोसी भी अपने घरों की खिड़कियों से देख रहे थे.

मिलिशिया सदस्य गोलियाँ चला रहे थे और क़यामत के दिन के बारे में चिल्लाते हुए कह रहे थे कि पृथ्वी पर मौत व विध्वंस होगा.

हम अपने घरों में फँसे हुए थे और हमें, अपने पलंग के नीचे छिपना पड़ा. गोला-बारुद हर जगह बिखरा हुआ था और मैं सड़कों पर लोगों को चीखते हुए और गोलियों की आवाज़ें सुन सकती थी.

यह युद्ध अल जिनीना के दक्षिणी हिस्से में 57 दिन तक चला और पूरे के पूरे इलाक़ों का सफ़ाया हो गया. मिलिशिया के लड़ाकों ने व्यवस्थागत ढंग से काम किया. 

वे लोगों को मारने के लिए घर-घर गए. छतों पर निशानची भी बैठे हुए थे और किसी के भी दिखने पर उसे निशाना बना रहे थे. 

ये मौत का जैसा दृश्य था, मैं उसका वर्णन नहीं कर सकती हूँ. 

हत्याएँ व लूटपाट करने वाली टीमें 

मिलिशिया ने दो टीमों में काम किया. एक टीम का ध्यान लोगों को जान से मारने पर केन्द्रित था, जबकि दूसरी उनकी सम्पत्ति को लूट रही थी. 

कुछ बन्दूकधारी अरबी भाषा में बात नहीं करते थे, और उन्होंने हमें धमकी दी कि यदि हमने सोना व धन नहीं दिया तो हमें जान से मार दिया जाएगा.

नक़ाब पहने हुए व्यक्तियों ने मेरे घर में प्रवेश किया, और ऐसा प्रतीत हुआ कि उनमें से एक व्यक्ति मुझे जानता था. उसने कहा कि तुम एक पत्रकार हो, तुम अतीत में ख़बरें लिखा करती थीं, मगर अब नहीं लिख सकती हो.

पश्चिमी दारफ़ूर में लड़ाई के बाद बिखरे हुए गोलियों के खोखे.
© UNOCHA/Mohamed Khalil
पश्चिमी दारफ़ूर में लड़ाई के बाद बिखरे हुए गोलियों के खोखे.

उन्होंने मेरा फ़ोन व कम्प्यूटर ले लिया और मेरी आँखों के सामने तोड़ दिया. उन्होंने मुझे बताया कि मेरी हर गतिविधि पर नज़र है और यदि मैंने कुछ भी लिखा, तो वे मुझे मार डालेंगे.

मेरे पति ने मुझे घर छोड़ देने और उत्तरी इलाक़ों में जाने के लिए कहा. मैंने अपने बच्चे को उठाया और अपनी एक पड़ोसन के साथ वहाँ से निकल गई, जिन्होंने दो दिन पहले ही एक बच्चे को जन्म दिया था. 

उन्होंने अपने बच्चे को एक कपड़े में लपेटा हुआ था और शेष बच्चों को भी लेकर आईं थी. 

हमने सड़कों पर बिखरे हुए शवों को देखा. एक पूरा परिवार, महिलाएँ व बच्चे अपने घरों के सामने पड़े थे. सड़कों पर इतने शव थे कि चल पाना बहुत कठिन था और हमें इस सावधानी के साथ वहाँ चलना पड़ रहा था कि कहीं हमारे पाँव उन पर नहीं पड़ जाएँ.

शव जला दिए गए

हम एक शान्त से स्थान पर आ गए और सोचा कि यह सुरक्षित होगा. हमने सोचा कि यह ‘बारबेक्यू’ की गन्ध थी लेकिन बाद में पता चला कि यहाँ सैकड़ों शवों को जलाया जा रहा था. 

एक बन्दूकधारी सुलगते हुए शवों को देखते हुए सिगरेट पी रहा था.

हम डरे हुए थे और पड़ोसियों को बार-बार ‘शहादा’ का जाप करते हुए सुन सकते थे, जोकि मौत की तैयारी के लिए ईश्वर में आस्था की इस्लामी घोषणा है.

मैंने एक पुरुष को मदद की पुकार लगाते हुए सुना और फिर थोड़ी देर बाद गोली चलने की आवाज़ आई और फिर सब कुछ शान्त हो गया.

अल जिनीना में एक पेड़ है, जिसे मिलिशिया सदस्य ‘मृतकों का पेड़’ कहते हैं. ये वो जगह है जहाँ लोगों को जान से मारने के लिए गोलियों से भून दिया जाता था. 

इन शवों को फिर दफ़नाने से मना कर दिया गया. किसी के पास लापता लोगों के बारे में पूछने की अनुमति या हिम्मत नहीं थी.

जब हालात शान्त हो गए और लोगों ने अपने लापता सम्बन्धियों को खोजना शुरू किया तो उन्हें उस पेड़ के पास जाने के लिए कहा जाता था.

महिलाओं को वहाँ आने की अनुमति नहीं थी, वहाँ केवल पुरुष ही जा सकते थे. 

सूडान में रहने वाली एक महिला ने अपने बच्चों के साथ चाड में शरण ली है.
© UNICEF/Annadjib Ramadane Maha
सूडान में रहने वाली एक महिला ने अपने बच्चों के साथ चाड में शरण ली है.

चाड में मिली शरण 

मैंने अपना घर जल्दबाज़ी में छोड़ा था और अपना सारा धन, सोना और अन्य मूल्यवान सम्पत्ति वहीं छोड़ आई थी. इसलिए मैंने कुछ धन उधार लिया और एक कार किराए पर लेकर अपने बेटे व अन्य परिजन के साथ आद्रे पहुँची, जोकि चाड का एक नगर है. 

पहले दिन हमें वापिस लौटना पड़ा चूँकि यह बेहद ख़तरनाक था और अगले दिन जब हमने फिर यात्रा करने की कोशिश तो हथियारबन्द लोगों ने हमारी गाड़ी रोककर हमारा सारा सामान लूट लिया.

हम किसी तरह आद्रे में शरणार्थी शिविर तक पहुँच गए, लेकिन कई लोग रास्ते में ही मारे गए. अनेक बच्चों ने अपने माता-पिता को खो दिया. 

चाड की सेना ने अनेक शरणार्थियों और कुछ घायलों को ऐल जिनीना से शिविरों तक पहुँचाने में मदद की और उन्हें भोजन व जल मुहैया कराया.

चाड में भी हालात पीड़ादाई थे, लेकिन जो कुछ हमने पहले अनुभव किया था, ये पीड़ा उससे कम थी. मेरी मनोसामाजिक स्थिति बेहद ख़राब थी.  

यदि मुझसे कोई बात करते तो मैं अपना ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाती थी. मुझे दिन और समय का भी भान नहीं रहा, मगर अब मेरी स्थिति बेहतर हो रही है. मैं इसके लिए ईश्वर का आभार प्रकट करती हूँ. 

मेरे पति और अन्य लोग जो, अल जिनीना में ही पीछे छूट गए थे, वे भी दो सप्ताह पहले यहाँ शिविर में पहुँच गए. 

मेरे पास जो कुछ भी था, मैंने वो सब खो दिया है. मिलिशिया ने हमारे घर में लूटपाट की और हमारा सारा सामान ले लिया, यहाँ तक कि दरवाज़े भी. 

हमने सुना है कि उसे ध्वस्त किया जा रहा है और ईंटे भी ले जाई जा रही हैं. मुझे डर है कि जब हमारी वापसी होगी तो हमें वहाँ बंजर ज़मीन के अलावा कुछ नहीं मिलेगा.”

*उनकी पहचान छिपाने के लिए यह उनका वास्तविक नाम नहीं है