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प्रकृति की पुनर्बहाली हमारी पीढ़ी की नैतिक परीक्षा – यूएन महासभा प्रमुख

माली में, लगातार बाढ़ और सूखे के क़हर से किसानों का जीवनयापन मुश्किल हो गया है.
WFP/Simon Pierre Diouf
माली में, लगातार बाढ़ और सूखे के क़हर से किसानों का जीवनयापन मुश्किल हो गया है.

प्रकृति की पुनर्बहाली हमारी पीढ़ी की नैतिक परीक्षा – यूएन महासभा प्रमुख

जलवायु और पर्यावरण

संयुक्त राष्ट्र महासभा अध्यक्ष वोल्कान बोज़किर ने कहा है कि भूमि, जलवायु, जैवविविधता व प्रदूषण के संकट आपस में गहराई से जुड़े हुए हैं और इन्हें हल करना मौजूदा पीढ़ी के लिये एक बड़ी परीक्षा है. इसके मद्देनज़र, उन्होंने भावी स्वास्थ्य व पर्यावरणीय ख़तरों से निपटने और भूमि को बहाल किये जाने के लिये वैश्विक प्रयासों को मज़बूत बनाये जाने का आहवान करते हुए महत्वपूर्ण उपायों को साझा किया है.

महासभा प्रमुख वोल्कान बोज़किर ने सोमवार को मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण और सूखा पर एक उच्चस्तरीय सम्वाद को सम्बोधित करते हुए कहा कि कोविड-19 महामारी ने दर्शाया है कि प्राकृतिक दुनिया के बीच आपसी रिश्तों की उपेक्षा किये जाने की कितनी बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ सकती है.

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“हमारी पृथ्वी एक ऐसा पर्यावरणीय संकट का सामना कर रही है, जिससे प्राकृतिक दुनिया का हर पहलू जुड़ा है: भूमि, जलवायु, और जैवविविधता, और समुद्रों व भूमि पर प्रदूषण.”

“हमारा अस्तित्व और इस विश्व में फलने-फूलने की क्षमता पूरी तरह इस बात पर निर्भर है कि हम, हमारी भूमि के स्वास्थ्य सहित किस तरह प्राकृतिक दुनिया के साथ अपने रिश्ते का पुनर्निर्माण व परिभाषित करते हैं.”

एक दशक में यह पहली बार जब महासभा में इस मुद्दे पर बैठक आयोजित की गई है.

बताया गया है कि कृषि-योग्य भूमि का आधा हिस्सा क्षरण का शिकार है, जिससे तीन अरब से अधिक लोगों की आजीविका व सुरक्षा के लिये ख़तरा पैदा हो रहा है.

यूएन महासभा अध्यक्ष ने ज़ोर देकर कहा कि भूमि, जलवायु, जैवविविधता व प्रदूषण के संकट आपस में गहराई से जुड़े हुए हैं और इनके समाधान की तलाश करना मौजूदा पीढ़ी के लिये परीक्षा है. 

स्वस्थ भूमि का ख़त्म होना प्रजातियों के विलुप्त होने और जलवायु परिवर्तन के और गहन रूप धारण करने के लिये भी ज़िम्मेदार है.

मरुस्थलीकरण की गहराती समस्या

यूएन महासभा प्रमुख ने चेतावनी दी है कि अगर हालात में सुधार नहीं हुआ है, तो वर्ष 2050 तक, फ़सल उत्पादन में 10 प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है जो कुछ इलाकों में 50 प्रतिशत तक पहुँच जाएगी.

इससे विश्व खाद्य क़ीमतों मे 30 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी होगी और भुखमरी व पोषण के मामले में दर्ज की गई प्रगति जोखिम में पड़ जाएगी.

इन प्रभावों के परिणामस्वरूप, लाखों किसानों के निर्धनता के गर्त में धँस जाने की आशंका है और 13 करोड़ से अधिक लोग, वर्ष 2045 तक विस्थापन का शिकार हो सकते हैं. इन हालात में अस्थिरता व तनाव के बढ़ने का जोखिम पैदा हो जाएगा.

उन्होंने याद दिलाया कि पिछले वर्ष सितम्बर मे, जैवविविधता पर संयुक्त राष्ट्र की पहली शिखर बैठक के दौरान, भूमि क्षरण, पारिस्थितिकी तंत्र विनाश और उभरती पशुजन्य बीमारियों के बीच सम्बन्ध स्पष्ट हो गया था.

महासभा प्रमुख ने कहा कि भूमि के क्षरण को टालने और क्षरित भूमि को बहाल करने के लिये संगठित रूप से प्रयास करने और अन्तरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा दिये जाने की आवश्यकता है.

उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि संयुक्त राष्ट्र के पास भूमि को बहाल करने के वैश्विक मुद्दे को समग्र रूप से हल करने की क्षमता है.

इस क्रम में यूएन महासभा के प्रमुख ने महत्वपूर्ण उपायों को भी साझा किया है:

- पहला, देशों को भूमि क्षरण तटस्थला लक्ष्यों को पारित व लागू करना होगा, जिनके ज़रिये, टिकाऊ भूमि व जल प्रबन्धन रणनीतियों की मदद से भूमि में फिर से प्राण फूँके जा सकते हैं.  

- दूसरा, मरूस्थलीकरण से लड़ाई के दशक के दौरान लिये गए सबक़ का इस्तेमाल, पारिस्थितिकी तंत्रों की पुनर्बहाली के लिये दशक की दिशा में बढ़ते हुए किया जाना होगा.

- तीसरा, कृषि में टिकाऊ तौर-तरीक़ों को अपनाने पर तात्कालिक रूप से ज़ोर देना होगा, चूँकि मरूस्थलीकरण, भूमि क्षरण व सूखे की एक बड़ी वजह टिकाऊपन तरीक़ों को ना अपनाया जाना भी है.

- चौथा, एसडीजी रोडमैप को ध्यान में रखते हुए, शान्ति, विकास और मानवीय राहत गतिविधियों में बेहतर तालमेल स्थापित किया जाना होगा.

- पाँचवा, व्यय सम्बन्धी प्राथमिकताओं को फिर से निर्देशित किया जाना होगा. फ़िलहाल, वन व कृषि क्षेत्र को कुल जलवायु वित्त पोषण का महज़ तीन फ़ीसदी ही प्राप्त है जबकि जलवायु संकट का 30 प्रतिशत से अधिक समाधान इन्हीं में है.

- अन्तिम, पट्टा अधिकारों को मज़बूत बनाया जाना होगा, और कृषि क्षेत्र के कर्मचारियों की वित्तीय व तकनीकी क्षमताओं को बढ़ाना होगा.