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यमन: नई रिपोर्ट में युद्धापराधों की आशंका, जवाबदेही तय किये जाने की माँग

यमन के राहत शिविर में एक विस्थापित महिला अपने बच्चे के साथ.
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यमन के राहत शिविर में एक विस्थापित महिला अपने बच्चे के साथ.

यमन: नई रिपोर्ट में युद्धापराधों की आशंका, जवाबदेही तय किये जाने की माँग

शान्ति और सुरक्षा

संयुक्त राष्ट्र द्वारा नियुक्त विशेषज्ञों ने कहा है कि यमन में जारी हिंसा के कारण देश बदहाल हालात में है और लोग पीड़ा में जीवन गुज़ार रहे हैं. साथ ही उन्होंने संदिग्ध युद्धापराधों के मामलों की अन्तरराष्ट्रीय जाँच कराने और दोषियों के ख़िलाफ़ प्रतिबन्ध लगाने की अपील की है.

यमन के लिये अन्तरराष्ट्रीय व क्षेत्रीय विशेषज्ञों के समूह की सदस्य मलीसा पार्के ने बुधवार को बताया, “यमन जिस तरह से बर्बाद हुआ है उससे मानवता के ज़मीर को ठेस पहुँचनी चाहिये.”

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“यमन छह साल से सशस्त्र हिंसा का सामना कर रहा है जिसमें कोई रुकावट नहीं आई है, और इसकी चपेट में आए लाखों-करोड़ों लोगों की पीड़ा का कोई अन्त नहीं है.”

ग़ौरतलब है कि मानवाधिकार परिषद ने यमन के लिये ये विशेषज्ञ नियुक्त किये थे और उसके बाद यह लगातार तीसरा वर्ष है जब अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार और मानवीय क़ानूनों के गम्भीर उल्लंघनों के मामलों का पता चला है. 

विशेषज्ञों ने आशंका जताई है कि इनमें से कुछ मामलों को युद्धापराध की श्रेणी में रखा जा सकता है. 

यूएन द्वारा नियुक्त विशेषज्ञों ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट पर एक बयान जारी करते हुए बताया कि हिंसा में शामिल सभी पक्ष अन्तरराष्ट्रीय क़ानूनों, लोगों की ज़िन्दगियों, उनकी गरिमा और अधिकारों के प्रति बेपरवाह हैं और इसकी पीड़ा आम लोग झेल रहे हैं.   

वर्ष 2015 में यमन में सऊदी अरब के नेतृत्व में अन्तरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त सरकार को समर्थन देने वाले गठबन्धन और हूती सशस्त्र लड़ाकों के गुट अन्सार अल्लाह के बीच लड़ाई तेज़ हो गई थी. 

हूती लड़ाकों का राजधानी सना पर नियन्त्रण है. 

विशेषज्ञों के मुताबिक इस हिंसा में अब तक एक लाख से ज़्यादा लोगों की जान जा चुकी है, महत्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुए हैं और करोड़ों लोग मानवजनित आपदा का शिकार हुए हैं. 

उन्होंने कहा कि मौजूदा हालात के लिये हिंसा में शामिल पक्ष ज़िम्मेदार हैं – यमन सरकार, दक्षिणी अन्तरिम परिषद, और सऊदी अरब व संयुक्त अरब अमीरात सहित गठबन्धन के सदस्य.

जिनीवा से मलीसा पार्के ने पत्रकारों को बताया, “यमन में बहुत बड़ी संख्या में लोगों के लिये कोई सुरक्षित स्थान नहीं है जहाँ वे युद्ध की विभीषिका से बच सकें.” 

रिपोर्ट में मानवाधिकार उल्लंघन के जिन मामलों की पुष्टि की गई है उनमें मनमाने ढँग से जीवन से वंचित करने, जबरन गुमशुदगी, मनमाने ढँग से हिरासत में लिये जाने, लिंग आधारित हिंसा, बाल सैनिकों की भर्ती, निष्पक्ष मुक़दमे की कार्रवाई का अभाव, यौन हिंसा, यातना व अन्य प्रकार के हनन के मामले हैं.  

विशेषज्ञों के समूह ने कहा है कि गठबन्धन ने जून 2019 से जून 2020 तक चार हवाई हमले किये. इस कार्रवाई के दौरान आम लोगों व सैन्य निशानों में फ़र्क़ करने के सिद्धान्त और स्थानीय लोगों व नागरिक प्रतिष्ठानों की सुरक्षा का ख़याल नहीं किया गया. 

गठबन्धन सेना और हूती लड़ाकों द्वारा अन्धाधुन्ध हमलों में आम लोगों और नागरिक प्रतिष्ठानों को नुक़सान पहुँचा है.

रिपोर्ट के मुताबिक ज़रूरत से ज़्यादा बल प्रयोग किये जा,ने और अन्धाधुन्ध हमलों को अन्तरराष्ट्रीय क़ानून में युद्धापराध की श्रेणी में रखा जा सकता है. 

रिपोर्ट में बारूदी सुरंग के प्रभावों की भी पड़ताल की गई है, जिन्हें हूती लड़ाकों ने ग़ैरक़ानूनी ढँग से इस्तेमाल किया था.   

विशेषज्ञों ने यमन में हिंसा के दौरान सबसे गम्भीर मामलों के दोषियों की विस्तृत व आपराधिक जाँच, सुरक्षा परिषद और सदस्य देशों के सहयोग से कराने की अपील की है.

इससे पहले संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2016 में सीरिया में हिंसा के दौरान प्रताड़ना के आरोपों की जाँच-पड़ताल के लिये, ऐसी ही एक व्यवस्था की स्थापना की थी जिसे अन्तरराष्ट्रीय, निष्पक्ष और स्वतन्त्र ढाँचा (International, Impartial and Independent Mechanism) का नाम दिया गया. 

इस व्यवस्था के तहत आपराधिक मुक़दमों के लिये राष्ट्रीय व अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर समर्थन मुहैया कराना है.