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'भारत में आमजन को तालाबंदी का मतलब समझाए जाने की ज़रूरत थी'

कोरोनावायरस पर क़ाबू पाने के प्रयासों के तहत भारत में 25 मार्च से 21 दिनों के लिए तालाबंदी की घोषणा की गई है.
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कोरोनावायरस पर क़ाबू पाने के प्रयासों के तहत भारत में 25 मार्च से 21 दिनों के लिए तालाबंदी की घोषणा की गई है.

'भारत में आमजन को तालाबंदी का मतलब समझाए जाने की ज़रूरत थी'

स्वास्थ्य

भारत में संयुक्त राष्ट्र की रेज़िडेंट कोऑर्डिनेटर रेनाटा डिज़ालिएन ने कहा है कि तालाबंदी के प्रभावों के बारे में आमजन को आसान भाषा में समझाए जाने की ज़रूरत थी और उन प्रभावों से निपटने के लिए समुचित नोटिस दिया जाना चाहिए था. यूएन न्यूज़ के साथ एक विशेष बातचीत में उन्होंने बताया कि देश में कोविड-19 से सामाजिक व आर्थिक जीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ है जिससे पूरी तरह निपटने में भारत सरकार द्वारा घोषित 24 अरब डॉलर का पैकेज भी कम साबित हो सकता है.

ग़ौरतलब है कि भारत में कोविड-19 का मुक़ाबला करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 25 मार्च से 21 दिनों के लिए लॉकडाउन यानी तालाबंदी लागू करने की घोषणा के बाद बड़ी संख्या में प्रवासी श्रमिक अपने गाँवों और मूल स्थानों तक पहुँचने के लिए सैकड़ों किलोमीटर की दूरी तय करने के लिए पैदल चल निकले थे.

कुछ शहरों में ऐसे प्रवासियों पर कीटनाशकों का छिड़काव करने की तस्वीरें सामने आई थीं. 

उन्होंने कहा कि तालाबंदी से होने की घोषणा के बाद घर लौट रहे आंतरिक प्रवासियों पर कीटनाशकों के छिड़काव को किसी भी तरह स्वीकार नहीं किया जा सकता.

रेज़िडेंट कोऑर्डिनेटर रेनाटा डिज़ालिएन ने कहा कि कोविड-19 जैसी विपत्ति किसी समाज का सबसे अच्छा और सबसे बुरा पहलू सामने लेकर आती है. 

“बड़ी चुनौती ये है कि लोगों में डर किस तरह कम किया जाए और लोगों को किस तरह लोगों को ये समझाया जाए कि अगर किसी व्यक्ति को बीमारी है, तो इसका ये मतलब नहीं है कि वो ज़हरीले हो गए हैं.” 

चीन के वूहान से शुरू हुआ कोरोनावायरस संक्रमण दुनिया भर में फैल गया है जिसमें इंसानी एकजुटता व हमदर्दी से काम लेने की पुकार लगाई गई है
Sang Huachao
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उन्होंने कलंक के भाव को मानव स्वभाव का सबसे बुरा पहलू बताते हुए कहा कि यह अक्सर भय, पूर्वाग्रहों और कभी-कभी जातिवाद व विभाजन की मानसिकता से आता है.

उन्होंने कहा कि यह बीमारी धनी-निर्धन या काले-गोरे के बीच अंतर नहीं करती इसलिए यह साथ आने, एकजुटता व करुणा दिखाने का समय है.

इन मूल्यों को केंद्र में रखकर तैयार की गई जवाबी कार्रवाई अधिक मज़बूत, टिकाऊ और न्यायसंगत होगी. 

प्रवासियों की मुश्किलें

रेज़िडेंट कोऑर्डिनेटर रेनाटा डिज़ालिएन ने बताया कि इस बीमारी के दो चेहरे हैं - इनमें एक स्वास्थ्य से जुड़ा है और दूसरा तालाबंदी के कारण होने वाले सामाजिक-आर्थिक दुष्प्रभाव से संबंधित है. 

उन्होंने कहा कि यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि हर किसी को तालाबंदी से पहले पर्याप्त अग्रिम नोटिस नहीं दिया गया जिससे असंगठित क्षेत्र में काम करने वाला कमज़ोर वर्ग सबसे ज़्यादा प्रभावित हुआ. 

“उन्हें व्यवस्था करने या यह समझने का समय ही नहीं मिला कि वो कैसे रुक सकते हैं, इसलिए उनमें से अनेक ने ख़ुद ही अपने मूल स्थानों को वापस जाने का निर्णय ले लिया. लेकिन तब तक तक लॉकडाउन के कारण परिवहन बंद हो गया था और वो एक बहुत कठिन परिस्थिति में पहुंच गए, अभी तक भारी बोझ का सामना कर रहे हैं.” 

उन्होंने लक्षित ढंग से प्रवासियों तक जानकारी पहुंचाने की अहमियत को रेखांकित करते हुए कहा कि प्रवासियों को बेहतर ढंग से तालाबंदी का मतलब समझाने की ज़रूरत थी. 

भारत सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों का ज़िक्र करते हुए उन्होंने बताया कि 24 अरब डॉलर का पैकेज पेश किया गया है जिसका एक हिस्सा आंतरिक प्रवासियों के लिए है.

हालांकि उन्होंने आशंका जताई है कि समाज में हाशिएकरण के शिकार लोगो की संख्या और कोविड-19 से आर्थिक गतिविधियों पर पड़े असर को देखते हुए 24 अरब डॉलर का पैकेज भी शायद पर्याप्त साबित ना हो. 

साथ ही कोविड-19 को राष्ट्रीय आपदा के रूप में भी अधिसूचित किया है जिसके तहत राज्य स्तर पर 1 अरब डॉलर धनराशि जारी की गई है, जो कि प्रवासियों और बेघर लोगों के लिए भी है. 

इसके अलावा नागरिक समाज से भी मदद मिल रही है. पूरे देश में लोग और ग़ैर-सरकारी संगठन मदद करने में लगे हैं. 

उन्होंने आगाह किया कि सभी प्रयास अभी झोंकने होंगे, इसलिए भी क्योंकि महामारी की तुलना युद्ध से की जा रही है. 

“भारत अविश्वसनीय हद तक उदारता वाला देश है और हम ऐसी संस्थाएँ और लोग देख रहे हैं जो असाधारण काम कर रहे हैं… उन्हें पहले से अधिक प्रयास करने होंगे और इस असाधारण महामारी से निपटने के लिए कमज़ोर, हाशिए पर रहने वाले लोगों की मदद करने की कोशिश करनी होगी.”

भारत में कोविड-19

रेज़िडेंट कोऑर्डिनेटर ने बताया कि भारत में संक्रमितों की संख्या में बढ़ोत्तरी होने में कुछ समय लगा है. फ़िलहाल संक्रमण के मामलों की संख्या ढाई हज़ार का ऑंकड़ा पार कर गई है. 

“पहला मामला जनवरी के अंत में सामने आया था और उसके बाद बहुत कम मामलों की जानकारी सामने आई. लेकिन हाल ही में हमने संख्या में वृद्धि होते देखी है और इसके मामले देश भर में सामने आए हैं.” 

हालांकि उन्होंने कहा कि इस बीमारी से ग्रस्त अनेक देशों की तुलना में भारत में संक्रमितों की संख्या अब भी बहुत कम है और उसकी एक वजह देश में आने वाले लोगों की स्क्रीनिंग, परीक्षण और मरीज़ों के संपर्क में आए लोगों का पता लगाना और उनकी निगरानी करना हो सकती है. 

उन्होंने कहा कि भारत अब एक ऐसे चरण में प्रवेश कर रहा है जहां हर चार से पॉंच दिनों में मरीज़ों की संख्या दोगुनी हो रही है और मृत्यु दर लगभग ढाई फ़ीसदी है. 

“मृत्यु दर कुल संक्रमित मामलों की संख्या और मरने वालों की संख्या के आधार पर आंकी जाती है. यह संभव है कि संक्रमण अब समुदाय में प्रवेश के चरण में पहुंच चुका हो और हमें सही मृत्यु दर मालूम ही न हो, इसलिए मुझे लगता है कि ये संख्या भी कम हो सकती है. फिर भी 2.3% की मृत्यु दर अधिक है.” 

उन्होंने कहा कि यही वजह है कि अब देश चिकित्सा तैयारियों को पुख़्ता करने के काम में जुटा है.

इसके तहत प्रशिक्षण की एक विशाल प्रक्रिया चल रही है, बुनियादी ढॉंचे का विस्तार किया जा रहा है, अस्पतालों में बिस्तर लगाए गए हैं, उपकरणों और अन्य सामग्री का इंतज़ाम किया जा रहा है. 

इस दिशा में संयुक्त राष्ट्र पिछले 8 सप्ताह से अधिक समय से केंद्रीय और राज्य स्तर पर सरकार के साथ मिलकर काम कर रहा है, जिसमें यूनीसेफ़ और कई अन्य यूएन एजेंसियाँ भी सक्रिय हैं.