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मानवाधिकारों की रक्षा के लिए सात-सूत्री कार्ययोजना का खाका पेश

यूएन मानवाधिकार परिषद का 43वां सत्र शुरु.
UN Photo/Jean-Marc Ferré
यूएन मानवाधिकार परिषद का 43वां सत्र शुरु.

मानवाधिकारों की रक्षा के लिए सात-सूत्री कार्ययोजना का खाका पेश

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने सोमवार को जिनीवा में मानवाधिकार परिषद के उदघाटन सत्र को संबोधित करते हुए सर्वजन के लिए मानवाधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए सात प्रमुख क्षेत्रों में कार्रवाई की पुकार लगाई है. उन्होंने मानवाधिकार परिषद को अंतरराष्ट्रीय संवाद व सहयोग का आधार बताते हुए विश्व भर में मानवाधिकारों पर हो रहे प्रहारों पर चिंता जताई है. 

यूएन प्रमुख ने ध्यान दिलाया कि महिलाओं, युवाओं, अल्पसंख्यकों, आदिवासी समुदायों और अन्य के नेतृत्व में हुए मानवाधिकार आंदोलनों का लाभ सभी समाजों को मिला है. 

उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के सभी कार्यों के मूल में मानवाधिकारों को बताते हुए कहा कि यूएन की स्थापना की 75वीं वर्षगांठ पर वह सात क्षेत्रों में इस कार्रवाई की पुकार लगा रहे हैं ताकि समन्वित प्रयासों के ज़रिए सभी के लिए मानवाधिकारों को सुनिश्चित किया जा सके. इसके अभाव में मानवाधिकारों की स्थिति और बिगड़ने का जोखिम पनपेगा. 

महासचिव गुटेरेश ने मानवाधिकारों की अहमियत का उल्लेख करते हुए बताया कि ये लोगों की गरिमा और मूल्य से जुड़े हैं.

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“समाजों को आज़ादी में बढ़ने देने के लिए मानवाधिकार हमारा परम ज़रिया है. लड़कियों व महिलाओं के लिए समानता सुनिश्चित करने का. टिकाऊ विकास को बढ़ाने का. हिंसक संघर्ष की रोकथाम, मानवीय पीड़ा को कम करने और एक न्यायपूर्ण व न्यायसंगत दुनिया के निर्माण के लिए.”

उन्होंने कहा कि मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा ध्यान दिलाती है कि मानवाधिकार मानवाता की उच्चतम अभिलाषा है. 

उन्होंने ध्यान दिलाया कि दुनिया भर में मानवाधिकारों के लिए संघर्ष और सफलताएं प्रेरणादायी हैं. “औपनिवेशक शासन और रंगभेद नीतियों को पराजित कर दिया गया. तानाशाही शासनों का अंत हुआ और लोकतंत्र का प्रसार हुआ है.”

मौजूदा दौर में मानवाधिकारों के लिए बड़ी चुनौती पैदा हो गई है और कोई भी देश इससे अछूता नहीं है. 

युद्धभूमि में बमबारी और भुखमरी से जूझते आम नागरिक, मानव तस्करों के चंगुल में फंसे पीड़ित, शोषण व दासता का शिकार लड़कियां व महिलाएं, सामाजिक कार्यकर्ताओं व पत्रकारों का दमन और अल्पसंख्यकों, प्रवासियों, शरणार्थियों व एलजीबीटी समुदाय के ख़िलाफ़ बढ़ती नफ़रत.

“लोग पीछे छूटते जा रहे हैं. डर बढ़ रहा है. दरारें चौड़ी हो रही हैं...क़ानून के राज का क्षरण हो रहा है.” उन्होंने चिंता जताई कि कई स्थानों पर लोग उन राजनैतिक प्रणालियों के ख़िलाफ़ लामबंद हो रहे हैं जो सबके लिए समृद्धि सुनिश्चित करने में विफल रहे हैं. 

सात-सूत्री कार्ययोजना में मुख्य रूप से इन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया गया है:

टिकाऊ विकास के मूल में अधिकार 

टिकाऊ विकास का 2030 एजेंडा असमानता के सभी रूपों और हर प्रकार के भेदभाव का अंत करने पर केंद्रित है. मानवाधिकारों पर आधारित दृष्टिकोण अपनाकर विकास को स्थाई और समावेशी बनाया जा सकता है. महासचिव गुटेरेश ने सभी देशों से टिकाऊ विकास लक्ष्यों को हासिल करने के प्रयासों में मानवाधिकार के सिद्धांतों और तंत्रों को सबसे आगे रखने की पुरज़ोर अपील की है. 

संकट के समय में अधिकार

हिंसक संघर्ष, आतंकवादी हमले और आपदाएं मानवाधिकारों के लिए कड़ी परीक्षा का समय होता है. अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार, शरणार्थी और मानवीय क़ानून स्याह लम्हों में भी मानवता के सामने खड़ी हुई चुनौतियों का मज़बूती से सामना कर सकते हैं. यूएन प्रमुख ने कार्रवाई की पुकार में संकट के रोकथाम की रणनीति में मानवाधिकारों के लिए सम्मान को अहम माना गया है.

इसके तहत “ह्यूमन राइट्स अप फ़्रंट” जैसी महत्वपूर्ण पहलों को बढ़ावा देते हुए विश्लेषण के अलावा विभिन्न देशों में यूएन टीमों में मानवाधिकार परामर्शदाताओं की उपस्थिति को भी बढ़ाया जाएगा. 

लैंगिक समानता व महिलाओं के लिए बराबर अधिकार

महिलाओं के मानवाधिकारों के बग़ैर सभी के लिए मानवाधिकारों को संभव नहीं बनाया जा सकता. यूएन महासचिव ने सभी देशों से लैंगिक समानता को बढ़ावा देने वाली नीतियों को समर्थन देने का आग्रह किया है.

साथ ही भेदभावपूर्ण क़ानूनों, महिलाओं व लड़कियों के प्रति हिंसा का अंत करने, यौन व प्रजनन स्वास्थ्य से जुड़े अधिकारों को सुनिश्चित करने और सभी क्षेत्रों में महिलाओं को बराबर प्रतिनिधित्व के प्रयासों का आहवान किया गया है.

सार्वजनिक भागीदारी

महासचिव गुटेरेश ने चिंता जताई कि दुनिया भर में नागरिक समाज और मानवाधिकारों के लिए स्थान सिकुड़ रहा है. दमनकारी क़ानूनों को लागू किया जा रहा है और अभिव्यक्ति की आज़ादी, धर्म, शांतिपूर्ण ढंग से एकत्र होने पर पाबंदियां लग रही हैं.

ऐसी चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों और संस्थाओं में नागरिक समाज की आवाज़ों को शामिल करने के प्रयास हो रहे हैं जिनमें युवाओं व महिलाओं पर विशेष रूप से ध्यान दिया जा रहा है. साथ ही नागरिक समाज को सशक्त बनाने के लिए एक व्यापक रणनीति पर भी काम हो रहा है.

भावी पीढ़ियों के अधिकार

21वीं सदी की चुनौतियों का उल्लेख करते हुए यूएन प्रमुख ने जलवायु संकट को दुनिया के अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा ख़तरा बताया. उन्होंने कहा कि इससे विश्व भर में मानवाधिकारों के लिए जोखिम बढ़ रहा है.

महासचिव गुटेरेश ने अपनी कार्ययोजना में लोगों के लिए सुरक्षित, स्वच्छ, स्वस्थ और टिकाऊ धरती को हासिल करना बेहद अहम बताया है. इस प्रक्रिया में युवाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए उन्हें सशक्त बनाया जाएगा ताकि उनकी ना सिर्फ़ आवाज़ों को सुना जाए बल्कि उनके भविष्य को प्रभावित करने वाले फ़ैसलों में उनकी भागीदारी भी हो.

सामूहिक कार्रवाई

बहुपक्षवाद को पहले से कहीं ज़्यादा समावेशी, आपस में जुड़ा हुआ बनाना होगा और इसके केंद्र में मानवाधिकारों को रखना होगा. राज्यसत्ता की संस्थाओं को मज़बूत बनाने और नागरिक समाज संगठनों की क्षमताओं को विकसित करने के प्रयास जारी रहेंगे.

इस संबंध में सदस्य देशों को मानवाधिकार संस्थाओं के निर्माण में समर्थन प्रदान किया जाएगा और मौजूदा चुनौतियों से निपटने के लिए यूएन मानवाधिकार के तहत उपलब्ध ज़रियों का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहन दिया जाएगा.

ऑनलाइन माध्यमों और टैक्नॉलजी के जोखिम

नई टैक्नॉलजी मानवाधिकारों के लिए कई चुनौतियों को पैदा कर रही है. निगरानी, दमन, ऑनलाइन उत्पीड़न और नफ़रत से अधिकारों का उल्लंघन व निजता का हनन हो रहा है. इस वजह से ऑनलाइन माध्यमों पर मानवाधिकारों का ख़याल रखा जाना और असरदार ढंग से डेटा की सुरक्षा महत्वपूर्ण है.

इस संबंध में निजी सैक्टर के साथ मिलकर काम करने को अहम बतया गया है और वैश्विक संस्थाओं जैसे इंटरनेट गवर्नेंस फ़ोरम की भी ख़ास भूमिका है. स्वचालित मशीनों को इतनी अधिक क्षमता देने से रोकना होगा कि वे मानवीय निर्णय और नियंत्रण के बाहर हो जाएं.