यूनीसेफ़: जंगलों में आग से धधकते ऑस्ट्रेलिया को मदद की पेशकश
ऑस्ट्रेलिया को आग की लपटों में झुलसा देने और अपने साथ तबाही लाने वाली भीषण आग से चिंतित संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) ने ऑस्ट्रेलियाई सरकार और साझेदार संगठनों को राहत प्रयासों में समर्थन देने की पेशकश की है. यूनीसेफ़ के मुताबिक़ ऑस्ट्रेलिया इस समय एक अभूतपूर्व आपदा का सामना कर रहा है.
यूनीसेफ़ ने आग पर क़ाबू पाने में जुटे दमकलकर्मियों और अन्य संगठनों के साहस, निस्वार्थ भावना और समर्पण की प्रशंसा करते हुए सोमवार को एक बयान जारी कर उन बच्चों और परिवारों के प्रति संवेदना ज़ाहिर की है जो इस विनाशकारी दावानल से प्रभावित हुए हैं.
ऑस्ट्रेलिया में झाड़ियों और सूखी घास में आग की घटनाएं होती रही हैं लेकिन मौजूदा आपात स्थिति के पीछे वजह तापमान में रिकॉर्ड बढ़ोत्तरी और गंभीर सूखे को माना जा रहा है.
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार अब तक 24 लोगों और लाखों पशुओं की मौत हो गई है. साथ ही 60 लाख हेक्टेयर से ज़्यादा झाड़ियां, जंगल व पार्क जल कर ख़ाक हो चुके हैं और हज़ारों घर तबाह हुए हैं.
यूनीसेफ़ ने कहा है उसे विश्व भर में बच्चों को मानवीय सहायता के तीन चरणों – तत्काल राहत, पीड़ा से उबरने में मदद और फिर से जीवन की शुरुआत – उपलब्ध कराने का गहरा अनुभव है और ऑस्ट्रेलिया में काम करने के लिए संगठन इच्छुक है.
“यूनीसेफ़ के पास प्राकृतिक आपदाओं सहित आपात हालात से मुक़ाबले के लिए वैश्विक स्तर की विशेषज्ञता और अनुभव है. दुनिया भर में लाखों-करोड़ों लोगों के साथ दशकों तक काम करने से हमें पता है कि इन हालात में हमेशा बच्चे ही सबसे ज़्यादा कमज़ोर होते हैं.”

चुनौतीपूर्ण हालात में फंसे बच्चों की देखभाल
यूनीसेफ़ ने बताया कि संगठन की प्राथमिकता यह सुनिश्चित करना है कि जो बच्चे इस आपदा से गुज़रे हैं वे जल्द से जल्द सामान्य जीवन को शुरू कर पाएं. उनकी पढ़ाई-लिखाई को फिर से शुरू कर ऐसा किया जा सकता है.
“दीर्घकाल में यह अहम होगा कि बच्चों के विचारों को भी निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल किया जाए.” इसी को ध्यान में रखते हुए यूनीसेफ़ ऑस्ट्रेलिया ने एजेंसी के अंतरराष्ट्रीय कार्यालयों, अन्य स्थानीय संगठनों और सरकारी एजेंसियों से बात की है ताकि भविष्य के लिए कार्ययोजना को आकार दिया जा सके.
ऑस्ट्रेलिया में धधकती आग से हालात अब भी विकट बने हुए हैं और इसलिए ज़रूरतों की अभी पूरी तरह समीक्षा नहीं हो पाई है. लेकिन उन्हें स्कूल लौटने में मदद करना, मनोसामाजिक सहारा उपलब्ध कराना और भविष्य के लिए उनकी आवाज़ों को मंच प्रदान करने से जुड़ी पहलों को अहम बताया गया है.
यूनीसेफ़ के मुताबिक़ घटना से सीधे तौर पर प्रभावित बच्चों के अलावा उन बच्चों का भी ख़याल रखा जाना महत्वपूर्ण है जो पारंपरिक और सोशल मीडिया पर इस घटना से संबंधित जानकारी को हासिल कर रहे हैं.
“हम सभी अभिभावकों को प्रोत्साहित करेंगे कि वे घटनाक्रम पर अपने बच्चों से बात करें और उन्हें सुरक्षित महसूस कराने में हर प्रकार के प्रयास करें.”
ग़ौरतलब है कि वर्ष 1967 से 2013 तक, ऑस्ट्रेलिया में झाड़ियों से आग लगने और उसके फैलने से 433 मौतें हुई हैं और आठ हज़ार से ज़्यादा लोग घायल हुए हैं.
सरकारी आंकड़े दर्शाते हैं कि गर्म हवाओं को छोड़कर देश में प्राकृतिक आपदाओं से अब तक जितने भी लोगों की मौत हुई है उनमें क़रीब आधे मामलों में आग ही ज़िम्मेदार हैं.