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दक्षिण सूडान: एक भारतीय पशु चिकित्सक ने बदल दी उनकी दुनिया

पशु चिकित्सा सेवाओं की उपलब्धता से स्थानीय लोगों को राहत मिली है.
UNMISS
पशु चिकित्सा सेवाओं की उपलब्धता से स्थानीय लोगों को राहत मिली है.

दक्षिण सूडान: एक भारतीय पशु चिकित्सक ने बदल दी उनकी दुनिया

शान्ति और सुरक्षा

वर्षों तक अंतर-जातीय संघर्ष का दंश झेलने वाले दक्षिण सूडान के बोर इलाक़े में पशु उद्योग तबाही के कगार पर पहुंच गया था लेकिन अब भारतीय शांतिरक्षकों की मेहनत से वहां आए सकारात्मक बदलाव महसूस किया जा सकता है. भारतीय शांतिरक्षक लैफ़्टिनेंट-कर्नल रिचमार्क फ़र्नांडीज़ दक्षिण सूडान में संयुक्त राष्ट्र मिशन (UNMISS) के साथ एक पशु चिकित्सक के रूप में काम करते हुए स्थानीय मवेशियों की अच्छी सेहत सुनिश्चित कर रहे हैं.

लैफ़्टिनेंट-कर्नल फ़र्नांडीज़ का कहना है कि जानवरों का आसपास होना उन्हें हमेशा ख़ुशी देता है. “मेरे गाँव में हमारे पास बहुत सारी मुर्ग़ियाँ और गायें थी. मुझे हमेशा उनसे बहुत लगाव था.”

विभिन्न आकार और रूपों के जानवरों में उनकी दिलचस्पी ने उन्हें पशु चिकित्सा विज्ञान में डिग्री हासिल करने के लिए प्रेरित किया, जिसके बाद वे भारतीय सेना में शामिल हो गए और पिछले 15 वर्षों से एक पशु चिकित्सक के रूप में काम कर रहे हैं.

लैफ़्टिनेंट-कर्नल फ़र्नांडीज़ के मुताबिक़ किसी बीमार जानवर को ठीक होते हुए देखने से जो संतुष्टि मिलती है उसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता.

लेकिन उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि उनका करियर एक दिन उन्हें सुदूर अफ़्रीका में दक्षिण सूडान के जोंगलेई क्षेत्र के बोर में काम करने के लिए ले जाएगा. हालांकि जब उस अवसर ने उनके दरवाज़े पर दस्तक दी तो  वह बिल्कुल भी नहीं झिझके.

लैफ़्टिनेंट कर्नल रिचमार्क फ़र्नान्डेज़ (बाएँ से दूसरे) एक भारतीय शांतिरक्षक हैं जो दक्षिणी सूडान के बोर इलाक़े में पालतू पशुओं का स्वास्थ्य बेहतर करके लोगों का जीवन बेहतर बना रहे हैं.

वह मुस्कुरा कर कहते हैं, “मुझे लगा कि यह पशुओं और उनके मालिकों के जीवन में वास्तविक बदलाव लाने का अवसर है.”

सच हुआ सपना

ग्रेटर बोर क्षेत्र में लैफ़्टिनेंट-कर्नल फ़र्नांडीज़  एकमात्र पशु चिकित्सा क्लीनिक की देखरेख करते हैं. उनके लिए यह एक ऐसा सपना है जो सच हो गया है – अपने और विविध प्रकार के रोगियों की भीड़ के लिए.

लैफ़्टिनेंट-कर्नल फ़र्नांडीज़ का इस क्लीनिक में मौजूद होना उन हज़ारों चरवाहों के लिए आशा और राहत का प्रतीक है जो अपनी आजीविका के लिए पशुओं पर निर्भर हैं.

दक्षिण सूडान में बहुत से परिवार ऐसे हैं जो कई पीढ़ियों से मवेशियों का पालन-पोषण करते रहे हैं और उन्हें साफ़-सुथरा और रोगमुक्त रखने में गर्व महसूस करते हैं.

पशुमालिकों के लिए इन पशुओं का ठीक रहना आवश्यक है ताकि वे सामाजिक-सांस्कृतिक और परंपरागत आयोजनों व प्रथाओं में हिस्सा ले पाएं, ख़ासतौर पर शादी समारोहों में.

आमतौर पर दूल्हे का परिवार भावी दुल्हन के माता-पिता और रिश्तेदारों को कई गायें भेंट में देता है.

दिन भर मरीज़ों का तांता

लैफ़्टिनेंट-कर्नल फ़र्नांडीज़ को स्थानीय लोग दुलार से "रिचमंड" कह कर बुलाते हैं.

उनके दिन की शुरुआत सुबह आठ बजे होती है और सामान्यतः इस समय तक क्लीनिक का वेटिंग रूम रंभाते या मिमियाते मरीज़ पशुओं से भरा होता है.

“हम रोज़ाना क़रीब 60 मरीज़ पशुओं की जांच करते हैं. वे यहां तपैदिक से लेकर ईस्ट कोस्ट बुखार तक, हर तरह की समस्याओं के साथ आते हैं.”

देश में लंबे समय तक चलने वाले सशस्त्र संघर्ष के कारण चरवाहे अपने पशुओं की हमेशा सही ढंग से देखभाल नहीं कर पाए.

असुरक्षा और टीकों व चिकित्सा सेवाओं की कमी के परिणामस्वरूप कृषि संबंधी कार्यों में उपयोग में लाए जाने वाले कई पशुओं की स्थिति ख़राब रही है.

हालांकि अब स्थिति में लगातार सुधार हो रहा है. ज़रूरी दवाएं आसानी से उपलब्ध हो पा रही हैं और पशु व अन्य पालतू जानवर ख़राब स्वास्थ्य से उबर रहे हैं.

लैफ़्टिनेंट-कर्नल फ़र्नांडीज़ मवेशियों की दूध और मांस उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के उपायों की भी सलाह देते हैं.

वह कहते हैं कि पशुओं के आहार में घास के अलावा अन्य प्रकार का भोजन भी शामिल होना चाहिए क्योंकि घास कभी-कभी दूषित होती है.

“यदि वे इस सुझाव का पालन करें तो चरवाहे अपनी गायों के दूध उत्पादन को औसतन डेढ़ लीटर प्रतिदिन से बढ़ाकर साढ़े तीन लीटर कर सकते हैं. साथ ही वे स्वस्थ संतानों को भी जन्म दे पाएंगे.”

भारतीय बटालियन की भूमिका

चिकित्सा सेवाएं प्रदान करने के अलावा जोंगलेई में भारतीय बटालियन ने क्लीनिक के नवीनीकरण में सहायता की है और इसे सक्रिय रखने के लिए दवाओं और अन्य आवश्यक उपकरणों की समय पर डिलीवरी सुनिश्चित की है.

लैफ़्टिनेंट-कर्नल फ़र्नांडीज़  और भारतीय बटालियनों के काम को स्थानीय चरवाहों और सरकारी अधिकारियों ने समान रूप से सराहा है. जोंगलेई में कृषि मामलों के मंत्री जॉन डुत कुच द्वारा हस्ताक्षरित एक पत्र उनके कार्यालय की दीवार पर सजा है.

वर्षों तक अंतर-जातीय संघर्ष का दंश झेलने वाले इलाक़े में पशु-मवेशी उद्योग तबाही के कगार पर पहुंच गया था लेकिन अब भारतीय दल की मेहनत से वहां आया बदलाव महसूस किया जा सकता है.

एक स्थानीय चरवाहे माजक कुओल के अनुसार, “अगर हमें क्लीनिक में देखभाल न मिली होती तो हमने अपने अधिकांश जानवरों को खो दिया होता.”

लेकिन लैफ़्टिनेंट-कर्नल फ़र्नांडीज़ अभी अपनी उपलब्धियों से पूरी तरह संतुष्ट नहीं है.

“मौजूदा समय में हम आठ पशु स्वास्थ्यकर्मियों को प्रशिक्षित कर रहे हैं जिसके बाद क्षेत्र में योग्य स्वास्थ्यकर्मियों की कुल संख्या लगभग 50 हो जाएगी. हम आसपास के गांवों में भी चरवाहों को अल्पकालिक प्रशिक्षण प्रदान करते हैं.”

कभी-कभी लैफ़्टिनेंट-कर्नल फ़र्नांडीज़ ‘जॉन गारंग मैमोरियल यूनिवर्सिटी फॉर सायंस एंड टैक्नोलॉजी में भी शिक्षण करते हैं. इससे युवा पशु चिकित्सकों को इस पेशे के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करने में मदद मिलती है.

उनके लिए अपने परिवार से दूर होना मुश्किल रहा है लेकिन वह इन वर्षों में ऊर्जावान बने रहने में सफल रहे. 

“दक्षिण सूडान के लोगों की सेवा करने का जोश मुझे बल देता है और उनका कृतज्ञता का भाव वास्तव में ज़बरदस्त और मार्मिक है.”