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दक्षिण सूडान में सेवा के लिये भारतीय शान्तिरक्षक पुरस्कृत

दक्षिण सूडान में भारतीय शान्तिरक्षकों को संयुक्त राष्ट्र मिशन में सेवा के लिये पदक से सम्मानित किया गया.
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दक्षिण सूडान में भारतीय शान्तिरक्षकों को संयुक्त राष्ट्र मिशन में सेवा के लिये पदक से सम्मानित किया गया.

दक्षिण सूडान में सेवा के लिये भारतीय शान्तिरक्षक पुरस्कृत

शान्ति और सुरक्षा

भारत में महिलाओं के लिये सेना का हिस्सा होना आम बात नहीं है. यही बात मालाकाल में तैनात शान्तिरक्षकों की टुकड़ी पर भी खरी उतरती है, जहाँ हाल ही में आठ सौ से अधिक शान्तिरक्षकों को दक्षिण सूडान में संयुक्त राष्ट्र मिशन में सेवा के लिये पदक से सम्मानित किया गया.

इन्जीनियरिंग अधिकारी, मेजर चेतना, वास्तव में इस टुकड़ी की एकमात्र महिला सैनिक हैं. मेजर चेतना, 21 शान्तिरक्षकों की अपनी टुकड़ी की मदद से, यह सुनिश्चित करती हैं कि सैनिकों के पास बिजली की भरोसेमन्द आपूर्ति, सुविधाजनक आवास और पर्याप्त जल आपूर्ति हो.

हालाँकि वह, अपने इस कार्य को कोई ख़ास उपलब्धि नहीं मानतीं, बल्कि अपना कर्तव्य मानकर, ईमानदारी से निभाती हैं.

मेजर चेतना कहती हैं, “मैं अपने पुरुष सहयोगियों से अलग नहीं हूँ. मैं अपना काम उतनी ही कुशलता से करती हूँ, जितना वो करते हैं. मैं ख़ुद को उनके बराबर मानती हूँ और मेरे साथ वो भी समानता का व्यवहार करते हैं.”

मेजर चेतना हमेशा से जानती थीं कि वो एक सैनिक बनेंगी. हालाँकि उनके परिवार का कोई भी सदस्य सेना में नहीं था, लेकिन अपने निकट सम्बन्धियों के सहयोग से उन्होंने अपना सपना  साकार करने में सफलता हासिल की. 

“सेना की वर्दी, अनुशासन और कोड ने मुझे हमेशा आकर्षित किया. मैं, बचपन में टेलीविज़न पर सैन्य परेड देखती और सोचती कि “बड़ी होकर, मैं भी इन्हीं की तरह बनूँगी...और अब मैं यहाँ हूँ!"

नील नदी के ऊपरी भाग में स्थित इस देश में, भारतीय बटालियन केवल मलाकाल में ही नहीं बल्कि कोडोक, बेलिएट, मेलट और रैन्क जैसे दूर-दराज़ के क्षेत्रों में भी स्थानीय समुदायों को पशु चिकित्सा सेवाएँ प्रदान करने के लिये मशहूर है.

“सबसे कठिन समय कोविड-19 के कारण हुई तालाबन्दी का रहा. उदाहरण के लिये, हमें बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा - नील नदी से पानी लाना या फिर घर से या ज़ुबा से आवश्यक वस्तुएँ लाना, एकदम असम्भव था. हमारे पास जो कुछ भी था, उसे ही हमें, किफ़ायत के साथ इस्तेमाल करना था.”

भारतीय शान्तिरक्षकों ने, विषम परिस्थितियों के बावजूद, हज़ारों जानवरों का इलाज किया और समुदाय के 226 पशु - स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करके, महत्वपूर्ण पशु-पालन क्षेत्र में स्थानीय क्षमता निर्माण में सहयोग दिया.

हालाँकि, सारा कार्य पशु चिकित्सा का ही नहीं है. हाल ही में, रैन्क में स्थित बटालियन ने अचानक हिंसा भड़कने पर तीस मानवीय कार्यकर्ताओं को सुरक्षित बचाया और उन्हें शरण दी.

देश में मिशन के कार्यकारी संयोजक, एनोस चुमा ने पदक मिलने वालों को बधाई देते हुए कहा, "मैं फिर यह कहना चाहूँगा कि ऊपरी नील नदी में भारतीय शान्तिरक्षक, न केवल भारत के, बल्कि समस्त संयुक्त राष्ट्र के सच्चे राजदूत हैं."

दक्षिण सूडान में भारत के राजदूत, एस.डी.मूर्थी भी, इस अवसर पर उपस्थित थे. उन्होंने दोनों देशों के बीच सौहार्दपूर्ण सम्बन्धों और अपने देश से आए शान्तिरक्षकों के अच्छे काम की तारीफ़ की. 

उन्होंने कहा, "इस सैन्य-दल ने चुनौतियों का बढ़-चढ़कर सामना किया है जो हमारी परम्पराओं, लोकाचार और संस्कृति के अनुरूप है."

मेजर चेतना और उनके साथी शान्तिरक्षकों का साल भर का दौरा अब ख़त्म होने को है.

इस दौरान दक्षिण सूडान की युवा लड़कियों को प्रेरित करना उनका सबसे उल्लेखनीय कार्य रहा है.

उनका मानना है कि वहाँ की लड़कियों की स्थिति में कुछ बदलाव लाने में वो सफल रही है, “एक दिन, मलाकाल शहर में अपनी ड्यूटी के दौरान, मुझे कुछ लड़कियों और उनके शिक्षक का एक समूह दिखा."

"मैंने उन्हें अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिये प्रोत्साहित किया और समझाया कि पढ़ाई करके वे अपने परिवारों का पालन-पोषण कर सकती हैं. अगर मैं एक भी व्यक्ति को प्रेरणा दे सकूँ,तो मानो मेरा जीवन सफल हो गया.”