वैश्विक परिप्रेक्ष्य मानव कहानियां
महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने निम्न स्तर वाले तवालू द्वीप का मई 2019 में दौरा किया - ये जायज़ा लेने के लिए कि प्रशांति समुद्री देश समुद्रों का जल स्तर बढ़ने से किस तरह प्रभावित होंगे.

निर्धनता व पर्यावरण चुनौतियों के लिये वैश्विक प्रयास ‘काफ़ी नहीं’ रहे हैं - यूएन प्रमुख

UN Photo/Mark Garten
महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने निम्न स्तर वाले तवालू द्वीप का मई 2019 में दौरा किया - ये जायज़ा लेने के लिए कि प्रशांति समुद्री देश समुद्रों का जल स्तर बढ़ने से किस तरह प्रभावित होंगे.

निर्धनता व पर्यावरण चुनौतियों के लिये वैश्विक प्रयास ‘काफ़ी नहीं’ रहे हैं - यूएन प्रमुख

एसडीजी

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने कहा है कि निर्धनता और पर्यावरण सम्बन्धी चुनौतियों का सामना करने के लिये, वर्ष 2015 में विश्व नेताओं ने जो लक्ष्य निर्धारित किये थे उन्हें हासिल करने के प्रयासों में समुचित महत्वाकांक्षा नज़र नहीं आई है. महासचिव ने  17 टिकाऊ विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को हासिल करने के प्रयासों में हुई प्रगति पर ताज़ा रिपोर्ट में ये विचार व्यक्त किये हैं. 

महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने कहा है कि अलबत्ता पूरी दुनिया में सरकारों ने ढेर सारे प्रयास किये हैं, लेकिन फिर भी दुनिया भर में “नाज़ुक स्थिति वाले लोगों और देशों को अब भी भारी तकलीफ़ों का सामना करना पड़ रहा है”.

ये 17 टिकाऊ विकास लक्ष्य तमाम तरह की ग़रीबी दूर करने, असमानताएँ समाप्त करने और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना करने के लिये, सभीम देशों की प्रतिबद्धता दर्शाते हैं. इन लक्ष्यों के बारे में विस्तार से यहाँ जानिये.

इस रिपोर्ट में, 193 सदस्य देशों में, 17 टिकाऊ विकास लक्ष्यों के बारे में हुई प्रगति का जायज़ा लिया गया और एक वैश्विक नज़रिया पेश किया गया है.

आमतौर पर सभी क्षेत्रों में टिकाऊ विकास लक्ष्यों के बारे में बहुत से कामकाज एक जैसे रहे हैं, फिर भी क्षेत्रों के बीच भारी अन्तर देखा गया है. कुछ प्रमुख टिकाऊ विकास लक्ष्यों के बारे में छह प्रमुख बातें जो आप जानना चाहेंगे...  

जलवायु परिवर्तन

बांग्लादेश में खुलना ज़िले के कोइरा इलाक़े में ऐला तूफ़ान से बेघर हुआ एक परिवार
UNICEF/Uddin
बांग्लादेश में खुलना ज़िले के कोइरा इलाक़े में ऐला तूफ़ान से बेघर हुआ एक परिवार

महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने जलवायु परिवर्तन की चुनौती को पूरी मानवता के वजूद के लिए ख़तरा क़रार दिया था लेकिन फिर भी इस चुनौती का सामना करने के लक्ष्यों को हासिल करने के लिये पक्के इरादे और नीयत नज़र नहीं आ रहे हैं.

ग्रीन हाउस गैसों के बढ़ते उत्सर्जन के साथ जलवायु परिवर्तन अपेक्षा से भी ज़्यादा रफ़्तार के साथ हो रहा है और इसके प्रभाव दुनिया भर में देखे जा रहे हैं.

इन प्रयासों के तहत पृथ्वी की तापमान वृद्धि दो डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने का लक्ष्य रखा गया है, और ध्यान रहे कि इस लक्ष्य पर वैश्विक नेता सहमत हुए थे. कोशिश ये भी होनी चाहिये कि तापमान वृद्धि औद्योगिक काल के स्तर की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज़्यादा ना बढ़े.

पृथ्वी के तापमान में पहले ही औद्योगिक काल की तुलना में औसतन एक डिग्री सेल्सियस बढ़ोत्तरी हो चुकी है लेकिन ठोस प्रयास नहीं किये गए तो तापमान वृद्धि इसी तरह से होती रहेगी और 21वीं सदी ख़त्म होने तक, शायद तीन डिग्री सेल्सियस को भी पार कर जाए.

कुछ देशों ने निजी तौर पर जलवायु परिवर्तन की चुनौती का सामना करने के लिये योजनाएँ बनाई हैं और उन्हें लागू करने के लिये वित्तीय संसाधन भी आबंटित किए हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन की विशालकाय चुनौती का सामना करने के लिये उनसे कहीं ज़्यादा ठोस योजनाएँ और पक्के इरादों की ज़रूरत है.

निर्धनता

यमन में ख़ामिर में देश के भीतर ही विस्थापित लोगों के लिये बनाए गए एक शिविर में, एक विस्थापित परिवार. 25 वर्षीय अय्यूब अली की पत्नी और चार बच्चे.
OCHA/Giles
यमन में ख़ामिर में देश के भीतर ही विस्थापित लोगों के लिये बनाए गए एक शिविर में, एक विस्थापित परिवार. 25 वर्षीय अय्यूब अली की पत्नी और चार बच्चे.

अत्यधिक या अत्यन्त निर्धनता को संयुक्त राष्ट्र ने ऐसी स्थिति के रूप में परिभाषित किया है जब किसी व्यक्ति को सामान्य व स्वस्थ जीवन जीने के लिये बुनियादी चीज़ें उपलब्ध ना हों.

संयुक्त राष्ट्र प्रमुख का कहना है कि अत्यधिक ग़रीबी में कुछ कमी दर्ज की गई थी लेकिन लोगों को ग़रीबी के दलदल से निकालने के प्रयासों के नतीजे धीमे पड़ रहे हैं.

लक्ष्य ये है कि दुनिया भर में अत्यधिक निर्धनता की दर को साल 2030 तक, कम करके तीन फ़ीसदी से भी नीचे लाना है और मौजूदा प्रयास इस लक्ष्य को हासिल करने के लिये समुचित रफ़्तार नहीं दिखा रहे हैं.

एंतोनियो गुटेरेश के अनुसार मौजूदा रफ़्तार के साथ तो अत्यन्त ग़रीब लोगों की संख्या छह फ़ीसदी तक ही रहेगी जोकि लगभग 42 करोड़ जनसंख्या होगी और ये गम्भी चिन्ता का विषय है.

इसमें हिंसक संघर्षों व लड़ाई-झगड़ों और प्राकृतिक आपदाओं की भी अहम भूमिका रही है.

अरब क्षेत्र में अत्यधिक ग़रीबी तीन प्रतिशत के नीचे रही थी. लेकिन सीरिया और यमन में हिंसक संघर्षों और युद्धों ने उस क्षेत्र में ग़रीबी का स्तर बढ़ा दिया है, और पहले से कहीं ज़्यादा लोगों को बेघर करने के साथ-साथ, उन्हें भुखमरी के कगार पर पहुँचा दिया है.

ऐतिहासिक रूप से देखा जाए तो आशान्वित बने रहने के समुचित कारण नज़र आते हैं.

साल 2015 में दुनिया भर की जनसंख्या का लगभग 10 फ़ीसदी हिस्सा, अत्यधिक ग़रीबी में जीने को मजबूर था.

साल 2010 में ये संख्या लगभग 16 प्रतिशत थी और 1990 में तो ये आँकड़ा 36 प्रतिशत था.

भुखमरी

केनया के दादाब शरणार्थी शिविर में एक माँ अपने कुपोषित बच्चे को दूध पिलाने की कोशिश करते हुए.
OCHA/Meridith Kohut
केनया के दादाब शरणार्थी शिविर में एक माँ अपने कुपोषित बच्चे को दूध पिलाने की कोशिश करते हुए.

दुनिया भर में जीवित रहने के लिये ज़रूरी भोजन सामग्री की उपलब्धता लगातार कम हो रही है, यानि कुपोषण का स्तर बढ़ रहा है.

इसे भुखमरी के रूप में परिभाषित किया जाता है. वर्ष 2017 में दुनिया भर में क़रीब 82 करोड़ 10 लाख लोग, भूखमरी के कगार पर थे. उससे पहले 2015 में ये संख्या लगभग 78 करोड़ 40 लाख थी. इस तरह दुनिया भर के, नौ में से एक व्यक्ति को भरपेट भोजन नहीं मिल रहा है.

अफ्रीका में भुखमरी की हालत ज़्यादा गम्भीर है जहाँ लगभग 20 फ़ीसदी संख्या भुखमरी का सामना कर रही है. ये लगभग 25 करोड़ 60 लाख आबादी है. महासचिव एंतोनियो गुटेरेश का कहना है कि पूरी दुनिया में खेतीबाड़ी में सार्वजनिक धन का निवेश कम हो रहा है, जिसे बदलना होगा.

“छोटे स्तर के खाद्य उत्पादकों और पारिवारिक किसानों को खेतीबाड़ी जारी रखने के लिये और ज़्यादा समर्थन व सहायता की ज़रूरत है. खेतीबाड़ी के टिकाऊ तरीक़े को जारी रखने के लिये बुनियादी ढाँचे और टैक्नॉलॉजी में और ज़्यादा धन लगाने की ज़रूरत है.”

ख़ासतौर से विकासशील देश, खेतीबाड़ी में समुचित धन निवेश नहीं होने के हालात से जूझ रहे हैं.

स्वास्थ्य

किसी अफ्रीकी देश में एक जच्चा-बच्चा स्वास्थ्य केन्द्र पर एकत्र महिलाएँ जो अपने बच्चों को टीबी व अन्य बीमारियों से बचाने वाले टीके लगवाने के लिये आई थीं. (मार्च 2017)
© UNICEF/Frank Dejongh
किसी अफ्रीकी देश में एक जच्चा-बच्चा स्वास्थ्य केन्द्र पर एकत्र महिलाएँ जो अपने बच्चों को टीबी व अन्य बीमारियों से बचाने वाले टीके लगवाने के लिये आई थीं. (मार्च 2017)

निसन्देह, दुनिया भर में और ज़्यादा लोगों का स्वास्थ्य बेहतर बनाने के प्रयासों में ख़ासी प्रगति हुई है जिससे औसत आयु बढ़ी है, जच्चा-बच्चा की मौतों में कमी आई है और ख़तरनाक संचारी बीमारियों का मुक़ाबला करने में कामयाबी मिली है.

इन कामयाबियों के बावजूद दुनिया भर में साल 2015 में लगभग तीन लाख, तीन हज़ार महिलाओं की मौत, गर्भ और बच्चों को जन्म देने सम्बन्धी जटिलताओं की वजह से हो गई. इनमें सबसे ज़्यादा संख्या सब सहारा क्षेत्र में थी.

मलेरिया और टीबी (तपैदिक) जैसी गम्भीर बीमारियों पर क़ाबू पाने के प्रयासों में अपेक्षित रफ़्तार से तेज़ी नहीं हो रही है. दुनिया भर की लगभग आधी यानि क़रीब साढ़े तीन अरब जनसंख्या, ज़रूरी स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित है.

महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने कहा कि सार्वभौमिक स्वास्थ्य मुहैया कराने, स्वास्थ्य ढाँचे में टिकाऊ तौर पर धन लगाने और ग़ैर-संचारी बीमारियों व मानसिक स्वास्थ्य सम्बन्धी बीमारियों का मुक़ाबला करने के लिये और ज़्यादा ठोस प्रयासों की ज़रूरत है.

स्त्री-पुरुष समानता

जॉर्डन के ज़ा-आतारी शरणार्थी शिविर में रवान मजाली महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा का ख़ात्मा करने के अन्तरराष्ट्रीय दिवस के मौक़े पर उदघाटन समारोह को अपने पंजों की छाप के साथ शुरू करते हुए
UN Women/Lauren Rooney
जॉर्डन के ज़ा-आतारी शरणार्थी शिविर में रवान मजाली महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा का ख़ात्मा करने के अन्तरराष्ट्रीय दिवस के मौक़े पर उदघाटन समारोह को अपने पंजों की छाप के साथ शुरू करते हुए

महिलाओं पर हिंसा होना अब भी एक वास्तविकता है. दुनिया भर में 15 से 49 वर्ष की उम्र की लगभग 20 फ़ीसदी महिलाओं ने, बीते 12 महीनों के दौरान अपने साथ शारीरिक, या यौन साथी के ही हाथों हिंसा का सामना किया है.

दुनिया के सबसे ज़्यादा ग़रीब 47 देशों में ये हालात सबसे ज़्यादा गम्भीर हैं. इन देशों को कम विकसित देश कहा जाता है.

बेशक महिलाओं और पुरुषों के बीच समानता क़ायम करने के प्रयासों में कुछ प्रगति देखी गई है, मसलन, महिलाओं के जननांगों को विकृत करने (एफ़जीएम) और कम उम्र में ही लड़कियों का विवाह कर देने के मामलों में कमी हुई है.

लेकिन असमानता की शिकार महिलाओं की संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है.

महिलाओं और पुरुषों के बीच असमानता के मूल कारणों को दूर करने के मामलों में ज़्यादा प्रगति नहीं देखी गई है.

इनमें क़ानूनों के तहत भेदभाव वाली व्यवस्था होना, भेदभावपूर्ण सामाजिक रीति-रिवाज़, नज़रिया और बर्ताव, यौन और प्रजनन सम्बन्धी मामलों में निर्णय लेने के मामले, और राजनैतिक क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी के मामले में, बहुत कम प्रगति होने से, व्यापक लक्ष्य हासिल करने की रफ़्तार प्रभावित हो रही है.

महासचिव एंतोनियो गुटेरेश का कहना था कि महिलाओं और पुरुषों के बीच समानता क़ायम करने और लड़कियों व महिलाओं के सशक्तिकरण के बिना, 17 टिकाऊ विकास लक्ष्य क़तई हासिल नहीं किये जा सकते.

कामकाज व रोज़गार

भारत की राजधानी दिल्ली में युवा कौशल केन्द्र में हुनर सीखते कुछ कामगार
World Bank/Enrico Fabian
भारत की राजधानी दिल्ली में युवा कौशल केन्द्र में हुनर सीखते कुछ कामगार

विशेषज्ञ इस मुद्दे पर सहमत हैं कि समाज के सभी वर्गों को शामिल करने वाली और टिकाऊ आर्थिक वृद्धि के ज़रिये, असल प्रगति हासिल की जा सकती है.

इसी माध्यम से, टिकाऊ विकास लक्ष्य हासिल करने के रास्ते निकल सकते हैं.

वैश्विक तौर पर श्रम की उत्पादकता में बढ़ोत्तरी हुई है और बेरोज़गारी 2008 में देखे गए वित्तीय संकट से पहले के स्तर पर पहुँच गई है.

हालाँकि पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था कुछ धीमी दर पर आगे बढ़ रही है, और वयस्कों की तुलना में, तीन गुना ज़्यादा युवाओं के बेरोज़गार होने की सम्भावना ज़्यादा है.

संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश का कहना था कि रोज़गार के अवसर बढ़ाने के लिये और ज़्यादा ठोस प्रयास करने की ज़रूरत है, ख़ासतौर पर युवाओं के लिये.

साथ ही पुरुषों व महिलाओं को समान कार्य के लिये मिलने वाले श्रम मेहनताने में अन्तर को भी समाप्त करना ज़रूरी है.

इसके अलावा सभी के लिये कामकाज के सम्मानजनक और अनुकूल व सुरक्षित हालात बनाने की भी तत्काल आवश्यकता है.