संवाद से ही निकलेगा वेनेज़ुएला संकट का समाधान
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त ने कहा है कि वेनेज़ुएला में क़ायम संकट को दूर करने का एकमात्र रास्ता आपसी संवाद ही है. शुक्रवार को जिनीवा में मानवाधिकार परिषद को संबोधित करते हुए उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि अब सरकार को तय करना है कि लोगों के मानवाधिकारों को सर्वोपरि माना जाए या फिर फिर निजी, वैचारिक और राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को.
यूएन मानवाधिकार कार्यालय (OHCHR) ने वेनेज़ुएला में मानवाधिकारों की स्थिति पर गुरुवार को एक रिपोर्ट जारी की जिसमें सरकार से देश में मानवाधिकार हनन के मामलों को रोकने के लिए तत्काल ठोस क़दम उठाने का आग्रह किया गया.
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख ने अपने संबोधन में बताया कि उनकी टीम ने मार्च में वेनेज़ुएला का दौरा किया था और कई दक्षिणी अमेरिकी देशों में वेनेज़ुएला से आए प्रवासियों और शरणार्थियों से बातचीत की.
मानवाधिकार उच्चायुक्त ने भी हाल ही में वेनेज़ुएला की राजधानी कराकस का दौरा किया था जहां उन्होंने राष्ट्रपति निकोलस मदुरो, अन्य मंत्रियों, वरिष्ठ अधिकारियों, विपक्षी नेताओं और नागरिक समाज के प्रतिनिधियों से मुलाक़ात की.
यूएन मानवाधिकार प्रमुख ने आशा जताई कि देश में मानवाधिकार के मुद्दों पर सकारात्मक माहौल बनाने का प्रयास हो रहा है. लेकिन उन्होंने चिंता भी ज़ाहिर की है कि पिछले कुछ समय में अहम संस्थाओं और क़ानून के राज का क्षरण हुआ है जिस वजह से यह काम चुनौतीपूर्ण है.
जून 2019 में संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (UNHCR) ने बताया था कि खाद्य और बुनियादी सेवाओं की किल्लत की वजह से पिछले चार सालों में 40 लाख से ज़्यादा लोग वेनेज़ुएला छोड़ कर जा चुके हैं.
अभिव्यक्ति की आज़ादी, एकत्र होने, राजनैतिक और सार्वजनिक जीवन में हिस्सेदारी होने पर दमन और बदले की भावना से कार्रवाई का जोखिम बना हुआ है.
वेनेज़ुएला में मानवाधिकारों की स्थिति पर जारी नई रिपोर्ट में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और राजनैतिक विरोधियों के ख़िलाफ़ धमकियों, यातनाओं, यौन हिंसा, जाने से मारने और जबरन ग़ायब करने के मामले सामने आए हैं.
उन्होंने कहा कि वेनेज़ुएला के तीन करोड़ लोगों का भविष्य सरकार की इच्छा और क्षमता पर निर्भर है: वह लोगों के मानवाधिकारों को प्राथमिकता देती है या फिर निजी, वैचारिक और राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं को.
रिपोर्ट दर्शाती है कि प्रदर्शनकारियों के विरूद्ध अत्यधिक और घातक बल का प्रयोग किया गया है और सुरक्षा अभियानों में लोगों के मारे जाने की भी ख़बरें सामने आई हैं.
इनमें से अधिकतर संविधानेतर हत्याएं होने की आशंका है और इस संबंध में दोषियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई होने और फिर ऐसा न होने देना महत्वपूर्ण है.
जनवरी और मई 2019 के बीच विरोध प्रदर्शनों में 66 मौतें हुई हैं जिनमें से 52 के लिए सुरक्षा बलों या सरकार का समर्थन करने वाले हथियारबंद गुटों को ज़िम्मेदार ठहराया गया है.
2018 में सुरक्षा अभियानों में बाधा पैदा करने के आरोप में 5,287 मौतें दर्ज हुईं और जून 2019 तक 1,569 मौतें हो चुकी हैं.
आर्थिक बदहाली का दौर जारी
वेनेज़ुएला में अर्थव्यवस्था बेहद कठिन परिस्थितियों से गुज़र रही है. 2013 से सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 44 फ़ीसदी सिकुड़ चुका है और 2019 तक मुद्रास्फ़ीति की दर में नाटकीय ढंग से 2,866,670 यानि क़रीब 28 लाख प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है.
तेल के निर्यात में कमी आने की वजह से राजस्व भी गिरा है और आर्थिक प्रतिबंधों की वजह से सरकार को बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराने में भी मुश्किलें पेश आ रही हैं.
वेनेज़ुएला सरकार ने धीरे-धीरे संयुक्त राष्ट्र और अन्य पक्षों से मानवीय राहत को स्वीकार करना शुरू कर दिया है लेकिन संकट का स्तर इतना बड़ा है कि लोगों की ज़रूरतों को पूरा करना कठिन बताया गया है.
मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाशेलेट ने बताया कि वेनेज़ुएला में क़ायम स्थिति से लोगों के रोज़गार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है और उनके जीवन की गुणवत्ता में भी गिरावट आई है.
बिजली, पानी और परिवहन सहित अन्य सार्वजनिक सेवाएं ढहने के कगार पर हैं और स्वास्थ्य क्षेत्र भी मुश्किल हालात से जूझ रहा है. ज़रूरी दवाइयों और औज़ार के अभाव में उन मामलों में भी मौतें हो रही हैं जिन्हें रोका जा सकता है.
वेनेज़ुएला में न्यूनतम आय प्रतिमाह क़रीब 7 डॉलर है लेकिन इससे पांच लोगों के परिवार में भोजन की पांच फ़ीसदी ज़रूरतें भी पूरी नहीं होती.
कुपोषण से मौत होने के समाचार भी मिले हैं लेकिन फ़िलहाल इस संबंध में आंकड़े जारी नहीं किए गए हैं.
भूख और आजीविका के साधनों के अभाव में लोगों ने अन्य पड़ोसी देशों का रुख़ किया है और वे प्रवासी और शरणार्थी बनने के लिए मजबूर हैं.
मानवाधिकार उच्चायुक्त ने ज़ोर देकर कहा कि इस संकट से बाहर आने का एकमात्र रास्ता संवाद है और यही संदेश उन्होंने कराकस में राजनीतिक दलों को दिया.
उन्होंने सरकार से अपील की है कि मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और विपक्ष को मानवाधिकारों और न्याय सुनिश्चित करने की दिशा में साझेदार के तौर पर देखा जाना चाहिए.