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ग़रीब देशों में मिर्गी पीड़ितों के लिए समुचित इलाज का अभाव

इस बीमारी से मिथक भी जुड़े हैं और अधिकांश देशों में इसे संक्रामक बीमारी के रूप में भी देखा जाता है.
© UNICEF/Amminadab Jean
इस बीमारी से मिथक भी जुड़े हैं और अधिकांश देशों में इसे संक्रामक बीमारी के रूप में भी देखा जाता है.

ग़रीब देशों में मिर्गी पीड़ितों के लिए समुचित इलाज का अभाव

स्वास्थ्य

विकासशील देशों में एपिलेप्सी यानी मिर्गी से पीड़ित हर 10 में से सात व्यक्तियों को ज़रूरी स्वास्थ्य सेवाएं और देखरेख उपलब्ध नहीं हो पा रही है जबकि इसका इलाज महंगा नहीं है. इस वजह से ऐसे देशों में पीड़ितों की मौत होने की आशंका विकसित देशों की तुलना में बढ़ जाती है. मिर्गी की समस्या पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की ओर से जारी की गई यह पहली वैश्विक रिपोर्ट है.

रिपोर्ट के अनुसार मिर्गी पीड़ितों के लिए दवाई का ख़र्चा एक मरीज़ के लिए प्रतिवर्ष महज़ पांच डॉलर होता है लेकिन फिर दवाईयों के अभाव में सही इलाज नहीं हो पा रहा है.

मिर्गी से पीड़ित लोगों के इलाज के लिए ज़रूरी दवाओं के अभाव के अलावा कई ग़रीब देशों को विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी से भी जूझना पड़ता है.

कुछ देशों में तो प्रति दस लाख लोगों पर सिर्फ़ एक न्यूरोसर्जन होता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की डॉ तरुण दुआ का कहना है कि मिर्गी के लिए इलाज न हो पाने के मामले बड़ी संख्या में सामने आते हैं जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता.

“हम जानते हैं कि इस स्थिति से जूझ रहे 70 फ़ीसदी लोग दौरों से मुक्ति पा सकते हैं जब उन्हें दवाईयां मिलें जिन्हें प्राथमिक स्वास्थ्य प्रणालियों के ज़रिए उन तक पहुंचाया जा सकता है.”

उनके मुताबिक़ करीब मिर्गी के 25 फ़ीसदी मामलों की रोकथाम की जा सकती है.

बीमारी से जुड़े मिथक

दुनिया भर में मिर्गी की समस्या से पांच करोड़ लोग प्रभावित हैं जिनमें 80 फ़ीसदी से ज़्यादा कम और मध्य आय वाले देशों में रहते हैं. जन्म के समय सदमे से, मस्तिष्क में संक्रमण, चोट या आघात की वजह से यह होती है. मस्तिष्क में ‘एबनॉर्मल इलेक्ट्रिकल एक्टीविटी’ यानी विद्युत प्रवाह की गड़बड़ी के कारण होता है.

इससे पीड़ित लोगों को दौरे पड़ते हैं, कई बार उनका व्यवहार असामान्य हो जाता है और वे बेहोश भी हो सकते हैं.

इस बीमारी से मिथक भी जुड़े हैं और अधिकांश देशों में इसे संक्रामक बीमारी के रूप में भी देखा जाता है.

यही वजह है कि पीड़ितों से दूरी बना कर रखी जाती है और उनकी गरिमा को ठेस पहुंचती है. ब्रिटेन, फ़्रांस और स्विट्ज़रलैंड भी मरीज़ों को ऐसे व्यवहार का सामना करना पड़ता है.

“मैं मिर्गी को उपेक्षित बीमारी कहती हूं क्योंकि कोई भी इस बारे में बात नहीं करता है.” उनके मुताबिक़ यह स्थिति तब है जब यह बीमारी आम है और हर 200 में से एक व्यक्ति इससे पीड़ित है.  

उन्होंने बताया कि कार्यस्थल पर जैसे ही किसी को मिर्गी का दौरा आता है वहां संकट पैदा हो जाता है क्योंकि किसी को इस स्थिति से निपटने का नहीं पता होता. यह धारणा भी ग़लत है कि मिर्गी से पीड़ित बच्चे के साथ खेलने पर अन्य बच्चों को भी यह बीमारी हो जाती है, या फिर इससे मरीज़ विक्षिप्त होते हैं.

यूएन एजेंसी ने इस रिपोर्ट को ‘इंटरनेशनल लीग अगेंस्ट एपिलेप्सी’ और ‘इंटरनेशनल ब्यूरो फ़ॉर एपिलेप्सी’ जैसे संगठनों के साथ मिलकर तैयार किया है. रिपोर्ट बताती है कि कम और मध्य आय वाले देशों में पीड़ितों की मौत समय से पहले हो जाती है क्योंकि दवाईयों की कमी के अलावा उनके पास पेशेवर स्वास्थ्यकर्मियों तक पहुंच नहीं होती, या फिर वे डूब जातें है और सिर पर चोट लग जाती है. स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि जिन लोगों को दौरा आ रहा हो उन्हें नियंत्रित नहीं किया जाना चाहिए और न ही उनके मुंह में कुछ डाला जाना चाहिए।

इसके बजाए उन पर एक हाथ रखकर भरोसा देना चाहिए और तब तक हवा के प्रवाह को सुनिश्चित करने का प्रयास होना चाहिए जब तक दौरा ख़त्म न हो जाए.

मिर्गी से पीड़ित करीब 23 फ़ीसदी बालिगों को जीवन में डिप्रेशन का भी सामना करना पड़ता है और लगभग 30 प्रतिशत को घबराहट रहती है. इस प्रकार की मानसिक स्वास्थ्य स्थितियां दौरों को और बुरा कर और जीवन की गुणवत्ता प्रभावित होती है. यूएन स्वास्थ्य एजेंसी का कहना है कि मिर्गी से पीड़ित हर 10 में से चार बच्चों के विकास और सीखने की क्षमता प्रभावित होती है.