वैश्विक परिप्रेक्ष्य मानव कहानियां

मातृ दिवस: माँ के समर्थन में, सदैव साथ खड़े रहने का अवसर

दक्षिण सूडान में यूनिसेफ़ समर्थित प्रसूति वार्ड के बाहर इन्तेजार करती एक गर्भवती महिला और उसकी बेटी.
© UNICEF/Mark Naftalin
दक्षिण सूडान में यूनिसेफ़ समर्थित प्रसूति वार्ड के बाहर इन्तेजार करती एक गर्भवती महिला और उसकी बेटी.

मातृ दिवस: माँ के समर्थन में, सदैव साथ खड़े रहने का अवसर

महिलाएँ

विश्व भर में, मई का महीना एक ऐसा वार्षिक अवसर है जब जीवन के हर दिन, हर क़दम पर माँ की असाधारण भूमिका व उनके योगदान के लिए उनका सम्मान व आभार प्रकट किया जाता है.

मगर, संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) ने ‘मातृ दिवस’ के अवसर पर ध्यान दिलाया है कि आभार, कृतज्ञता और ऐसी अन्य भावनाओं की भी अपनी सीमाएँ हैं, और वास्तव में माताओं के लिए वास्तविकता के धरातल पर हरसम्भव समर्थन सुनिश्चित किए जाने की आवश्यकता है.

हाल ही में जारी किए गए नए आँकड़ों के अनुसार, गर्भावस्था या प्रसव के दौरान उपजी जटिलताओं के कारण हर दो मिनट में एक महिला की मौत हो जाती है. अधिकांश मौतें रक्तस्राव और संक्रमण समेत अन्य ऐसे कारणों से होती हैं, जिनकी रोकथाम सम्भव है.

इससे भी चिन्ताजनक बात यह है कि इन समस्याओं के समाधान दशकों से मौजूद हैं, मगर उनके लिए परिवार नियोजन में तत्काल निवेश की आवश्यकता है. साथ ही, दाइयों की बड़ी क़िल्लत से निपटने पर ध्यान देना होगा.

प्रजनन स्वास्थ्य के लिए यूएन एजेंसी का मानना है कि इन उपायों से मातृत्व और नवजात शिशुओं की दो-तिहाई मौतों की रोकथाम की जा सकती है.

यूएन एजेंसी की कार्यकारी निदेशक नतालिया कानेम ने कहा कि हमारे पास मातृ मृत्यु के रोकथाम योग्य मामलों के लिए आवश्यक उपकरण, समझ और संसाधन हैं, अब केवल दृढ़ राजनैतिक इच्छाशक्ति की ज़रूरत है.

यही वजह है कि माताओं को अब पहले से कहीं ज़्यादा समर्थन की आवश्यकता है.

अपनी नवजात बेटियों के जन्म का जश्न मनाने के लिये, पेड़ लगाने जा रही माताओं का जुलूस.
UN India

मातृ मृत्यु एक बड़ा संकट

वर्ष 2000 से 2015 के दौरान, वैश्विक मातृ मृत्यु दर में एक तिहाई से अधिक की गिरावट दर्ज की गई थी, मगर उसके बाद से कई भौगोलिक क्षेत्रों में यह दर थम गई है, जबकि कुछ क्षेत्रों में इस दर में फिर से बढ़ोत्तरी नज़र आई है.

इस वजह से, वर्ष 2020 में दो लाख 87 हज़ार मातृ मृत्यु मामलों की पुष्टि हुई. यूएन एजेंसी के अनुसार, यदि किसी प्राकृतिक आपदा या अन्य संकट की वजह से इतनी बड़ी संख्या में मौतें हुई होतीं तो वो ख़बर सुर्ख़ियों में छाई रहती.

यूएन एजेंसी प्रमुख ने बताया कि, "यह अस्वीकार्य है कि अभी भी इतना बड़ी संख्या में महिलाएँ, गर्भावस्था और प्रसव के दौरान अनावश्यक ही अपनी जान गँवा देती हैं. केवल एक वर्ष में दो लाख 80 हज़ार से अधिक मौतें नितान्त अनुचित हैं."

"हम इससे अच्छा कर सकते हैं और हमें करना होगा."

विकल्पों का अभाव

यूएन जनसंख्या कोष के अनुसार, अक्सर महिलाओं और लड़कियों को गर्भधारण के बारे में निर्णय लेने का अधिकार नहीं दिया जाता है. 68 देशों में हर दस में से चार महिलाएँ, स्वास्थ्य देखभाल, यौन सम्बन्धों या गर्भ निरोधक के इस्तेमाल के लिए निर्णय ले पाने में असमर्थ थीं.

आँकड़े दर्शाते हैं कि बलात्कार की वजह से होने वाले गर्भधारण और आपसी सहमति से बनाए गए यौन सम्बन्धों के बाद हुए गर्भधारण के मोटे तौर पर समान संख्या नज़र आई है.

संयुक्त राष्ट्र, भारत जैसे देशों में गर्भावस्था और प्रसव संबंधी जटिलताओं को दूर करने के लिए विश्व स्तर पर एक महीने में 20 लाख से अधिक महिलाओं की मदद करता है.
UNDP India

ये और अन्य कारक एक उपेक्षित वैश्विक संकट को आगे बढ़ाते हैं, जहाँ विश्व भर में गर्भधारण के लगभग आधे मामले अनियोजित होते हैं, जिसके कारण अनेक प्रभावितों को गम्भीर नतीजे भुगतने पड़ते हैं.

गर्भावस्था व प्रसव के दौरान उपजी जटिलताएँ घातक साबित हो सकती हैं, विशेष रूप से किशोरों और लड़कियों के लिए. वर्ष 2021 में 10-14 वर्ष की उम्र की पाँच लाख से अधिक लड़कियाँ बचपन में ही माँ बन गईं.

यूएन जनसंख्या कोष की कार्यकारी निदेशक नतालिया कानेम ने क्षोभ प्रकट करते हुए कहा कि अनचाहे गर्भधारण मामलों की विशाल संख्या, महिलाओं और लड़कियों के बुनियादी मानवाधिकारों की रक्षा करने में वैश्विक विफलता को दर्शाती है.

निजी प्राथमिकताओं की अनदेखी

नवम्बर 2022 में, विश्व आबादी आठ अरब हो गई. कुछ लोगों के लिए यह महत्वपूर्ण क्षण स्वास्थ्य देखभाल और निर्धनता उन्मूलन में हुई प्रगति का परिचायक था, तो अन्य इस बात से चिन्तित दिखे कि पृथ्वी पर किस तरह "बहुत अधिक" या "बहुत कम" लोग हैं.

इस प्रकार की सोच, महिलाओं के शरीरों को एक प्रकार से आबादी के विस्तार की तथाकथित समस्या के समाधानों के तौर पर पेश करती है, जोकि एक ख़तरनाक विचार है.

ऐतिहासिक रूप से, इस तर्क की वजह से ऐसी कठोर नीतियाँ तैयार की गई हैं, जोकि महिलाओं की प्रजनन क्षमता को प्रभावित करती हैं, उनकी इच्छाओं को नकारती हैं और अधिकारों के लिए जोखिम पैदा करती हैं.

यूएन जनसंख्या कोष (UNFPA) की विश्व आबादी पर नवीनतम ‘8 Billion Strong’ शीर्षक वाली रिपोर्ट के अनुसार अनेक महिलाओं को अपने मौजूदा परिवार के आकार से बड़े या छोटे परिवार की चाह होती है.

दुनिया की बढ़ती वृद्ध आबादी का एक बड़ा हिस्सा हैं, महिलाएँ, जो लैंगिक असमानता के कारण वृद्धावस्था में कई तरह की समस्याओं का सामना करती हैं.
UNDP India/Prashanth Vishwa

उदाहरण के लिए, सब-सहारा अफ़्रीकी देशों में महिलाओं ने मूल रूप से उनकी इच्छा से अधिक, औसतन दो या ज़्यादा बच्चे होने की जानकारी दी, जबकि वहीं जापान में अधिकतर निःसन्तान महिलाओं ने बच्चे पैदा करने की इच्छा व्यक्त की.

इसके अलावा, रिपोर्ट बताती है कि निम्न- और मध्य- आय वाले देशों में, हर चार में से केवल एक महिला अपनी इच्छा के अनुसार प्रजनन क्षमता को साकार कर पा रही हैं.

"अपनी प्रजनन क्षमता के विषय में महिलाएँ और माताएँ क्या चाहती हैं?” लेकिन अफ़सोस की बात है कि अक्सर यह मुद्दा उठाया ही नहीं जाता.

लैंगिक समानता से शुरुआत

यूएन एजेंसी का कहना है कि मातृ मृत्यु के रोकथाम योग्य मामलों, महिलाओं व लड़कियों को उनके अधिकारों से वंचित रखने और जनसांख्यिकी बदलावों की चुनौती से निपटने के लिए, विश्व को लैंगिक रूप से अधिक समानतापूर्ण विश्व बनाना होगा.

लैंगिक असमानता, महिलाओं को कार्यबल और स्कूलों से दूर रखती है, उनके हिंसा का शिकार बनने के जोखिम को बढ़ाती है, और अपने शरीर व स्वास्थ्य के बारे में निर्णय लेने के अधिकार को नकारती है.

प्रजनन स्वास्थ्य के लिए यूएन एजेंसी के अनुसार, ये सभी वजहें गर्भावस्था को ख़तरनाक अनुभव बनाती हैं, जिससे गुज़रते हुए लाखों महिलाओं की जान चली जाती है.

यूएन जनसंख्या कोष ने ध्यान दिलाया कि इस वर्ष ‘मातृ दिवस’ पर जब आप अपनी माँ का आभार व्यक्त करें, तो सही मायनों में उनकी जीवन रक्षा के लिए प्रयास भी करें. वे इसके बदले में, अपने फलते-फूलते जीवन से आपको धन्यवाद देंगी.