दक्षिण-दक्षिण सहयोग दिवस: ‘एकजुटता में निहित हैं समाधान’
संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश ने सोमवार को ‘दक्षिण-दक्षिण सहयोग के लिये यूएन दिवस’ के उपलक्ष्य में अपने सन्देश में ध्यान दिलाया कि अभूतपूर्व चुनौतियों और परिवर्तन के इस युग में समाधान, एकजुटता में ही निहित हैं.
#SouthSouthCooperation offers solutions for today's unprecedented global challenges.Solidarity is key for developing countries to tackle the combined effects of #COVID19, the war in Ukraine & the #ClimateEmergency – and chart a better future. https://t.co/biRGKIpsv8 pic.twitter.com/EVsvgPFLuJ
UNCTAD
दक्षिण-दक्षिण सहयोग से मन्तव्य, दक्षिणी गोलार्ध में स्थित विकासशील देशों के बीच एकता से है, और इन्हें अक्सर ‘ग्लोबल साउथ’ भी कहा जाता है.
यह सहयोग राष्ट्रीय कल्याण, सामूहिक आत्मनिर्भरता और वैश्विक लक्ष्यों को प्राप्त करने में योगदान देता है.
यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने बताया कि "दक्षिण-दक्षिण और त्रिकोणीय सहयोग, विकासशील देशों के लिये जलवायु व्यवधान के मद्देनज़र कार्बन उत्सर्जन में कटौती और अनुकूलन प्रयासों, और वैश्विक स्वास्थ्य संकट से निपटने के लिये महत्वपूर्ण हैं.”
इनमें कोविड-19 से पुनर्बहाली और सभी 17 टिकाऊ विकास लक्ष्यों की प्राप्ति भी शामिल है.
‘समाधान साझा करें’
वैश्विक महामारी से उपजे परिदृश्य, यूक्रेन में युद्ध के कारण उत्पन्न हुए राजनैतिक-आर्थिक संकट, और जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए, विकासशील देशों को दक्षिण-दक्षिण और त्रिकोणीय सहयोग को मज़बूती प्रदान करनी होगी.
इसके लिये उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित साझीदारों, अन्तरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों, निजी क्षेत्र, समेत अन्य पक्षकारों के समर्थन की आवश्यकता को रेखांकित किया गया है.
संयुक्त राष्ट्र प्रमुख ने दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थित देशों के नेतृत्व वाले विकास समाधानों को विस्तार से साझा किये जाने के महत्व पर बल दिया है.
"हमारी साझा चुनौतियों को हल करने में दक्षिण-दक्षिण और त्रिकोणीय सहयोग को निरन्तर बढ़ती हुई भूमिका निभानी होगी."
असमानताओं को पाटना
यूएन प्रमुख ने आगाह किया कि इससे, सम्पन्न देशों की विकासशील देशों के साथ रचनात्मक रूप से काम करने की उनकी ज़िम्मेदारी ख़त्म नहीं हो जाती है. विशेष रूप से देशों के बीच और देशों के भीतर बढ़ती असमानताओं को कम करने के लिये.
महासचिव ने इस अन्तरराष्ट्रीय दिवस पर "सभी देशों और समुदायों को एकजुट होकर अपने सहयोग को दोगुना करने और एक समान व टिकाऊ भविष्य प्राप्त करने के लिये प्रोत्साहित किया है."
"सशक्त पुनर्बहाली के लिये हमारी तैयारियों में दक्षिण-दक्षिण और त्रिकोणीय सहयोग का केन्द्रीय स्थान रखना होगा."
"हमें अधिक सहनसक्षम अर्थव्यवस्थाओं व समाजों के निर्माण और टिकाऊ विकास लक्ष्यों को लागू करने के लिये ग्लोबल साउथ के पूर्ण योगदान व सहयोग की आवश्यकता होगी."
सहयोग का समृद्ध इतिहास
दक्षिण-दक्षिण सहयोग के लिये संयुक्त राष्ट्र का इतिहास वर्ष 1949 में आरम्भ हुआ, जब आर्थिक एवं सामाजिक परिषद द्वारा सर्वप्रथम तकनीकी सहायता कार्यक्रम और फिर 1965 में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) की स्थापना की गई.
इसके बाद, वर्ष 1978 में, ब्यूनस आयर्स में दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थित विकासशील देशों के सम्मेलन के परिणामस्वरूप, दक्षिण-दक्षिण सहयोग के एक प्रमुख स्तम्भ ने आकार लिया.
इसे विकासशील देशों के बीच तकनीकी सहयोग को बढ़ावा देने और उसे लागू करने में ब्यूनस आयर्स कार्य योजना के रूप में जाना जाता है.

वर्ष 2009 में, केनया में दक्षिण-दक्षिण सहयोग पर संयुक्त राष्ट्र उच्च-स्तरीय सम्मेलन के दौरान, नैरोबी दस्तावेज़ (Nairobi outcome document) में राष्ट्रीय सरकारों, क्षेत्रीय संस्थाओं और संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों की उन भूमिकाओं को रेखांकित किया गया है, जोकि दक्षिण-दक्षिण और त्रिकोणीय सहयोग को समर्थन देने और क्रियान्वयन की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं.
वर्ष 2013 में दक्षिण-दक्षिण सहयोग के लिये संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNOSSC) की स्थापना हुई.
वर्ष 2015 में टिकाऊ विकास के लिये 2030 एजेण्डा को पारित किये जाने के एक वर्ष बाद, यूएन महासभा ने ब्यूनस आयर्स कार्य योजना (Buenos Aires Plan of Action) को अपनाए जाने की 40वीं वर्षगाँठ पर दक्षिण-दक्षिण सहयोग पर संयुक्त राष्ट्र के दूसरे उच्च स्तरीय सम्मेलन आयोजित करने का निर्णय लिया.