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विज्ञान में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ाने व लैंगिक खाई पाटने की पुकार

महिलाएं प्लास्टिक इंजीनियरिंग में प्रशिक्षण हासिल कर रही हैं.
© UNDP India
महिलाएं प्लास्टिक इंजीनियरिंग में प्रशिक्षण हासिल कर रही हैं.

विज्ञान में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ाने व लैंगिक खाई पाटने की पुकार

महिलाएँ

विश्व में वैज्ञानिक शोधकर्ताओं की कुल संख्या में महिलाएँ 30 फ़ीसदी से भी कम हैं जो दर्शाता है कि वैज्ञानिक जगत में महिलाओं व लड़कियों के लिए हालात में अब भी असमानता क़ायम है. विज्ञान से जुड़े क्षेत्रों में शिक्षा व रोज़गार के लिए महिलाओं व लड़कियों की भागीदारी बढ़ाने के उद्देश्य से मंगलवार को 'विज्ञान में महिलाओं व लड़कियों के अंतरराष्ट्रीय दिवस' पर प्रोत्साहन दिया जा रहा है.

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने इस अवसर पर अपने संदेश में विज्ञान में व्याप्त लैंगिक असमानता का अंत करने का संकल्प लेते हुए कहा कि लिंग संबंधी घिसी-पिटी धारणाओं को दूर करना इस दिशा में एक ज़रूरी क़दम है.

उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि विज्ञान और गणित विषयों में लड़के व लड़कियां एक जैसा ही अच्छा प्रदर्शन करते हैं लेकिन उच्चतर शिक्षा में लड़कियां बेहद कम संख्या में विज्ञान संबंधी विषयों में पढ़ाई करती हैं.

उन्होंने महिला वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं के करियर को आगे बढ़ाने के लिए मददगार माहौल बनाने का अनुरोध किया है.

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विज्ञान बदल सकता है जीवन

संयुक्त राष्ट्र महिला संंगठन की कार्यकारी निदेशक पुमज़िले म्लाम्बो-न्गुका ने इस अवसर पर अपने वक्तव्य में कहा कि विज्ञान और नवाचार से जीवन बदल कर रख देने वाले फ़ायदे हो सकते हैं, विशेषकर उनके लिए जो क़तार में सबसे पीछे खड़े हुए हैं. मसलन, दूर-दराज़ के क्षेत्रों में रह रहीं महिलाएँ व लड़कियां और विकलांग वृद्धजन.

यूएन महिला संगठन की वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक अच्छे व उपयुक्त रोज़गार और भविष्य की नौकरियों के नज़रिए से भी विज्ञान महत्वपूर्ण है.

हरित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने और जलवायु संकट से निपटने में विज्ञान की एक ख़ास भूमिका है और इसमें सभी की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए यह ज़रूरी है कि विज्ञान से पुरूषत्व को जोड़ने वाली धारणाएँ तोड़ी जाएँ.

संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) के आंकड़े दर्शाते हैं कि विज्ञान (Science), टैक्नोलॉजी (Technology), इंजीनियरिंग (Engineering) और गणित (Maths) यानी स्टैम/STEM विषयों में महिलाओं द्वारा प्रकाशित शोध की संख्या कम है, उन्हें अपने शोध का मेहनताना भी कम मिलता और पुरुष सहकर्मियों की तुलना में वे करियर में उतना आगे नहीं बढ़ पातीं.

वर्ष 2014-2016 तक के आँकड़े दर्शाते हैं कि सूचना व संचार टैक्नोलॉजी के क्षेत्र में महिलाओं व लड़कियों की संख्या कम है – महिलाएं कुल संख्या का महज़ तीन फ़ीसदी हैं जबकि प्राकृतिक विज्ञान, गणित व सांख्यिकी में यह आँकड़ा पांच फ़ीसदी तक सीमित है.

यूनेस्को की महानिदेशक ऑड्री अज़ोले ने अपने संदेश में कहा, “अगर हम 21वीं सदी की विशालकाय चुनौतियों – जलवायु संकट से टैक्नोलॉजी से होने वाले व्यवधानों तक - से निपटने के क़ाबिल होना चाहते हैं तो हमें विज्ञान के साथ-साथ और सभी संसाधन भी जुटाने की ज़रूरत होगी.”

“इसी वजह से यह ज़रूरी है कि दुनिया उन हज़ारों महिलाओं की संभावनाओं, बुद्धिमत्ता और सृजनात्मकता से वंचित ना रहे जो मन में गहराई से घर कर चुकी असमानता और पूर्वाग्रहों की पीड़िता हैं.”

विज्ञान में महिलाओं व लड़कियों के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस की शुरुआत वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक प्रस्ताव के पारित होने के बाद हुई थी.

बेजिंग घोषणापत्र की 25वीं वर्षगांठ और महिलाओं व लड़कियों के लिए अधिकारों का रोडमैप ‘प्लेटफ़ॉर्म फ़ॉर एक्शन’ लैंगिक बराबरी की दिशा में प्रगति का एक नया अवसर प्रदान करता है.

इसके ज़रिए टिकाऊ विकास के लिए विज्ञान में लैंगिक बराबरी सुनश्चित करने और स्टैम विषयों में महिलाओं व लड़कियों की संख्या बढ़ाने का प्रयास किया जाता है.

यूएन महासचिव ने कहा कि यह वर्षगांठ विज्ञान से जुड़ी शिक्षा, प्रशिक्षण और कामकाज तक महिलाओं की पहुंच संभव बनाने और उसमें तेज़ी लाने का एक मौक़ा है.

संयुक्त राष्ट्र महिला संस्था की ‘Generation Equality’ मुहिम का उद्देश्य लैंगिक समानता के लिए कार्रवाई में तेज़ी लाना और बेजिंग घोषणापत्र व प्लैटफ़ॉर्म फ़ॉर एक्शन की 25वीं वर्षगांठ मनाना है.