खशोगी हत्या मामले में सघन जाँच की माँग
संयुक्त राष्ट्र द्वारा नियुक्त एक स्वतंत्र मानवाधिकार जाँचकर्ता ने कहा है कि सऊदी अरब मूल के पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या की ज़िम्मेदारी देश के सत्तारूढ़ शाही परिवार के उच्चस्तरीय अधिकारियों पर है.
स्वतंत्र मानवाधिकार जाँचकर्ता ने हत्या के इस अपराध में सऊदी अरब सरकार की ज़िम्मेदारी ठहराने का आहवान किया है.
स्वतंत्र मानवाधिकार रैपोर्टेयर एगनेस कैलामार्ड ने 100 पन्नों की रिपोर्ट तैयार की है जो अगले सप्ताह संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद को सौंपी जानी है.
इस रिपोर्ट में पत्रकार जमाल खशोगी की मृत्यु से पहले की परिस्थितियों का विस्तार से ब्यौरा दिया गया है. साथ ही उन उपायों का भी ज़िक्र किया है जिनके ज़रिए जमाल खशोगी की हत्या को टाला जा सकता था.
सुश्री एगनैस कैलामार्ड ग़ैर-न्यायिक तरीक़े से हत्याओं, मनमाने ढंग से या क़ानूनी सहायता दिए बिना किसी को मृत्युदंड मामलों में संयुक्त राष्ट्र की विशेष रैपोर्टेयर हैं.
अमरीका स्थित पत्रकार और लेखक जमाल खशोगी को आख़िरी बार जीवित 2 अक्तूबर 2018 को देखा गया था जब वो तुर्की के इस्तांबुल स्थित सऊदी दूतावास में दाख़िल हुए थे.
मानवाधिकार रैपोर्टेयर एगनैस कैलामार्ड तुर्की की गुप्तचर एजेंसियों द्वारा एकत्र सबूतों के आधार पर कहा है कि खशोगी की मौत “सरकारी एजेंसियों द्वारा सुनियोजित और प्रायोजित हत्या थी.”
उनकी ये रिपोर्ट कहती है, “सबूतों से पता चलता है कि खशोगी की हत्या पहले से ही सुनियोजित थी. सरकार में उच्च स्तर पर मौजूद नेताओं व अधिकारियों के निर्देश थे कि अगर जमाल खशोगी स्वदेश वापिस लौटने के लिए राज़ी नहीं होते हैं, तो उनकी हत्या तक की जा सकती है.” रिपोर्ट कहती है कि इस तरह के एक अतिसंवेदनशील और गंभीर ऑपरेशन को अंजाम देने में बहुत सघन योजना, बड़े पैमाने पर विभिन्न हस्तियों के बीच तालमेल और भारी धन लगाना शामिल रहा होगा.
Saudi journalist Jamal #Khashoggi was the victim of a premeditated extrajudicial execution, for which the State of #SaudiArabia is responsible – report published today by @AgnesCallamard where she cites 6 violations of international law. Learn more: https://t.co/MpsfsJRF6c pic.twitter.com/zykNt6wJLs
UN_SPExperts
इस हत्याकांड से पहले के दिनों में सऊदी सरकार के अधिकारी पत्रकार जमाल खशोगी और अन्य विरोधी विचार रखने वालों की तलाश कर रहे थे. इसलिए जब मौक़ा मिला तो सऊदी अरब के वरिष्ठ उच्चाधिकारियों ने इस मिशन की योजना बनाई और या तो पूरे मिशन की निगरानी की या उसे मंज़ूरी दी.
मानवाधिकार रैपोर्टेयर का कहना था कि जमाल खशोगी की हत्या के बारे में बहुत से क़यास और अनुमान व्यक्त किए गए हैं लेकिन उनमें से किसी भी वजह से सऊदी अरब सरकार अपनी ज़िम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकती. उनका कहना था, “15 सऊदी सरकारी एजेंटों ने अपनी सरकारी हैसियत के साथ काम किया और जमाल खशोगी की हत्या करने के लिए सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल किया.”
उनका ये भी कहना था कि पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या के मामले में अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार के कम से कम छह प्रावधानों का उल्लंघन हुआ है, इसलिए ये एक अंतरराष्ट्रीय अपराध का मामला है. और ये दायरा ऐसा है जहाँ अन्य देशों को अंतरराष्ट्रीय न्याय के प्राधिकार का दावा करना चाहिए.
मानवाधिकार रैपोर्टेयर एगनैस कैलामार्ड ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद, सुरक्षा परिषद और महासचिव से अपील की है कि इस मामले में जवाबदेही और ज़िम्मेदारी निर्धारित करने के लिए एक जाँच बिठाना ज़रूरी है जो मामले की गहराई में जाकर आपराधिक साज़िश और इरादों की सही तरीक़े से जाँच-पड़ताल कर सके और इसमें शामिल व्यक्तियों की निशानदेही कर सके.
उन्होंने चिंता जताते हुए ये भी कहा कि बड़े अफ़सोस की बात है कि जमाल खशोगी की मौत के बारे में बहुत कम देशों ने प्रतिक्रिया दी, चाहे वो क़ानूनी, राजनैतिक या कूटनीतिक. हालाँकि कुछ देशों ने कुछ सऊदी अधिकारियों के ख़िलाफ़ सीधे तौर पर प्रतिबंध लगाए थे.
क्राऊन प्रिंस की भूमिका की जाँच की ज़रूरत
रिपोर्ट में कहा गया है कि इस तरह के ठोस सबूत मौजूद हैं जिनसे ये माँग उठाना वाजिब है कि जमाल खशोगी की मौत के मामले में सऊदी अरब की वरिष्ठ हस्तियों की भूमिका और उनकी जवाबदेही की जाँच हो. और इन हस्तियों में क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान भी शामिल हैं.
जमाल खशोगी की मौत से पहले के दिनों और महीनों में क्राउन प्रिंस ने ना सिर्फ़ बड़ी संख्या में पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की बल्कि अनेक राजकुमारों और कारोबारियों की मनमाने ढंग से गिरफ़्तारियों नज़रअंदाज़ किया था. मोहम्मद बिन सलमान ने इन गिरफ़्तारियों के लिए ज़िम्मेदार लोगों की जवाबदेही तय करने और उन्हें न्याय के कटघरे में लाने लिए कोई कार्रवाई नहीं की. इसी का नतीजा था कि जमाल खशोगी की हत्या जैसा अति गंभीर अपराध हो सका. इसका कोई मतलब नहीं है कि क्या क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन किसी अपराध के लिए सीधे तौर पर कोई आदेश दिया था या नहीं.
विशेष रैपोर्टेयर ने जमाल खशोगी की हत्या के अभियुक्तों पर सऊदी अरब में मुक़दमा चलाने में पारदर्शिता पर भी संदेह व्यक्त किया, यहाँ तक कि अभियुक्तों के नामों पर भी प्रश्न चिन्ह लगाया.
सऊदी अरब के एक सरकारी वकील ने नवंबर 2018 में कहा था कि जमाल खशोगी की हत्या के मामले में 21 व्यक्तियों को गिरफ़्तार किया गया था, जिनमें से 11 को दोषी पाया गया और उनमें से पाँच को मौत की सज़ा सुनाई गई.
सरकारी वकील के कार्यालय का कहना था कि अभियुक्तों में जनरल इंटेलीजेंस प्रेसीडेंसी का उपाध्यक्ष भी शामिल थे. उन्होंने जमाल खशोगी को स्वदेश वापिस लाने के आदेश पर दस्तख़त किए थे कि उन्हें राज़ी करके वापिस लाया जाए, अगर वो ना मानें तो ताक़त का भी इस्तेमाल किया जा सकता है.
विशेष रैपोर्टेयर ने जमाल खशोगी की हत्या के मामले में अभियुक्तों के नाम भी प्रकाशित किए हैं. उनका ये भी कहना है कि रियाध में चलाए गए उस मुक़दमे की सुनावाई में अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस रू, चीन और तुर्की के प्रतिनिधि भी शामिल हुए थे.
लेकिन उनकी मौजूगी एक ऐसे समझौते पर आधारित थी कि मुक़दमे के बारे में कोई भी जानकारी सार्वजनिक नहीं की जाएगी. कुछ ख़बरें तो ऐसी भी मिली थीं कि उन प्रतिनिधियों को बहुत जल्दबाज़ी में बुलाया गया था और दुभाषिए भी उपलब्ध नहीं कराए गए थे.