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भारत: पक्षी और प्लास्टिक पर, डॉक्टर पूर्णिमा देवी बर्मन के साथ बातचीत

भारत: पक्षी और प्लास्टिक पर, डॉक्टर पूर्णिमा देवी बर्मन के साथ बातचीत

विश्व पर्यावरण दिवस (5 जून) 2023 की थीम है -  'प्लास्टिक प्रदूषण के समाधान.' आज हर जगह प्लास्टिक के ढेर देखने को मिल रहे है, और पूरा विश्व इससे होने वाले नुक़सान को समझ रहा है. प्लास्टिक ने पर्यावरण में पैठ बना ली है, जिससे पारिस्थितिक तंत्र, स्थलीय, जलीय और उड़ने वाली प्रजातियों के साथ-साथ, मानव स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है.

इस दिवस पर, भारत में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूनेप) ने भागीदारों (India Habitat Centre, Indian Birds-India’s largest Facebook group on birds, and Chintan Environmental Research and Action Group) के साथ मिलकर, पक्षियों पर प्लास्टिक पर प्लास्टिक के प्रभाव पर एक फोटो प्रदर्शनी और पैनल चर्चा आयोजित की.

इस चर्चा में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की 2022 की ‘चैम्पियंस ऑफ़ द अर्थ’ पुरस्कारों की विजेता, डॉक्टर पूर्णिमा देवी बर्मन ने भी भाग लिया. डॉक्टर पूर्णिमा देवी बर्मन एक वन्यजीव जीवविज्ञानी हैं, जिन्होंने ‘ग्रेटर एडजुटेंट स्टॉर्क’ सारस पक्षी को विलुप्त होने से बचाने के लिए, संरक्षण आन्दोलन चलाया हुआ है. यहाँ महिलाएँ, वस्त्रों पर पक्षी के चित्र उकेरकर, उन्हें बेचती हैं, जिससे उन्हें वित्तीय स्वतंत्रता तो मिलती ही है, साथ ही प्रजाति के बारे में जागरूकता फैलाने में भी मदद मिलती है. पूर्णिमा बर्मन के लिए, ग्रेटर एजडुटेंट सारस की सुरक्षा करने का अर्थ है, उनके आवासों की रक्षा करना और उन्हें पुनर्स्थापित करना. उनकी हरगिला सेना ने समुदायों को सारस के घोंसले के पेड़ों और आर्द्रभूमि क्षेत्रों के आस-पास पौधे लगाने में मदद की है, क्योंकि उन्हें उम्मीद है कि भविष्य में इनमें सारस की आबादी पनपेगी.

इसके अलावा महिलाएँ, पानी से प्लास्टिक हटाने और प्रदूषण को कम करने के लिए, नदियों के किनारे व आर्द्रभूमि में, सफ़ाई अभियान भी चलाती हैं.

हमारी सहयोगी, अंशु शर्मा ने नई दिल्ली में डॉक्टर पूर्णिमा देवी बर्मन के साथ विस्तार से बातचीत करके, यह जानने की कोशिश की कि प्लास्टिक से पक्षियों पर किस तरह का असर पड़ रहा है?

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विश्व पर्यावरण दिवस (5 जून) 2023 की थीम है -  'प्लास्टिक प्रदूषण के समाधान.' आज हर जगह प्लास्टिक के ढेर देखने को मिल रहे है, और पूरा विश्व इससे होने वाले नुक़सान को समझ रहा है. प्लास्टिक ने पर्यावरण में पैठ बना ली है, जिससे पारिस्थितिक तंत्र, स्थलीय, जलीय और उड़ने वाली प्रजातियों के साथ-साथ, मानव स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है.

इस दिवस पर, भारत में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूनेप) ने भागीदारों (India Habitat Centre, Indian Birds-India’s largest Facebook group on birds, and Chintan Environmental Research and Action Group) के साथ मिलकर, पक्षियों पर प्लास्टिक पर प्लास्टिक के प्रभाव पर एक फोटो प्रदर्शनी और पैनल चर्चा आयोजित की.

इस चर्चा में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की 2022 की ‘चैम्पियंस ऑफ़ द अर्थ’ पुरस्कारों की विजेता, डॉक्टर पूर्णिमा देवी बर्मन ने भी भाग लिया. डॉक्टर पूर्णिमा देवी बर्मन एक वन्यजीव जीवविज्ञानी हैं, जिन्होंने ‘ग्रेटर एडजुटेंट स्टॉर्क’ सारस पक्षी को विलुप्त होने से बचाने के लिए, संरक्षण आन्दोलन चलाया हुआ है. यहाँ महिलाएँ, वस्त्रों पर पक्षी के चित्र उकेरकर, उन्हें बेचती हैं, जिससे उन्हें वित्तीय स्वतंत्रता तो मिलती ही है, साथ ही प्रजाति के बारे में जागरूकता फैलाने में भी मदद मिलती है. पूर्णिमा बर्मन के लिए, ग्रेटर एजडुटेंट सारस की सुरक्षा करने का अर्थ है, उनके आवासों की रक्षा करना और उन्हें पुनर्स्थापित करना. उनकी हरगिला सेना ने समुदायों को सारस के घोंसले के पेड़ों और आर्द्रभूमि क्षेत्रों के आस-पास पौधे लगाने में मदद की है, क्योंकि उन्हें उम्मीद है कि भविष्य में इनमें सारस की आबादी पनपेगी.

इसके अलावा महिलाएँ, पानी से प्लास्टिक हटाने और प्रदूषण को कम करने के लिए, नदियों के किनारे व आर्द्रभूमि में, सफ़ाई अभियान भी चलाती हैं.

हमारी सहयोगी, अंशु शर्मा ने नई दिल्ली में डॉक्टर पूर्णिमा देवी बर्मन के साथ विस्तार से बातचीत करके, यह जानने की कोशिश की कि प्लास्टिक से पक्षियों पर किस तरह का असर पड़ रहा है?

Audio Credit
Anshu Sharma
अवधि
37'9"
Photo Credit
UN News/Anshu Sharma