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कोविड-19 के बाद की दुनिया में विकास की डगर पर एक नज़र

सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का लाभ सभी तक पहुँचाना ज़रूरी है.
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सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का लाभ सभी तक पहुँचाना ज़रूरी है.

कोविड-19 के बाद की दुनिया में विकास की डगर पर एक नज़र

एसडीजी

भारत में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की प्रतिनिधि शोको नाडा ने कहा है कि कोविड-19 से उपजा सँकट उन सभी महत्वपूर्ण विकास लाभों को पीछे धकेल सकता है जिन्हें कड़ी मेहनत से अर्जित किया गया है. इस चुनौती पर पार पाने और कोरोनावायरस के बाद सतत विकास प्रक्रिया और एक टिकाऊ दुनिया के निर्माण के लिए उन्होंने असरदार सामाजिक सुरक्षा योजनाओं और हरित विकास में निवेश पर बल दिया है.  

यूएन की वरिष्ठ अधिकारी का मानना है कि सार्वभौमिक बुनियादी आय (Universal Basic Income/UBI) जैसी योजना सरकारों की सामाजिक सुरक्षा प्रणाली को और मज़बूत बना सकती है. पेश है उनसे एक ख़ास बातचीत जो पहले यहाँ प्रकाशित हुई.

कौन सा एक मुद्दा भविष्य में विकास के लिए सबसे बड़ा बदलाव लाएगा, और क्यों?

मौजूदा संकट हमें याद दिलाता है कि हमारी स्वास्थ्य व सामाजिक सुरक्षा प्रणालियाँ और सार्वजनिक सेवाएँ कितनी असमान और सम्वेदनशील हैं. इसने सभी देशों में ग़ैर-समावेशी और ग़ैर-टिकाऊ विकास की कलई खोल दी है.

वर्ष 2019 के वैश्विक बहुआयामी ग़रीबी सूचकांक (MPI) रिपोर्ट में भारत में विकास की उल्लेखनीय प्रगति दिखी थी. 1990 के बाद से जन्म के समय जीवन प्रत्याशा में 11.6 साल और औसत स्कूली शिक्षा में 3.5 साल की वृद्धि हुई. वर्ष 2006 से 2016 के बीच 27 करोड़ 10 लाख लोगों को ग़रीबी से बाहर निकाला गया.

लेकिन कोविड-19 उन सभी महत्वपूर्ण विकास लाभों को पीछे धकेल सकता है जिन्हें भारत ने कड़ी मेहनत से अर्जित किया है. लॉकडाउन और अन्य प्रतिबन्धों ने आर्थिक गतिविधियों में एक ठहराव सा ला दिया है, ख़ासतौर से अनौपचारिक क्षेत्रों में जहाँ 45 करोड़ लोग काम करते हैं - यानि 80 प्रतिशत से अधिक श्रम बल. 

अनौपचारिक श्रमिकों की दुर्दशा एक स्पष्ट संकेत है कि विकास की प्रक्रिया ने आर्थिक कार्यबल के इस खण्ड को पीछे छोड़ दिया है. इस बात की पूरी सम्भावना है कि इनमें से कई श्रमिक और उनके परिवार ग़रीबी का शिकार हो जाएँगे.

ग़रीबी उन्मूलन के सफल रिकॉर्ड के बावजूद आर्थिक विकास के दौरान भी विषमता कम नहीं हुई है. एक अनुमान के मुताबिक 85 प्रतिशत धन 10 प्रतिशत लोगों के हाथों में सिमटा है. धनी और निर्धन के बीच की यह खाई अब और चौड़ी होने की सम्भावना है.

कोविड से पहले भी स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच पर्याप्त नहीं थी. अनुमान है कि शहरी आबादी में महज़ 18 प्रतिशत लोगों के पास स्वास्थ्य बीमा है और ग्रामीण क्षेत्रों में यह दर 14 प्रतिशत है. कोविड के लिए उच्च-तकनीकी सुविधा तो बहुत दूर की बात है, 1 अरब 30 करोड़ लोगों की सीमित सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं तक भी मुश्किल से ही पहुँच है. 

स्वास्थ्य योजनाओं के दायरे में नहीं आने वाला अतिरिक्त खर्च ग़रीब और मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए बहुत बड़ा बोझ बन जाता है.

आज विकास चक्र के उन लक्षणों को बदलने का एक अवसर है जिनके कारण बहुआयामी विषमताएँ पनपी. स्वास्थ्य सेक्टर में असमानता को पाटने के लिए स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार के साथ-साथ सभी अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों और अन्य कमज़ोर समूहों के लिए प्रभावी सामाजिक सुरक्षा उपाय सबसे महत्वपूर्ण विकास नीति हो सकती है.

भारत और बाक़ी दुनिया इन महत्वाकाँक्षी नतीजों को किस तरह हासिल कर सकते हैं? 

इस सँकट को देश के लिए एक अधिक समावेशी अर्थव्यवस्था और समाज में बदलने के लिए नीति-निर्माताओं और व्यापारिक समुदाय को एकजुट होना चाहिए. मई के महीने में भारत सरकार ने लगभग 265 अरब अमेरिकी डॉलर के बराबर आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा की.

इससे जो एक सबसे अहम मुद्दा हल हो सकता है, वो 45 करोड़ अनौपचारिक श्रमिकों की सुरक्षा से जुड़ा है जो इस समय अपने रोज़गार गँवा चुके हैं. 

32 करोड़ लोगों को लाभान्वित करने वाली भारत की सबसे बड़ी सामाजिक सुरक्षा योजना, ‘प्रधानमन्त्री ग़रीब कल्याण योजना’ (PMGKY) के अनुभव को सरकार आगे बढ़ा सकती है.

चूँकि भारत में हर 10 में से आठ श्रमिक अनौपचारिक क्षेत्र में काम करते हैं इसलिए यह ज़रूरी है कि हर एक कार्यकर्ता उसी समान सुरक्षा तन्त्र के तहत पंजीकृत हो जिसका फ़ायदा औपचारिक कार्यकर्ता को मिलता है.

निजी क्षेत्र भी अनौपचारिक श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिए उचित क़दम उठा सकते हैं – इनकी भूमिका बहुत अहम हैं और पहले से ही चिंताएँ हैं कि जब तक प्रवासी श्रमिक वापस नहीं आते तब तक व्यापार फिर से शुरू करना बेहद मुश्किल होगा. 

प्रवासी श्रमिकों को पूर्ण रूप से सन्शोधित दिशा-निर्देश के तहत अपने मूल गंतव्य पर लौटने का विकल्प दिया जाना चाहिए जो उनके कल्याण, संकट या अन्य लाभों को सुरक्षित रख सके. 

यूएनडीपी भारत की रेज़िडेंट रिप्रेजेन्टेटिव शोको नोडा लोगों से विचार-विमर्श करते हुए.
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यूएनडीपी भारत की रेज़िडेंट रिप्रेजेन्टेटिव शोको नोडा लोगों से विचार-विमर्श करते हुए.

महामारी के दौरान एक सार्वभौमिक बुनियादी आय (Universal Basic Income/UBI) योजना सरकार की सामाजिक सुरक्षा प्रणाली को और मज़बूत कर सकती है. इससे PMGKY योजना के तहत कई योजनाओं के प्रबन्धन की लेनदेन लागत को कम किया जा सकता है, मनमाने ढँग से इस्तेमाल से बचा सकता है और इच्छित प्राप्तकर्ताओं तक सटीकता से पहुँचा जा सकता है. 

यूबीआई उत्पादकता बढ़ा सकता है, अर्थव्यवस्था में अधिक खपत और मांग पैदा कर सकता है, स्वास्थ्य में सुधार कर सकता है,  अपराध और हिंसा कमी ला सकता है, शिक्षा में बढ़ोत्तरी कर सकता है और जीवन की गुणवत्ता में सुधार कर सकता है.

सार्थक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए यूबीआई का स्तर सही होना चाहिए. न्यायसंगत टैक्स दरों,  टैक्स चोरी की रोकथाम और विभिन्न सैक्टरों में सरकारी व्यय की फिर से प्राथमिकता तय कर इसे वित्तपोषित किया जाना चाहिए.

फ़िलहाल नौकरियों और व्यवसायों में एक स्वच्छ और हरित बदलाव की ज़रूरत है. भारत को हरित अर्थव्यवस्था को अपनाने की तत्काल आवश्यकता है. सार्वजनिक धन का उपयोग भविष्य के निर्माण में और स्थायी क्षेत्रों व परियोजनाओं में निवेश करने के लिए किया जाना चाहिए जो पर्यावरण और जलवायु के लिए अनुकूल हों. 

यह ना केवल सतत विकास के लिए हमारे लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करेगा बल्कि भारत के लिए वायु और जल प्रदूषण सँकट को हल करने में भी मील का पत्थर साबित होगा. 

यूएनडीपी, संयुक्त राष्ट्र एजेंसियाँ और अन्य साझीदार संगठन इन प्रयासों में सरकार का समर्थन करने के लिए प्रतिबद्ध हैं.

इसे सच्चाई में बदलने के लिए यूएनडीपी देशों की किस तरह मदद कर सकता है?

यूएनडीपी शुरू से ही भारत सरकार, राज्य सरकारों, नागरिक समाज, समुदायों और अन्य संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों के साथ मिलकर काम कर रहा है ताकि प्रभावित लोगों को महामारी के दौरान शुरुआती सहायता पहुँचाई जा सके और जवाबी कार्रवाई के लिए सरकारों के प्रयासों का समर्थन किया जा सके. पहले चरण में हमारा ध्यान स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और सबसे कमज़ोर समुदायों पर है. 

हमारी वर्तमान प्राथमिकता उन लोगों की मदद करना है जो कोविड की रोकथाम के कार्य में सबसे आगे हैं. 

यूएनडीपी और हमारे साझीदारों ने लगभग 18 हज़ार कूड़ा बीनने वालों को मास्क, दस्ताने, सैनिटाइज़र व साबुन सहित अन्य सुरक्षा किट प्रदान किए हैं और लॉकडाउन के दौरान लगभग एक लाख भोजन के पैकेट और पाँच लाख किलोग्राम अनाज वितरित किया है. 

अग्रिम पंक्ति के स्वास्थ्यकर्मियों को नए संक्रमणों से बचाने और बायो-मेडिकल कचरे का सुरक्षित निस्तारण सुनिश्चित करने के लिए एक सरल स्मार्टफोन ऐप विकसित करने में सहयोग कर रहा है.

जैसे-जैसे महामारी फैल रही है हम विभिन्न सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को अनौपचारिक श्रमिकों और सबसे कमज़ोर लोगों तक पहुंचने के लिए सामुदायिक नैटवर्क मज़बूत करने पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. 

सामुदायिक संगठनों के साथ साझेदारी में हम नई नौकरियों और आजीविका के अवसरों को सबसे अधिक प्रभावित आबादी तक भी पहुँचाने के प्रयास करेंगे. उदाहरण के तौर पर, पारिवारिक खेती, दुकानें और अन्य सूक्ष्म व्यवसाय. हमारा लक्ष्य 12 लाख 50 हज़ार लोगों तक पहुंचना है.

मेरी टीम की ताक़त है: कोविड-19 से निपटने के लिए डिजिटल समाधान प्रस्तुत करना. हमने 28 हज़ार से अधिक स्वास्थ्य केन्द्रों में निजी बचाव उपकरणों की सप्लाई चेन का पता लगाने के लिए मौजूदा इलेक्ट्रॉनिक वैक्सीन इंटैलिजेंस नैटवर्क प्लेटफॉर्म में एक अतिरिक्त फ़ंक्शन तैयार किया है. 

हमने उत्तर प्रदेश में राज्य सरकार को एक नया मोबाइल ऐप शुरू करने में भी सहयोग दिया जहाँ सरकारी अधिकारी वापिस घर लौटने वाले प्रवासी श्रमिकों के शैक्षिक स्तर और कौशल आदि की जानकारी एकत्र कर रहे हैं. इस जानकारी के आधार पर ही राज्य में उपलब्ध नये श्रमिक कौशल के तहत एक आर्थिक सुधार योजना विकसित की जाएगी. 
 
प्रौद्योगिकी विकास और व्यापार प्रक्रियाओं के बीच की खाई को पाटने की कोशिश में और विकास प्रक्रिया में उद्यमियों को शामिल करने के लिए हम ‘एसडीजी इम्पैक्ट इनीशिएटिव’ जैसे अपने विभिन्न नीति-नैटवर्क का भी लाभ उठाएँगे. यूएनडीपी सरकार और निजी क्षेत्र के साथ मिलकर सार्वजनिक और निजी डेटा को आसानी से सुलभ और उपयोगी बनाने के लिए काम करेगा ताकि कोविड के बाद पुनर्बहाली की रणनीति बनाते समय उचित जानकारी उपलब्ध हो सके.

आपने जिन बातों का ज़िक्र किया है उनसे जुड़ा क्या कोई ख़ास अनुभव या उदाहरण हमसे बाँटना चाहेंगी?

घर से काम करते हुए मैंने देखा कि वायु प्रदूषण के स्तर में बहुत कमी आई है. मुझे ये भी पता चला कि वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि हरिद्वार और वाराणसी जैसे इलाकों में गंगा का पानी पीने योग्य हो गया है. जंगली जानवर स्वतंत्र रूप से वाहन-मुक्त सड़कों पर घूम रहे हैं. कोविड-19 के लिए लॉकडाउन प्रकृति पर हुए हमले से अस्थाई राहत प्रदान कर रहा है. इसलिए यह ज़रूरी है कि हम अपने उत्पादन और उपभोग को पर्यावरण और जलवायु के लिए अधिक सम्वेदनशील बनाएँ.

इससे भी महत्वपूर्ण बात ये है कि आर्थिक विकास की अंधाधुंध दौड़ ने अधिकांश आबादी को पीछे छोड़ दिया है. वो ये भी नहीं जानते कि उनका अगला भोजन कहाँ से आएगा और ये वही लोग हैं जिन्होंने हमारे कारखानों में कड़ी मेहनत की, व्यापार में लाभ दिलाया और आर्थिक विकास में मदद की – वो सभी कुछ जिसका लाभ ख़ुद उन्हें कभी नहीं मिल पाया. 

जिस तरह कोविड-19 किसी को भी नहीं बख़्शता, उसी तरह सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को इस तरह स्थापित किया जाना चाहिए जिससे वो सभी तक पहुंच सकें. यह ना केवल एक समावेशी सामाजिक सुरक्षा जाल का काम करता है बल्कि राजस्व बढ़ाने में भी सहायक होता है. 

कोविड -19 के बाद का युग हम सभी के लिए हमारे वर्तमान और भविष्य को फिर से परिभाषित करने का युग होना चाहिए, जिसमें हम साथ मिलकर कमियों और विषमताओं को दूर करें और एक अधिक समावेशी और सभ्य समाज का निर्माण करें.

कोविड-19 हमें सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सामूहिक रूप से काम करने का अवसर प्रदान करता है. आईए इस काम को अंजाम दें और किसी को पीछे ना छूटने दें