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विश्व भर में, हर छह में से एक व्यक्ति, प्रजनन क्षमता में कमी से प्रभावित

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, बांझपन, एक वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दा है.
© Unsplash/Jan Antonin Kolar
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, बांझपन, एक वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दा है.

विश्व भर में, हर छह में से एक व्यक्ति, प्रजनन क्षमता में कमी से प्रभावित

स्वास्थ्य

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने मंगलवार को जारी अपनी एक नई रिपोर्ट में आगाह किया है कि विश्व भर में, औसतन हर छह में एक व्यक्ति प्रजनन क्षमता में कमी से प्रभावित हुए हैं और उनके लिए पर्याप्त स्तर पर, उनकी पहुँच के भीतर देखभाल सेवाएँ उपलब्ध नहीं हैं.

प्रजनन क्षमता में कमी या बांझपन (infertility) से पुरुष व महिलाएँ, दोनों प्रभावित होते हैं.

यह प्रजनन सम्बन्धी एक ऐसी अवस्था है जिसमें 12 महीने या उससे अधिक समय तक नियमित रूप से, असुरक्षित यौन सम्बन्ध बनाने के बावजूद गर्भधारण नहीं हो पाता है.

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यूएन स्वास्थ्य एजेंसी ने अपने नवीनतम विश्लेषण के लिए, वर्ष 1990 से 2021 के दौरान, बांझपन पर हुए सभी प्रासंगिक शोधकार्य का गहन अध्ययन किया.

विश्लेषण के अनुसार, वयस्क आबादी का 17.5 प्रतिशत हिस्सा अपने जीवनकाल में प्रजनन क्षमता में कमी के अनुभव से गुज़रता है.

स्वास्थ्य संगठन ने बताया है कि उच्च, मध्य और निम्न-आय वाले देशों के लिए ये दरें, लगभग एक जैसी ही हैं.

यूएन एजेंसी के महानिदेशक डॉक्टर टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस ने कहा कि यह रिपोर्ट एक महत्वपूर्ण सच को उजागर करती है – बांझपन बिना किसी भेदभाव के, सभी को प्रभावित करता है.

“प्रभावित व्यक्तियों का अनुपात दर्शाता है कि प्रजनन क्षमता की देखभाल सुलभता का दायरा व्यापक बनाने और यह सुनिश्चित किए जाने की आवश्यकता है कि स्वास्थ्य शोध व नीति में इस मुद्दे को अब और दरकिनार ना किया जाए.”

उन्होंने कहा कि अभिभावकता प्राप्त करने के लिए सुरक्षित, कारगर व पहुँच के भीतर उपाय मुहैया कराने होंगे.

उपचार की महंगी क़ीमत

यूएन एजेंसी का कहना है कि प्रजनन क्षमता में कमी के मामलों की व्यापकता के बावजूद, उसके निदान व उपचार (IVF) के लिए धन की सीमित उपलब्धता है और मरीज़ों को इसलिए इलाज से क़दम पीछे हटाना पड़ता है.

अनेक ज़रूरतमन्दों के पास इस चिकित्सा देखभाल की क़ीमत अपनी जेब से चुकानी पड़ती है, जिसके अक्सर गम्भीर नतीजे देखने को मिलते हैं.

विश्व स्वास्थ्य संगठन में यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य व शोध की निदेशक डॉक्टर पास्केल ऐलॉटी ने बताया कि लाखों-करोड़ों लोगों को प्रजनन क्षमता के उपचार के दौरान स्वास्थ्य देखभाल की विशाल क़ीमतों से जूझना पड़ता है, जिससे वो चिकित्सा निर्धनता के चक्र में फँस जाते हैं.

संगठन के अनुसार, अपेक्षाकृत सम्पन्न देशों की तुलना में निर्धनतम देशों में लोग अपनी आय का एक बड़ा हिस्सा प्रजनन क्षमता देखभाल पर ख़र्च करते हैं.

यूएन एजेंसी ने निम्न- और मध्य-आय वाले देशों में बांझपन देखभाल क़ीमतों पर अलग से कराए गए शोध के हवाले से बताया कि IVF उपचार के एक दौर की क़ीमत, अक्सर औसत वार्षित आय से अधिक पहुँच जाती है.

आवश्यक उपाय

डॉक्टर ऐलॉटी ने ज़ोर देकर कहा कि बेहतर नीतियों और सार्वजनिक वित्त पोषण के ज़रिए, उपचार सुलभता में काफ़ी हद तक सुधार लाया जा सकता है और निर्धन घर-परिवारों को निर्धनता के गर्त में धँसने से बचाना भी सम्भव है.

स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, वित्तीय कठिनाइयों के बावजूद, प्रजनन क्षमता में कमी तनाव और कथित कलंक से भी जुड़ी है और इसकी वजह से अंतरंग साथी द्वारा हिंसा का जोखिम भी बढ़ जाता है.

डॉक्टर ऐलॉटी ने विश्व भर में, प्रजनन क्षमता में कमी से लोगों के स्वास्थ्य पर होने वाले नकारात्मक प्रभावों के मद्देनज़र, इसे सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज में एक प्राथमिकता बनाने की पैरवी की है.

“प्रजनन क्षमता देखभाल, यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य का एक अहम हिस्सा है, और बांझपन के उपायों से लैंगिक असमानता में भी कमी लाई जा सकती है.”

यूएन स्वास्थ्य एजेंसी ने सचेत किया है कि फ़िलहाल, इस क्षेत्र में ना केवल स्वास्थ्य देखभाल सेवाएँ पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं, बल्कि अनेक देशों में बांझपन सम्बन्धी आँकड़ों व जानकारी की भी कमी है.

यूएन स्वास्थ्य एजेंसी ने इससे निपटने के लिए, बांझपन के विषय में राष्ट्रीय स्तर पर बेहतर सांख्यिकी तैयार किए जाने का आग्रह किया है, जिसे आयु व कारण के आधार पर वर्गीकृत किया जाए.

संगठन का कहना है कि इससे रोकथाम के लिए ज़रूरी समर्थन प्रदान करने और अन्य लक्षित उपायों को लागू कर पाना सम्भव होगा.