
कोविड महामारी के कारण स्कूल बन्द होने की वजह से भारत में अनुमानित 29 करोड़ बच्चे ऑनलाइन माध्यम से शिक्षा पाने के लिये मजबूर हो गए. ऐसे में, यूनीसेफ़ ने बच्चों के लिये बेहतर शिक्षा का माहौल प्रदान करने के मक़सद से, अपने सहयोगियों के साथ मिलकर, बच्चों के घर ये शिक्षा जारी रखने के लिये अनेक कार्यक्रम शुरू किये. इनमें ऑनलाइन कक्षाएँ और रेडियो कार्यक्रम शामिल हैं, जो अनुमानित 4 करोड़ बच्चों तक पहुँच रहे हैं.

ग़ाज़ियाबाद में सफ़ाई कर्मचारी के रूप में कार्यरत, कंचन नेसा कहती हैं, “मैं अपने परिवार के पालन-पोषण के लिये 15 से अधिक वर्षों से कूड़ा उठाने का काम कर रही हूँ. मैं स्वच्छता केन्द्र में, मैं प्लास्टिक कचरे को अलग करने में मदद करती हूँ. मैं चाहती हूँ कि प्लास्टिक कचरे का निपटान करते समय लोग थोड़ा ध्यान रखें. कचरा फेंकते समय लोगों का हर छोटा-बड़ा कार्य, कचरे की निपटान प्रक्रिया में किसी व्यक्ति की कुछ ना कुछ मदद कर सकता है.” भारत के पर्यावरण को स्वच्छ रखने के लिये, सफ़ाई कर्मचारी, अपनी ज़िन्दगी को जोखिम में डालकर भी काम में लगे हैं. संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) ने बायोमेडिकल कचरे के सुरक्षित संचालन के लिये हज़ारों सफ़ाई कर्मचारियों को व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण और उन्हें इस्तेमाल करने के लिये प्रशिक्षण दिलवाया है.

कोविड महामारी के दौरान प्रतिबन्धित गतिशीलता और आवश्यक सेवाओं तक सीमित पहुँच के कारण लैंगिक हिंसा में हुई वृद्धि अक्सर सामने नहीं आती. ओड़िशा राज्य के कटक शहर में एक केन्द्र की व्यवस्थापक, सौम्या साहू कहती हैं, “इस संकट के दौरान महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा नहीं थमी. हमने अपना केन्द्र खोले रखा और तालाबन्दी के दौरान भी सेवाएँ जारी रखीं." संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA),संयुक्त राष्ट्र की महिला संस्था - यूएन-वीमेन और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), भारत सरकार की इस ‘वन-स्टॉप सेण्टर’ योजना में सहयोग दे रहे हैं, जो लिंग आधारित हिंसा से प्रभावित महिलाओं को चिकित्सा, क़ानूनी और मनोवैज्ञानिक सहायता समेत, सेवाओं की एक एकीकृत श्रृँखला तक पहुँच उपलब्ध कराते हैं.

कोविड-19 महामारी की जवाबी कार्रवाई में, संयुक्त राष्ट्र ड्रग्स एवं अपराध निरोधक कार्यालय (UNODC) ने ‘लॉकडाउन लर्नर्स’ कार्यक्रम शुरू किया, जो टिकाऊ विकास लक्ष्यों (एसडीजी), शान्ति व क़ानून सम्बन्धित विषयों पर भारत में छात्रों और शिक्षकों के साथ एक विशेष निशुल्क व मुक्त संवाद श्रृंखला है. इस श्रृंखला में, किसी को पीछे न छोड़ने के सिद्धान्त पर ध्यान केन्द्रित करते हुए, अभिनव दृष्टिकोण अपनाए गए हैं, उदाहरणस्वरूप, व्हाट्सऐप पर ऑडियो रिकॉर्डिंग का उपयोग करना, नोटबुक के आदान-प्रदान को बढ़ावा देना और एसडीजी16 के समर्थन में ऑफ़लाइन युवा-संचालित एक्शन क्लब बनाना. इस श्रृँखला को, अपने नवाचार और प्रभाव के लिये, संयुक्त राष्ट्र के इनोवेशन नेटवर्क का प्रतिष्ठित फीचर '2020 की सर्वश्रेष्ठ पहलों’ में प्रदर्शित किया गया.

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) ने कोविड-19 महामारी के कारण राष्ट्रव्यापी तालाबन्दी के दौरान चुनौतियों का सामना करने के लिये जीवन कौशल शिक्षा से सम्बन्धित पैरोकारी और गतिविधियाँ जारी रखीं. मार्च 2020 में स्कूल बन्द होने के बाद,अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति विकास विभाग (ओड़िशा) ने गाँवों में सम्पर्क बनाने सम्बन्धी गतिविधियों के माध्यम से, साढ़े 4 हज़ार प्रशिक्षकों द्वारा 'ई-सुविद्या - वैकल्पिक शिक्षा और प्रशिक्षण कार्यक्रम (ALMP)' शुरू किया. यूएनएफ़पीए की हिमायत के परिणामस्वरूप, ई-सुविद्या कार्यक्रम के ज़रिये जीवन कौशल शिक्षा का एकीकरण हुआ, जिसमें किशोरों, विशेष रूप में, लड़कियों की समस्याओं को दूर करने पर ज़ोर दिया गया.

विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफ़पी) ने भारत में सुरक्षित व कुशल तरीक़े से अन्न वितरित करने के मक़सद से, ‘अन्नपूर्ति’ कार्यक्रम विकसित किया. एक स्वचालित वितरण मशीन के ज़रिये लोगों को किसी भी समय अपनी पसन्द का अनाज मिलता है, वो भी तुरन्त और पूरी स्वच्छता से. साथ ही, यह लोगों को उन्हें आबंटित मात्रा में अनाज प्राप्त करने की सुविधा भी देता है. भारत सरकार ने विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) के ‘अन्नपूर्ति कार्यक्रम’ के एक पायलट प्रोजेक्ट को सैद्धान्तिक स्वीकृति दे दी है, जिसके तहत इसे पाँच राज्यों - उत्तराखण्ड, महाराष्ट्र, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश और हरियाणा में स्थापित किया जा रहा है.

खारा उन लाखों अनौपचारिक श्रमिकों में से एक हैं जिनकी आजीविका महामारी से प्रभावित हुई थी. उन्होंने बताया, “हम गुबेडा में एक ईंट भट्टे पर काम करते थे और हर महीने लगभग 9000 रुपए अर्जित करते थे. लेकिन मार्च में तालाबन्दी की घोषणा के कुछ दिनों के बाद, ईंट भट्ठा मालिक ने हमें निकाल दिया. हमारे पास अपने गाँव वापस जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था.” आर्थिक मन्दी अनौपचारिक क्षेत्र को गम्भीर रूप से प्रभावित कर रही है, जिसमें लाखों प्रवासी श्रमिक शामिल हैं. उत्तर प्रदेश और ओड़िशा में, यूएनडीपी ने राज्य सरकार के साथ साझेदारी में एक डिजिटल ऐप्लिकेशन शुरू किया था ताकि घर वापस जाने वाले प्रवासियों को मदद मिल सके. यह ऐप, कोविड-19 से प्रभावित प्रवासियों की ज़रूरतों को के बारे में जानकारी एकत्र करके, कौशल और सेवाओं तक उनकी पहुँच बनाता है. ऐप के ज़रिये 40 लाख 30 हज़ार प्रवासियों का डेटा इकट्ठा किया गया है, जो प्रतिक्रिया और पुनर्बहाली कार्यक्रमों के लिये उपयोग किया जाएगा.

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (UNHCR) के सहयोगी ग़ैर-सरकारी संगठन (NGO) ‘उम्मीद की उड़ान’ द्वारा संचालित कक्षाओं में, महिलाओं व लड़कियों को आत्मसम्मान बढ़ाने और अपनी रक्षा करने के गुर सिखाए जाते हैं. लिंग आधारित हिंसा मानव अधिकारों का गम्भीर उल्लंघन है, और शरणार्थी महिलाएँ व लड़कियाँ, सुरक्षा नेटवर्क की कमी और ख़राब सामाजिक आर्थिक स्थितियों के कारण इसके अधिक जोखिम में रहती हैं.

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) ने भारत की नदियों और महासागरों में समुद्री प्लास्टिक के कूड़े की समस्या को हल करने के लिये अपना अभियान जारी रखा. इस परियोजना के तहत, उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग के साथ साझेदारी में आगरा के ताज महोत्सव सहित भारत के चार शहरों को एकल-उपयोग प्लास्टिक मुक्त घोषित किया गया.

ख़ासतौर से जोखिम भरे वातावरण में काम करने वाले, कमज़ोर समुदायों के बीच जल, स्वच्छता और सफ़ाई (वॉश) सेवाएँ, संयुक्त राष्ट्र की कोविड-19 कार्रवाई की आधारशिला रहीं. यूनीसेफ़, यूएनडीपी, यूएनएफ़पीए और डब्ल्यूएचओ ने सुनिश्चित किया है कि निर्धन व सुविधाहीन बस्तियों और ग्रामीण इलाकों में बच्चे और परिवार, अपने हाथ साबुन से धो सकें.

भारत में वरिष्ठ नागरिक कोविड-19 महामारी से सबसे अधिक प्रभावित हैं, क्योंकि इससे न केवल उनके स्वास्थ्य पर असर पड़ता है, बल्कि उन्हें ग़रीबी और अलगाव का जोखिम भी झेलना पड़ रहा है. यूएनएफ़पीए और उसकी सहयोगी संस्था, ‘हेल्पएज इंडिया’ सत्रह राज्यों में बुज़ुर्गों तक जागरूकता फैलाने, निशुल्क चिकित्सा शिविर आयोजित करने और आवश्यक वस्तुओं व स्वास्थ्य उत्पाद वितरित करने में लगे हैं.

महामारी के कारण हुए आर्थिक और सामाजिक व्यवधान ने, अनौपचारिक अर्थव्यवस्था के श्रमिकों, युवाओं और महिलाओं की आजीविका को प्रभावित किया है, ख़ासतौर पर ग्रामीण क्षेत्र सबसे गम्भीर रूप से प्रभावित हुए हैं. अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) का उद्यमिता विकास कार्यक्रमक व्यवसाय शुरू करने के बारे में, प्रतिभागियों को प्रशिक्षित करता है. संगठन, इस कार्क्रम के ज़रिये, कोविड संकट के दौरान कमजोर समूहों के लिये, गरिमामय कामकाज और आजीविका सुनिश्चित करने की दिशा में कार्य कर रहा है.

कोविड महामारी और उसके मद्देनजर अभूतपूर्व निरोधक उपायों का, विनाशकारी सामाजिक और आर्थिक प्रभाव पड़ा है, हाशिये पर धकेले हुए कमज़ोर समूहों पर, विशेष रूप से अधिक. भारत में WFP उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर में अग्रिम मोर्चे के एनजीओ - ‘समर्थ’ की मदद से, निर्बल वर्ग के लगभग 20 हज़ार घरों की पहचान करके, उनमें खाद्य सहायता पहुँचा रहा है, जिसमें ट्रांसजेंडर, पुरुष व महिला यौनकर्मी जैसे जोखिम समूह शामिल हैं.

मुज़फ्फरपुर ज़िले के वार्ड सदस्य रामसागर साहनी बताते हैं, “कोविड-19 के कारण समुदाय के लोग भयभीत थे और उसी समय अचानक बाढ़ के पानी ने गाँव में प्रवेश किया.” ऐसे समय में, यूएनएफ़पीए व उनकी सहयोगी संस्था ‘प्लान इंडिया’' ने साथ मिलकर राज्य के सबसे अधिक प्रभावित भागों में लिंग-सम्वेदनशील बाढ़ सहायता उपलब्ध कराई. उन्होंने यूएनएफ़पीए की ट्रेडमार्क ‘डिग्निटी किट्स’ वितरित कीं, जिनमें सरल लेकिन अति महत्वपूर्ण सामान शामिल था, जिससे आपदा के दौरान समुदायों में महिलाओं को साफ़-सफ़ाई और मासिक धर्म स्वच्छता का प्रबन्धन करने व गरिमा के साथ जीने की सुविधा प्राप्त हो सके.
भारत में यूएन सक्रियता की झलकियों का प्रथम भाग यहाँ देखा जा सकता है...