ग़ाज़ा पट्टी की आबादी क़रीब 23 लाख है और अधिकाँश फ़लस्तीनी वहाँ पिछले 9 महीनों से जारी लड़ाई से जान बचाने के लिए बार-बार जबरन विस्थापित हो रहे हैं. अब तक, युद्ध में 37 हज़ार से अधिक फ़लस्तीनी मारे गए हैं, कई इलाक़े पूरी तरह मलबे में तब्दील हो चुके हैं और अकाल का जोखिम है.
ग़ाज़ा में बड़ी संख्या उन लोगों की है, जो कईं बार विस्थापित हुए हैं. लाखों लोगों ने दक्षिणी ग़ाज़ा में रफ़ाह का रुख़ किया था, मगर वहाँ इसराइली कार्रवाई शुरू होने के बाद उन्हें उस इलाक़े को भी ख़ाली करना पड़ा.
रफ़ाह में तैयार किए गए अस्थाई आश्रय स्थलों में हालात बेहद ख़राब थे. बहुत कम जगह में एक के बाद एक टैंट को खड़ा किया गया था, जहाँ विस्थापित पुरुषों, महिलाओं व बच्चों ने शरण ली. फ़लस्तीनी शरणार्थियों के लिए यूएन एजेंसी (UNRWA) के अनुसार, उन्हें निरन्तर भोजन, जल, बुनियादी सेवाओं की क़िल्लत से जूझना पड़ रहा है.
दक्षिणी ग़ाज़ा में, लड़ाई तेज़ होने के बाद विश्व खाद्य कार्यक्रम के साझेदार संगठनों का कुपोषण रोकथाम केन्द्रों के साथ सम्पर्क टूट गया. इन परिस्थितियों में बड़ी संख्या में बच्चों को पर्याप्त मात्रा में पौष्टिक आहार नहीं मिल पाया, जिससे वे अति गम्भीर कुपोषण से जूझ रहे हैं.
आम फ़लस्तीनी अब मध्य ग़ाज़ा समेत अन्य इलाक़ों में शरण ढूंढ रहे हैं, मगर वहाँ भी बमबारी होने और अक्सर जल, भोजन व बुनियादी सेवाओं के अभाव के कारण यह बेहद कठिन है.
यूएन मानवतावादी कार्यालय ने आगाह किया है कि मौजूदा हालात में कुपोषण, हेपेटाइटिस ए समेत अन्य संचारी बीमारियों के फैलाव की आशंका है.
उत्तरी ग़ाज़ा में चिकित्सा कारणों से कई मरीज़ों को बाहर ले जाया गया, जिनमें बहुत से बच्चे भी थे. 13 वर्षीय इब्राहिम, एक सुरक्षित स्थल के रूप में चिन्हित आश्रय स्थल के ढह जाने के बाद गम्भीर रूप से घायल हो गया था. इब्राहिम को अपनी बाँह खोनी पड़ी और उन्हें बिना बेहोश किए ही यह सर्जरी की गई.