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यूएन में फ़लस्तीन की पूर्ण सदस्यता के लिए, सुरक्षा परिषद से पुनर्विचार करने का आग्रह

संयुक्त राष्ट्र में फ़लस्तीन की पूर्ण सदस्यता के अनुरोध पर यूएन महासभा में प्रस्ताव पारित.
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संयुक्त राष्ट्र में फ़लस्तीन की पूर्ण सदस्यता के अनुरोध पर यूएन महासभा में प्रस्ताव पारित.

यूएन में फ़लस्तीन की पूर्ण सदस्यता के लिए, सुरक्षा परिषद से पुनर्विचार करने का आग्रह

शान्ति और सुरक्षा

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने शुक्रवार को ग़ाज़ा संकट के मुद्दे पर आपात विशेष सत्र के दौरान विशाल बहुमत से एक प्रस्ताव पारित किया है, जोकि यूएन में एक पर्यवेक्षक राष्ट्र के रूप में फ़लस्तीन के अधिकार बढ़ाने पर लक्षित है. इस प्रस्ताव के ज़रिये फ़लस्तीन को पूर्ण सदस्यता नहीं दी गई है, मगर सुरक्षा परिषद से फ़लस्तीन के अनुरोध पर अनुकूल ढंग से फिर विचार करने का आग्रह किया गया है.

193 सदस्य देशों वाली यूएन महासभा में इस प्रस्ताव के पक्ष में 143 देशों ने मतदान किया, 9 ने विरोध में वोट डाले, जबकि 25 सदस्यों ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया.

प्रस्ताव के मायने

यूएन महासभा में प्रस्ताव के पारित होने के बाद संयुक्त राष्ट्र में फ़लस्तीन के अधिकारों में बढ़ोत्तरी होगी, मगर उसके पास मतदान करने या यूएन के अन्य अंगों, जैसेकि सुरक्षा परिषद या आर्थिक एवं सामाजिक परिषद में सदस्यता पाने का अधिकार नहीं होगा.

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फ़लस्तीन को सदस्यता प्रदान करने के लिए सुरक्षा परिषद से सिफ़ारिश की आवश्यकता होती है. यूएन महासभा के अनुसार, फ़लस्तीन यह दर्जा पाने के योग्य है और सुरक्षा परिषद से इस सिलसिले में अनुकूल ढंग से पुनर्विचार किए जाने का आग्रह किया गया है.  

यूएन महासभा का नया सत्र 10 सितम्बर को आरम्भ होगा, और ये नए बदलाव व फ़लस्तीन के अधिकारों में बढ़ोत्तरी तब तक प्रभावी नहीं होगी.

दर्जे में बदलाव, नए अधिकार

  • सदस्य देशों के बीच वर्णक्रमानुसार बैठना
  • किसी समूह की ओर से वक्तव्य देना
  • प्रस्ताव व संशोधन पेश करना
  • प्रस्तावों व संशोधनों को सह-प्रायोजित करना, एक समूह की ओर से भी
  • नियमित व विशेष सत्रों के प्रावधानिक एजेंडा के लिए प्रस्ताव देना व अतिरिक्त विषयों को शामिल करने के लिए अनुरोध करना
  • फ़लस्तीनी प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों को यूएन महासभा की मुख्य समितियों में अधिकारियों के रूप में निर्वाचित होना
  • यूएन महासभा या अन्य अंगों के तत्वाधान में आयोजित होने वाले सम्मेलनों, अन्तरराष्ट्रीय बैठकों में पूर्ण व प्रभावी भागीदारी

यह बैठक ऐसे समय में आयोजित की गई है जब दक्षिणी ग़ाज़ा में स्थित रफ़ाह शहर में लाखों फ़लस्तीनियों बेहद नाज़ुक हालात में हैं, जहाँ इसराइली सेना का ज़मीनी अभियान शुरू होने के बाद से ही मानवीय राहत प्रयासों की रफ़्तार रुक गई है. 

एक लाख फ़लस्तीनियों के फिर से विस्थापित होने की आशंका है, और स्थिति तेज़ी से बदल रही है. 

यूएन महासभा अध्यक्ष डेनिस फ़्रांसिस ने शुक्रवार को आपात सत्र के दौरान कहा कि इसराइल-फ़लस्तीन संकट, इस विश्व निकाय के गठन से पहले ही एक संकट बन चुका था.

उन्होंने महासभा हॉल में प्रतिनिधियों को बताया कि शान्ति, पहुँच से दूर है और फ़िलहाल वहाँ स्थिति चिन्ताजनक रफ़्तार से बिगड़ती जा रही है. 

यूएन महासभा प्रमुख ने ध्यान दिलाया कि कई सदस्य देशों का अनिवार्य वित्तीय योगदान बक़ाया है, और भुगतान ना करने की स्थिति में वे अपना अपना वोट खो देंगे. नियम यही हैं. मगर, शुक्रवार के सत्र को एक अपवाद माना गया है.

फ़लस्तीन पर प्रस्ताव 

इस सत्र में कई देशों के समूह द्वारा प्रायोजित प्रस्ताव के मसौदे पर मतदान होने की सम्भावना है, जोकि संयुक्त राष्ट्र में फ़लस्तीन के पर्यवेक्षक राष्ट्र के दर्जे से सम्बन्धित है.

संयुक्त राष्ट्र में फ़लस्तीन की पूर्ण सदस्यता के लिए सुरक्षा परिषद में 18 अप्रैल को लाए गए एक प्रस्ताव को अमेरिका द्वारा वीटो कर दिया गया था. 

यह प्रस्ताव सुरक्षा परिषद के अस्थाई सदस्य अल्जीरिया द्वारा पेश किया गया था, जिसके पक्ष में 12 वोट डाले गए, जबकि स्विट्ज़रलैंड और ब्रिटेन ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया.

193 सदस्य देशों वाली यूएन महासभा में किसी भी देश के पास वीटो अधिकार नहीं है. इस प्रस्ताव पर मतदान के बाद सुरक्षा परिषद को फ़लस्तीनी सदस्यता के मुद्दे पर पुनर्विचार की सिफ़ारिश किए जाने की सम्भावना है.

सदस्यता के विषय में यूएन चार्टर के अनुच्छेद 4 के अनुरूप यह किया जा सकता है, और इस सिलसिले में 1948 में अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय द्वारा भी परामर्श जारी किया गया था.

दसवाँ आपात विशेष सत्र

यह बैठक, यूएन महासभा के दसवें आपात विशेष सत्र के तहत हो रही है, जिसे पिछली बार ग़ाज़ा में बद से बदतर होती स्थिति के मद्देनज़र 12 दिसम्बर 2023 को बुलाया गया था.

उस बैठक में लाया गया एक प्रस्ताव भारी बहुमत से पारित हुआ, जिसमें महासभा ने तत्काल युद्धविराम लागू किए जाने, और सभी बंधकों की बिना शर्त, तत्काल रिहाई की मांग की थी.

इसके साथ ही, यूएन महासभा ने सत्र को अस्थाई रूप से स्थगित करने का निर्णय लिया था, और सदस्य देशों के अनुरोध पर बैठक फिर से बुलाने का दायित्व यूएन महासभा अध्यक्ष को सौंपा था.

यह 10वाँ आपात विशेष सत्र पहली बार अप्रैल 1997 में, क़तर के अनुरोध पर बुलाया गया था. 

पूर्वी येरूशेलम के इलाक़े में इसराइल द्वारा एक विशाल आवासीय परियोजना पर निर्णय लिए जाने के बाद, सुरक्षा परिषद और महासभा की सिलसिलेवार बैठकों के बाद यह सत्र आयोजित हुआ.