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संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम

गंगा नदी के तट पर 50 करोड़ से अधिक लोग बसते हैं. भारत की तीव्र आर्थिक वृद्धि और बढ़ती आबादी ने गंगा नदी पर भारी प्रभाव डाला है,
UNEP

भारत की सबसे पवित्र नदी की पुनर्बहाली के प्रयास

संयुक्त राष्ट्र के न्यूयॉर्क मुख्यालय में 22-24 मार्च तक आयोजित ऐतिहासिक जल सम्मेलन में सुरक्षित जल, साफ़-सफ़ाई व स्वच्छता, जल संरक्षण एवं प्रबन्धन जैसे मुद्दे चर्चा के केन्द्र में रहे. सम्मेलन के दौरान आयोजित एक कार्यक्रम में भारत की पवित्रतम नदी, गंगा को प्रदूषण से मुक्ति दिलाने पर लक्षित, ‘नमामि गंगे’ पहल की उपलब्धियों को भी रेखांकित किया गया, जिसे नदी प्रदूषण से जूझ रहे अन्य देशों के लिए एक उत्कृष्ट उदाहरण के रूप में सराहा गया है. 

दुनिया भर में अक्सर लोग अपनी आदतों या समाज के चलन के दबाव में, बहुत सारा भोजन बर्बाद करते हैं.
UNICEF/Giacomo Pirozzi

भोजन बर्बादी को रोकने की मुहिम

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की एक रिपोर्ट के अनुसार, पश्चिम एशिया में अनुमानतः 34 प्रतिशत भोजन बर्बाद होता है. बर्बाद हुआ यह भोजन, खाद्य अपशिष्ट के रूप में छोटे कूड़ेदानों से विशाल कूड़ाघरों यानि लैंडफ़िल में पहुँचकर, हानिकारक मीथेन गैस उत्पन्न करता है, जिसका जलवायु परिवर्तन ख़ासा बड़ा हिस्सा है. ऐसे में पश्चिम एशिया के अनेक प्रसिद्ध रसोइए, भोजन की बर्बादी रोकने के लिए नए तरीक़े अपना रहे हैं.

नाममि गंगे परियोजना, भारत की पावन मानी जाने वाली गंगा नदी को स्वच्छ करने की भारत सरकार की एक महत्वाकाँक्षी योजना है.
Vis M/Wikimedia Commons

भारत: गंगा नदी को फिर से जीवन्त करने की पहल को संयुक्त राष्ट्र सम्मान

संयुक्त राष्ट्र ने भारत की पवित्र गंगा नदी को फिर से जीवन्त करने की एक पहल, नमामि गंगे की सराहना करते हुए, उसे प्राकृतिक जगत को पुनर्जीवित करने पर केन्द्रित 10 अग्रणी प्रयासों में स्थान दिया है.

जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया भर में जैव-विविधता ख़तरे में है.
Unsplash/Zdeněk Macháček

पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली के अग्रणी प्रयासों को संयुक्त राष्ट्र सम्मान

संयुक्त राष्ट्र ने, विश्व की दस पहलों को ग्रह पर प्राकृतिक आवासों का क्षरण रोकने और उलटने में उनकी भूमिका के लिये मान्यता दी है, जो कुल मिलाकर 6 करोड़ 80 लाख हैक्टेयर से अधिक भूमि व तटरेखाओं को पुनर्बहाल करने के प्रयासों में लगे हैं.

पाकिस्तान के सिंध प्रांत में बाढ़ के पानी के नीचे पानी की आपूर्ति लाइन से युवा लड़के पीने का पानी इकट्ठा करते हैं.
© UNICEF/Asad Zaidi

तीव्र बाढ़ से स्वच्छता लक्ष्य पीछे धकेल दिए जाने का ख़तरा

पाकिस्तान, नाइजीरिया और हाल ही में चाड में आई भयंकर बाढ़ ने न केवल फ़सलों, घरों और बुनियादी ढाँचे को नष्ट कर दिया, बल्कि इससे शौचालयों, सीवरों और खुले स्थानों में शौच स्थलों में भी पानी भर गया, जिससे रोगजनक कीचड़ के पीने के पानी की आपूर्ति में मिलने से बीमारी के प्रकोप भड़के. संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूनेप), दुनिया भर में बाढ़ग्रस्त इलाक़ों में लोगों की सहनसक्षम स्वच्छता प्रणालियों व शौचालय सुविधाओं तक पहुँच हासिल कराने हेतु प्रयासरत है.

दक्षिण जॉर्जिया और दक्षिण सैंडविच द्वीपों पर जूवेनाइल किंग पेंग्विन.
© Unsplash/Ian Parker

2022 के यूनेप पृथ्वी चैम्पियन्स: पारिस्थितिकी तंत्र बहाली के लिये प्रयासरत

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) ने मंगलवार को 2022 के ‘चैम्पियन्स ऑफ़ द अर्थ’ पुरस्कारों की घोषणा की है. इस वर्ष, इन पुरस्कारों के तहत, एक संरक्षणवादी, एक उद्यमी, एक अर्थशास्त्री, एक महिला अधिकार कार्यकर्ता, एवं एक वन्यजीव जीवविज्ञानी को, पारिस्थितिकी तंत्र की हानि रोकने और उलटने की उनकी परिवर्तनकारी कार्रवाई के लिये सम्मानित किया गया है.

टाइड टर्नर्स प्लास्टिक चैलेंज, दुनिया भर में प्लास्टिक प्रदूषण से लड़ने के लिये, यूनेप का एक वैश्विक युवा आन्दोलन है.
Sneha Shahi

टाइड टर्नर चुनौती: छह युवा प्लास्टिक प्रदूषण कार्यकर्ताओं की सक्रियता

प्लास्टिक प्रदूषण पर स्रोत से समुद्र तक केन्द्रित 'टाइड टर्नर्स चैलेंज’, संयुक्त राष्ट्र की अब तक की सबसे बड़ी युवा-प्रमुख वैश्विक प्लास्टिक पहल है, जिसमें 32 देशों में 50 हज़ार से अधिक युवजन, दुनिया भर में प्लस्टिक प्रदूषण से निपटने में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं.

कुरुवितु के कुछ ग्रामीण, सीमेंट कोरल को एकान्त समुद्र में स्थापित करने के लिये, नाव में ले जाने के लिये तैयार कर रहे हैं.
UN/Thelma Mwadzaya

केनया: स्थानीय संरक्षण अभियान के ज़रिये, कुरुवितु कोरल की पुनर्बहाली

केनया के एक छोटे, शान्त गाँव में, एक सफल समुद्री प्रवाल संरक्षण परियोजना के ज़रिये, मछली पकड़ने के उद्योग को एक नया उद्देश्य मिला है, जो हिन्द महासागर के पश्चिमी हिस्से के समुद्री संरक्षित क्षेत्रों में अपनी तरह की पहली,अनूठी पहल है.

फिलीपींस जैसे देशों में चावल जैसी फ़सलों की खेती के लिये बड़ी मात्रा में ताज़े पानी की आवश्यकता होती है, जिसका पर्यावरणीय असर पड़ता है.
© FAO/Lena Gubler

खेतीबाड़ी के अस्तित्व के लिये अति अहम पानी पर मंडराते कुछ जोखिम

1950 के दशक से, सिन्थेटिक उर्वरकों, रासायनिक कीटनाशकों और उच्च उपज वाले अनाज जैसे नवाचारों ने मानवता को अनाज उत्पादन की मात्रा में नाटकीय रूप से वृद्धि करने में मदद की है. लेकिन ये आविष्कार, कृषि की सबसे क़ीमती वस्तु - ताज़े पानी के बिना बेकार होंगे. और शोधकर्ताओं का कहना है कि यह अब ख़तरे में है.