वैश्विक परिप्रेक्ष्य मानव कहानियां

रवाण्डा

फ्रांस के उत्तरी हिस्से में स्थित एक प्रवासी शिविर में एक लड़का.
UNICEF/Geai

ब्रिटेन-रवाण्डा शरणार्थी क़रार ग़लत है, यूएन शरणार्थी उच्चायुक्त

संयुक्त राष्ट्र के शरणार्थी उच्चायुक्त फ़िलिपो ग्रैण्डी ने ब्रिटेन में पनाह चाहने वाले शरणार्थियों की अर्ज़ियों पर विचार किये जाने की प्रक्रिया को रवाण्डा स्थानान्तरित करने के प्रस्ताव को रद्द करते हुए, इस सम्बन्ध में दोनों देशों के बीच गत अप्रैल में हुए समझौते को एक त्रुटि क़रार दिया है.

यूएन शरणार्थी एजेंसी (UNHCR) ऐसे किसी भी प्रबन्धों या प्रस्तावों के विरुद्ध है जिनके तहत, शरणार्थियों और पनाह चाहने वालों को, उनकी सुरक्षा सुूनिश्चित किये बिना, किन्हीं तीसरे देशों को भेज दिया जाता है.
UNHCR/S. Masengesho

UNHCR, ब्रिटेन-रवाण्डा के शरणार्थी प्रक्रिया समझौते के सख़्त ख़िलाफ़

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी – UNHCR ने ब्रिटेन द्वारा अपने यहाँ शरण चाहने कुछ वाले लोगों के आवेदनों पर सुनवाई के दौरान, उन्हें मध्य अफ़्रीकी गणराज्य रवाण्डा भेजे जाने के लिये हुए समझौते को, ज़रूरतमन्द लोगों की सुरक्षा व संरक्षा सुनिश्चित करने की देश की ज़िम्मेदारियों के ख़िलाफ़ क़रार दिया है.

रवाण्डा में जातीय नरसंहार के दौरान कुछ लोगों ने शवों के नीचे छिपकर अपनी जान बचाई.
UNICEF/UNI55086/Press

रवाण्डा जनसंहार: 28 वर्षों बाद भी 'शर्मिन्दगी का धब्बा बरक़रार' 

संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 1994 में रवाण्डा में तुत्सी समुदाय के विरुद्ध अंजाम दिये गए जनसंहार की बरसी पर गुरूवार को लाखों पीड़ितों को श्रृद्धांजलि दी है. केवल 100 दिनों की अवधि में सुनियोजित ढंग से दस लाख से ज़्यादा लोगों की हत्या कर दी गई थी और हुतू, त्वा समेत अन्य समूहों के उन लोगों को भी निशाना बनाया गया, जिन्होंने जनसंहार का विरोध किया था.

जिनीवा में संयुक्त राष्ट्र कार्यालय परिसर में रवाण्डा जनसंहार पीड़ितों की स्मृति में एक स्मारक का अनावरण.
UN Photo/Violaine Martin

रवाण्डा की जनता के साथ एकजुटता – नफ़रत भरे भाषणों से निपटने की पुकार

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने रवाण्डा में तुत्सी समुदाय के जनसंहार की बरसी पर नफ़रत फैलाने वाली मुहिमों को पराजित करने और इतिहास को फिर दोहराए जाने से रोकने के लिये समन्वित प्रयासों की पुकार लगाई है. वर्ष 1994 में इस जनसंहार को अंजाम दिया गया, जिसमें तुत्सी समुदाय के साथ-साथ हुतू और अन्य समूहों के उन लोगों को भी निशाना बनाया गया, जिन्होंने जनसंहार का विरोध किया था.