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भूमि की गुणवत्ता में गिरावट से अरबों प्रभावित, एक 'ख़ामोश संकट' की चेतावनी

बोलिविया में एक महिला किसान खेती के लिए अपनी भूमि को तैयार कर रही है.
© WFP/Marco Frattini
बोलिविया में एक महिला किसान खेती के लिए अपनी भूमि को तैयार कर रही है.

भूमि की गुणवत्ता में गिरावट से अरबों प्रभावित, एक 'ख़ामोश संकट' की चेतावनी

एसडीजी

विश्व भर में 1.7 अरब लोग ऐसे इलाक़ों में रह रहे हैं, जहाँ मानव गतिविधियों की वजह से भूमि क्षरण का शिकार हो रही है, उसकी गुणवत्ता में कमी आ रही है, और जिससे फ़सलों की पैदावार 10 फ़ीसदी तक लुढ़क गई है. यूएन खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) ने इसे एक ऐसा ख़ामोश संकट बताया है, जिससे कृषि उत्पादकता को ठेस पहुँची  है और पारिस्थितिकी तंत्र की सेहत बिखर रही है.

यूएन एजेंसी ने सोमवार को प्रकाशित अपनी एक नई रिपोर्ट में ये चिन्ताजनक निष्कर्ष साझा किया है.

रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से सन्देश दिया गया है कि भूमि क्षरण, केवल एक पर्यावरणीय मुद्दा नहीं है, बल्कि इससे कृषि उत्पादकता को ठेस पहुँचती है, ग्रामीण आजीविकाएँ प्रभावित होती हैं और खाद्य सुरक्षा भी.

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अध्ययन में मानव गतिविधियों के कारण भूमि क्षरण से कृषि उपज पर होने वाले प्रभावों का विश्लेषण किया गया है, सम्वेदनशीलता की दृष्टि से सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्रों, हॉटस्पॉट, की पहचान की गई है, और यह पड़ताल की गई है कि इनका निर्धनता, भूख व कुपोषण के अन्य रूपों पर किस तरह से प्रभाव पड़ रहा है.

यूएन एजेंसी के विशेषज्ञों ने अपनी रिपोर्ट के लिए खेतों के आकार, फ़सल उत्पादन जैसे बिन्दुओं पर नवीनतम डेटा का विश्लेषण किया.

रिपोर्ट में भूमि के सतत इस्तेमाल और बेहतर प्रबन्धन तौर-तरीक़ों पर बल दिया गया है, ताकि खाद्य उत्पादन और किसानों की आजीविका में बेहतरी लाते हुए भूमि क्षरण से निपटा जा सके.

कृषि-खाद्य प्रणालियों की बुनियाद, भूमि पर टिकी है, जिससे 95 प्रतिशत खाद्य उत्पादन को समर्थन मिलता है. साथ ही, ये अति-आवश्यक पारिस्थितिकी तंत्र भी हैं, जिनसे पृथ्वी पर जीवन पोषित होता है.

यूएन एजेंसी ने बताया कि भूमि क्षरण की अनेक वजह हो सकती हैं, जिनमें प्राकृतिक कारण भूमि के उपजाऊपन में कमी या उसका खारा हो जाना है.

मगर, वनों की कटाई, ज़रूरत से अधिक पशुओं को चराने, और सिंचाई के ग़ैर-टिकाऊ तौर-तरीक़ों को अपनाने से भी समस्याएँ उपजती हैं. और अब ये भूमि क्षरण के लिए अधिक ज़िम्मेदार माने जाते हैं.

असर का आकलन

क्षरण को मापने के लिए, रिपोर्ट में तीन अहम संकेतकों -- मृदा जैविक कार्बन, मृदा क्षरण, मृदा जल -- की मौजूदा स्थिति की उस तस्वीर से तुलना की गई है, जब मानव गतिविधियाँ का कोई असर नहीं होता.

इस डेटा का एक मशीन लर्निंग मॉडल के ज़रिए अध्ययन किया गया, जिसमें बदलाव के सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय कारकों को एक साथ जोड़ा गया है, ताकि मानव गतिविधि की अनुपस्थिति में भूमि की सेहत का अन्दाज़ा लगाया जा सके.

FAO के अनुसार, क़रीब 1.7 अरब लोग ऐसे इलाक़ों में रहते हैं जहाँ मानव गतिविधियों की वजह से हुए भूमि क्षरण से पैदावार में 10 प्रतिशत तक की कमी आई है.  

यूएन एजेंसी का कहना है कि संख्या के हिसाब से, एशियाई देश सर्वाधिक प्रभावित हैं, जहाँ क्षरण कहीं अधिक स्तर पर है और जनसंख्या घनत्व भी अधिक है.

लाखों के लिए लाभ सम्भव

रिपोर्ट दर्शाती है कि भूमि के सतत इस्तेमाल, एकीकृत प्रबन्धन तकनीकों और आवश्यकता के अनुरूप तैयार नीतियों के ज़रिए क़दम उठाए जा सकते हैं.

मौजूदा खेतों में फ़सलों में बदलाव करके, या फिर बेहतर प्रबन्धन के ज़रिए, मानव गतिविधियों की वजह से होने वाले क्षरण में 10 प्रतिशत की कमी लाई जा सकती है. 

इससे हर वर्ष 15 करोड़ से अधिक अतिरिक्त लोगों के लिए पर्याप्त भोजन उपजाया जा सकता है.