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ग़ाज़ा: भोजन पकाने के लिए प्लास्टिक जलाने को विवश महिलाएँ, बढ़ रहे हैं साँस के रोग

उत्तरी शहर बैत हनून से विस्थापित हुई, उम मुहम्मद अल-मसरीअस्थमा से जूझ रही हैं
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उत्तरी शहर बैत हनून से विस्थापित हुई, उम मुहम्मद अल-मसरीअस्थमा से जूझ रही हैं

ग़ाज़ा: भोजन पकाने के लिए प्लास्टिक जलाने को विवश महिलाएँ, बढ़ रहे हैं साँस के रोग

शान्ति और सुरक्षा

ग़ाज़ा में डॉक्टरों ने साँस रोगों के मामलों में तेज़ी से बढ़ोत्तरी होने की चेतावनी दी है. इसकी वजह कई परिवारों का बुनियादी ज़रूरतों से वंचित होना है. दरअसल, वे भोजन पकाने और गर्माहट के लिए प्लास्टिक और गत्ते जलाने पर मजबूर हैं. डॉक्टरों के मुताबिक़, अगर जीवनरक्षक दवाओं, ईंधन और भोजन को इस तबाह इलाके़ में पहुँचाने की अनुमति नहीं दी गई, तो हालात और भी गम्भीर हो सकते हैं.

ग़ाज़ा के उत्तरी शहर बैत हनून से विस्थापित हुई, उम्म मुहम्मद अल-मसरी, हमेशा अपने पास अस्थमा इनहेलर रखती हैं. वो कहती हैं कि इसके बिना उनकी जान ख़तरे में है. उनके तम्बू में धुआँ भरा रहता है, जहाँ वह कचरे से जलने वाली एक साधारण भट्ठी का इस्तेमाल करती हैं.

उन्होंने यूएन न्यूज़ से हुई बातचीत में बताया, “मेरे लिए दवा लिखी गई थी, लेकिन मैं इसे ख़रीद नहीं सकती थी, इसलिए UNRWA (फ़लस्तीनी शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र एजेंसी) ने मुझे यह इनहेलर दिया. जब मुझे साँस लेने में तकलीफ़ होती है, मेरे बच्चे घबराकर चिल्लाते हैं और मुझे अस्पताल ले जाते हैं.”

यह स्थिति ग़ाज़ा में स्वास्थ्य संकट की गम्भीरता को उजागर करती है और अन्तरराष्ट्रीय सहायता की तत्काल ज़रूरत को दर्शाती है. 

‘मैं क्या करूँ?’

उम्म मुहम्मद अल-मसरी कहती हैं कि इनहेलर को दो हफ़्ते तक चलने के लिए बनाया गया है, लेकिन उसे इतनी बार इस्तेमाल करना पड़ता है कि हर तीन दिन में नया इनहेलर लेना पड़ता है… “मैं क्या करूँ?“

उन्होंने कहा कि “मुझे अपने बच्चों की देखभाल करनी है. मैं भट्ठी का इस्तेमाल बन्द नहीं कर सकती. मैं गर्भवती हूँ और पूरा दिन धुएँ के सामने बैठकर बिताती हूँ.”

कुछ ऐसा ही हाल आइशा अल-राई का भी है, जिनके पहले से कई बच्चे हैं और वे फिर से गर्भवती हैं. उन्हें भी हर दिन अपनी भट्ठी जलाए रखनी पड़ती है, भले ही वे पुरानी बीमारी से पीड़ित हों.

उनकी बेटियाँ सुबह-सुबह ईंधन के लिए प्लास्टिक और गत्ते इकट्ठा करने में मदद करती हैं. उनके बच्चे और घायल पति आग जलाने में उनका हाथ बँटाते हैं.

आइशा भावुक आवाज़ में कहती हैं, “हम दुआ करते हैं कि यह कठिन समय ख़त्म हो और हम अपनी सामान्य ज़िन्दगी में लौट सकें. हम उम्मीद करते हैं कि जीवन की परिस्थितियाँ बेहतर होंगी और लोग हमारी पीड़ा को समझेंगे.”

उम मुहम्मद अल-मसरी भट्ठी में भोजन पकाते हुए.
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भोजन के लिए जारी जद्दोजहद

उम्म मुहम्मद अबू ज़ुआएतर बताती हैं कि “मैं अपने पति अबू मोहम्मद के साथ एक बेकर के रूप में काम करती हूँ. हम यह काम डेढ़ साल से कर रहे हैं, और इसने हम दोनों की सेहत पर गम्भीर असर डाला है. मुझे उच्च रक्तचाप, डायबिटीज़ व अन्य स्वास्थ्य समस्याएँ हैं और मुझे इनहेलर की ज़रूरत है.”

उन्होंने कहा कि “हम काम इसलिए करते हैं क्योंकि हमें भोजन चाहिए. हमारे तम्बू में छोटे बच्चे हैं जिन्हें हर दिन सहायता वितरण केन्द्रों तक जाना पड़ता है. मेरे बेटे दो बार घायल हुए. हमारी दो बड़ी बेटियाँ सुनने की क्षमता खो चुकी हैं. हम खु़दा से अपने अच्छे स्वास्थ्य की प्रार्थना करते हैं,”

ग़ाज़ा स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रवक्ता डॉक्टर ख़लील अल-दक़रान बताते हैं कि मिट्टी के भट्ठों में, प्लास्टिक जलाए जाने से निमोनिया और अस्थमा फैल रहा है.

उन्होंन कहा कि “ इसराइल ने सीमा चौकियों को बन्द किया हुआ है और ईंधन व भोजन पकाने के लिए जलाई जाने वाली गैस के प्रवेश को रोककर रखा है, जिससे ग़ाज़ा की महिलाएँ कचरा और प्लास्टिक जलाकर भोजन पकाने और रोटी बनाने पर मजबूर हो गई हैं. 

इससे जहरीला धुआँ और धुएँ के उत्सर्जन के कारण साँस रोग फैल रहे हैं, जो ग़ाज़ा में सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए गम्भीर ख़तरा उत्पन्न कर रहे हैं.”

ग़ाज़ा सिटी से विस्थापित, ऐशा अल-राई को हर दिन अपनी भट्ठी जलाए रखनी पड़ती है, भले ही वे पुरानी बीमारी से पीड़ित हों.
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स्वास्थ्य सामग्री की भारी कमी

डॉक्टर ख़लील अल-दक़रान ने कहा कि ग़ाज़ा में अस्पतालों में दवाओं और बुनियादी स्वास्थ्य आपूर्ति की वजह से मरीज़ों को स्वास्थ्य सेवा देना मुश्किल हो गया है. 

युद्ध से ग़ाज़ा में मानवीय संकट और गहरा रहा है, जिससे सैकड़ों विस्थापित लोग केवल बुनियादी साधनों पर निर्भर हैं.

संयुक्त राष्ट्र अधिक आवश्यक सहायता देने के लिए तैयार है, लेकिन आवश्यक मात्रा में आपूर्ति पहुँचाने में अब भी कई बाधाएँ बनी हुई हैं.