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खेतीबाड़ी में युवाओं की भागेदारी से बदल सकता है वैश्विक भविष्य

गिनी-बिसाऊ में एक परियोजना में भाग लेते युवजन.
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गिनी-बिसाऊ में एक परियोजना में भाग लेते युवजन.

खेतीबाड़ी में युवाओं की भागेदारी से बदल सकता है वैश्विक भविष्य

आर्थिक विकास

संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) की एक नई रिपोर्ट में कहा गया है कि खेतीबाड़ी में युवजन की भागेदारी से, न केवल खाद्य सुरक्षा और पोषण में सुधार लाया जा सकता हैबल्कि उनकी बढ़ती हिस्सेदारी, जलवायु परिवर्तन और घटती संसाधन उपलब्धता जैसी वैश्विक चुनौतियों का समाधान भी बन सकती है.

गुरूवार को जारी “कृषि-खाद्य प्रणालियों में युवाओं की स्थिति” (The Status of Youth in Agri-food Systems) नामक इस रिपोर्ट में, दुनिया भर के 15 से 24 वर्ष आयु वर्ग के 1.3 अरब युवाओं की भूमिका, चुनौतियों एवं सम्भावनाओं का व्यापक विश्लेषण किया गया है.

FAO के अनुसार, दुनिया के लगभग 85 प्रतिशत युवा, निम्न और निम्न-मध्यम आय वाले देशों में रहते हैं, जहाँ कृषि-खाद्य प्रणाली आजीविका का मूल स्रोत हैं. 

इन युवाओं को यदि समान अवसर, संसाधन और नीति समर्थन मिले, तो वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 1.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अतिरिक्त वृद्धि सम्भव है - जिसका लगभग 45 प्रतिशत योगदान केवल कृषि-खाद्य क्षेत्र से हो सकता है.

FAO के महानिदेशक क्यू डोंगयू ने रिपोर्ट के प्रस्तावना में लिखा है, “इस रिपोर्ट में दिखाया गया है कि युवाओं को सशक्त बनाकर किस तरह कृषि-खाद्य प्रणालियों में परिवर्तन लाया जा सकता है, और कैसे यह परिवर्तन आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरण के व्यापक लाभ दे सकता है."

बढ़ती असमानताएँ और खाद्य असुरक्षा

रिपोर्ट बताती है कि दुनिया भर में, 20 प्रतिशत से अधिक युवा, आज भी न तो रोज़गार में हैं, न शिक्षा में और न ही किसी व्यावसायिक प्रशिक्षण में (NEET).

यह समस्या महिलाओं में और भी गहरी है, जिनकी संख्या दोगुनी है. 

रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्तमान में लगभग साढ़े 39 करोड़ ग्रामीण युवा, ऐसे इलाक़ों में रह रहे हैं जहाँ जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि उत्पादकता में गिरावट की सम्भावना है - विशेष रूप से उप-सहारा अफ़्रीका व अन्य संवेदनशील क्षेत्रों में.

खाद्य और कृषि संगठन (FAO), खेतीबाड़ी में युवाओं की भागेदारी बढ़ाने पर ज़ोर दे रहा है.
© FAO Rwanda

युवा कृषि क्षेत्र से दूर क्यों?

जनसंख्या सम्बन्धी प्रवृत्तियाँ इस चुनौती की तात्कालिकता को और भी गहरा करती हैं. अनुमान है कि उप-सहारा अफ़्रीका में 2050 तक युवजन की आबादी में 65 प्रतिशत की वृद्धि होगी. 

इसके विपरीत, कृषि-खाद्य प्रणालियों में कार्यरत युवाओं की हिस्सेदारी 2005 में 54 प्रतिशत से घटकर 2021 में 44 प्रतिशत रह गई है, जिससे स्पष्ट है कि इन क्षेत्रों को युवाओं के लिए अधिक आकर्षक, व्यावहारिक एवं सुरक्षित बनाना अब आवश्यक हो गया है.

प्रवासन भी इस विमर्श का एक अहम पक्ष है. अपने देशों में अवसरों की कमी के कारण ये युवा, बेहतर रोज़गार की तलाश में विदेशों का रुख़ कर रहे हैं.

समाधान और सिफ़ारिशें

FAO रिपोर्ट में सरकारों, विकास साझीदारों और निजी क्षेत्र से आहवान किया गया है कि वे युवाओं को केन्द्र में रखकर समन्वित क़दम उठाएँ. 

इसमें डिजिटल तकनीकों तक उनकी पहुँच बढ़ाने, खेती और प्रसंस्करण के लिए टिकाऊ ढाँचे में निवेश करने, और नीति-निर्माण में उनकी सक्रिय भागेदारी सुनिश्चित करने पर ज़ोर दिया गया है. 

साथ ही, हाशिए पर मौजूद युवाओं से जुड़ा समावेशी और सटीक डेटा एकत्र करने की आवश्यकता पर भी बल दिया गया है, ताकि नीतियाँ अधिक प्रभावी और न्यायसंगत बन सकें.

FAO की यह रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि युवाओं को केवल परिवर्तन के लक्ष्य नहीं, बल्कि परिवर्तन के वाहक के रूप में देखा जाना चाहिए.

यदि उन्हें सही अवसर, संसाधन और समर्थन मिले, तो वे न केवल वैश्विक खाद्य संकट का समाधान बन सकते हैं, बल्कि दुनिया को अधिक समावेशी, टिकाऊ और सुरक्षित भविष्य की ओर भी ले जा सकते हैं.